मोदी की वो रणनीति, जिसने दिलाई गुजरात में भाजपा को ऐतिहासिक जीत
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में बीजेपी अबतक की सबसे बड़ी जीत की ओर बढ़ चुकी है। कुल 182 सीटों में वह 156 पर आगे चल रही है। कांग्रेस 17 सीटों पर सिमटती दिख रही। वहीं, आम आदमी पार्टी सूबे में अपना खाता खोल सकती है। उसे 5 सीटों पर बढ़त है जबकि 4 पर अन्य आगे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में बमुश्किल अपनी सत्ता बचा पाने वाली बीजेपी 5 साल बाद अभूतपूर्व कामयाबी कैसे हासिल कर ली? इसका जवाब है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘सक्सेज मंत्र’। आखिर क्या था मोदी का वो मंत्र जिससे बीजेपी ने गुजरात में करिश्मा कर डाला, आइए समझते हैं।
तोड़े पिछले रिकॉर्ड
गुजरात में इस बार बीजेपी सबसे बड़ी जीत का नया रेकॉर्ड बनाने जा रही है। 1985 में माधव सिंह सोलंकी की अगुआई में कांग्रेस ने 149 सीटें हासिल की थी। वह सूबे में किसी भी पार्टी का अबतक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था लेकिन इस बार बीजेपी की कुछ ऐसी लहर चली कि सोलंकी का रेकॉर्ड भी ध्वस्त होने को है। इस बार राज्य में जितने भी वोट पड़े उनमें से आधे से ज्यादा बीजेपी के पक्ष में गए। वोटशेयर 52 प्रतिशत से भी ज्यादा।
पीएम मोदी ने संभाला मोर्चा
गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी 100 का आंकड़ा भी नहीं छू पाई थी। उसे 99 सीटें मिलीं जो बहुमत के आंकड़े 92 से ज्यादा तो थीं लेकिन 1995 के बाद सूबे में बीजेपी का ये सबसे खराब प्रदर्शन था। कांग्रेस उसे सत्ता से बेदखल करते-करते रह गई थी। उसके खाते में 78 सीटें आईं जो गुजरात में 32 सालों में उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। बीजेपी के खराब प्रदर्शन के लिए कई फैक्टर जिम्मेदार थे। सियासी तौर पर प्रभावशाली जाति पाटीदारों में नाराजगी थी। तब पाटीदार आरक्षण आंदोलन चरम पर था। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और तेजतर्रार दलित नेता जिग्नेश मेवानी बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। इसके अलावा नए-नए लागू हुए जीएसटी की वजह से कारोबारियों में रोष था। ऊना समेत कुछ जगहों पर दलितों पर हुए हमलों को लेकर दलित समुदाय में नाराजगी थी। इन सबका बीजेपी को नुकसान हुआ। 2017 में लगे झटके के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कान खड़े हो गए। उन्होंने बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ और अपने गृह राज्य को बचाने के लिए खुद मोर्चा संभाल लिया।
मोदी की खास रणनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला मंत्र था- प्रतिद्वंद्वी को इतना कमजोर कर दो कि हौसला ही टूट जाए। 2017 के बाद बीजेपी ने चुन-चुनकर उन नेताओं पर डोरे डालने शुरू कर दिए जो भविष्य में उसके लिए खतरा साबित हो सकते थे और जो कांग्रेस को ताकत पहुंचा रहे थे। पाटीदार आंदोलन के नेताओं में फूट पड़ गया। आंदोलन के चेहरे हार्दिक पटेल अलग-थलग पड़ गए। बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गए। प्रभावशाली युवा नेता और ओबीसी चेहरे अल्पेश ठाकोर को अपने साथ मिलाया। ठाकोर ने 2019 में कांग्रेस के साथ-साथ राधनपुर विधानसभा सीट के सदस्यता से भी इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया। हालांकि, उसके बाद हुए उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। चुनावी साल 2022 आते-आते बीजेपी हार्दिक पटेल को भी कांग्रेस से तोडक़र अपने पाले में लाने में कामयाब हो गई। कभी पानी पी-पीकर पीएम मोदी को कोसने वाले हार्दिक पटेल का ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ कि वह उनके मुरीद हो गए और उन्हें गुजरात और देश का गौरव बताते नहीं थकते।
सिर्फ अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल ही नहीं, बीजेपी अपनी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कई नेताओं को तोडऩे में कामयाब रही। 2017 के चुनाव के बाद कांग्रेस में जैसे भगदड़ मच गई। कुंवरजी बवलिया, जवाहर चावड़ा, जीतू चौधरी, अक्षय पटेल, जे वी काकडिय़ा, प्रद्युम्न सिंह जडेजा, पुरुषोत्तम बाबरिया…एक-एक करके उसके कई विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए। इनके जरिए क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को भी साधने में कामयाब रही। अल्पेश ठाकोर को छोडक़र ऐसे सभी विधायक बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव जीतने में कामयाब हो गए। कुंवर जी बावलिया कोली समुदाय से आने वाले प्रभावशाली नेता माने जाते हैं। इसी तरह कपरडा से विधायक जीतू चौधरी की गिनती बड़े आदिवास नेताओं में होती है। उपचुनाव में जीत के बाद उन्हें मंत्री भी बनाया गया। कांग्रेस के कई पूर्व विधायक भी बीजेपी में शामिल हुए। इसके जरिए बीजेपी ने न सिर्फ जातिगत समीकरण साधे बल्कि ये नैरेटिव बनाने में भी कामयाब हुई कि ‘कांग्रेस बहुत कमजोर है’ तभी तो उसके नेता पाला बदल रहे हैं।
इस एक दांव से साधा सबको
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2021 में अपने कैबिनेट में अहम फेरबदल की और उसके जरिए गुजरात को साधने की कोशिश की जो कामयाब रही। सौराष्ट्र रीजन से तीन सांसदों को मंत्री बनाया गया। इनमें से मनसुख मांडविया और पुरुषोत्तम रुपाला को कैबिनेट मंत्री तो डॉक्टर महेंद्र भाई मुंजापारा को राज्य मंत्री। मांडविया और रुपाला दोनों ही पाटीदार हैं। एक लेउवा तो दूसरे कडवा पाटीदार। इनके जरिए पीएम मोदी ने पटेलों के साथ-साथ सौराष्ट्र रीजन को भी साधा
और यूं बदला माहौल
गुजरात हमेशा से बीजेपी की राजनीतिक प्रयोगशाला रही है। पीएम मोदी ने 2021 में पहले तो कैबिनेट फेरबदल के जरिए पाटीदारों की नाराजगी दूर करने और सौराष्ट्र को साधने की कोशिश की। इसके दो महीने बाद उन्होंने ऐसा मास्टरस्ट्रोक खेल दिया जिसने एंटी-इन्कंबेंसी की हवा निकाल दी। एक ऐसा प्रयोग जिसके बारे में सियासत के बड़े-बड़े शूरमाओं को भी अंदाजा नहीं रहा होगा। रातों-रात गुजरात की पूरी सरकार ही बदल गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से इस्तीफा ले लिया गया। पाटीदार भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया। नए मंत्रिपरिषद में रुपाणी मंत्रिपरिषद के सभी सदस्यों की छुट्टी कर दी गई। यानी सभी नए मंत्री बनाए गए। नए मंत्रिपरिषद में क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन साधा गया। पाटादारों को ज्यादा जगह दी गई। युवा चेहरों को तवज्जों दिया गया। इससे वर्षों से सत्ता में रहने की वजह से जो कुछ भी सत्ताविरोधी रुझान था उसे खत्म कर दिया गया। रही-सही कसर 2022 में टिकट बंटवारे में पूरी कर दी गई। विजय रुपाणी, नितिन पटेल, भूपेंद्र सिंह चुडास्मा जैसे दिग्गजों के बजाय नए चेहरों को टिकट दिया गया। कद्दावर पूर्व मंत्रियों ने ऐलान किया कि वे चुनाव नहीं लडऩा चाहते। बड़े पैमाने पर सिटिंग एमएलए के टिकट काटे गए। इससे कुछ जगह बीजेपी को बगावत का सामना तो करना पड़ा लेकिन नतीजे बताते हैं कि बीजेपी का ये दांव एंटी-इन्कंबेंसी की हवा निकालने में पूरी तरह कामयाब रहा।
आप की दस्तक से ही सतर्क हुई थी मोदी ब्रिगेड
आम आदमी पार्टी की गुजरात में दस्तक के साथ बीजेपी सतर्क हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुफ्त की रेवड़ी कल्चर पर तीखा हमला करते हुए आम आदमी पार्टी को कठघरे में खड़ा किया। बीजेपी पूरी तरह आम आदमी पार्टी पर हमलावर रही। हमेशा की तरह इस बार भी गुजराती अस्मिता का दांव खेला। दूसरी तरफ, पीएम मोदी ने चुनाव से पहले गुजरात को हजारों करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट की सौगात की। ताबड़तोड़ शिलान्यास और लोकार्पण कार्यक्रम हुए। बीजेपी ने ‘गुजरात के विकास मॉडल’ को शो केस किया। फॉक्सकॉन-वेदांता ने सेमीकंडक्टर चिप बनाने के 20 अरब डॉलर के प्रोजेक्ट के लिए गुजरात को चुना। इंडियन एयरफोर्स के लिए परिवहन विमान सी-295 को भारत में बनाने के लिए टाटा-एयरबस ने गुजरात को चुना। इन सबसे गुजरात के ‘विकास मॉडल’ को और मजबूती मिली। ये संदेश गया कि निवेश के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच गुजरात पहली पसंद है।
गुजरात में 17 महीने के अपवाद को छोड़ दें तो पिछले 27 सालों से लगातार बीजेपी की सरकार है जो अब कम से कम अगले 5 सालों तक और रहने वाली है। 1995 में पहली बार केशुभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद से बीच के 17 महीने को छोड़ दें तो अबतक लगातार सूबे में भगवा परचम ही लहरा रहा है। अक्टूबर 1996 में बीजेपी के शंकर सिंह वघेला ने बगावत कर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी। वघेला ने बगावत के बाद राष्ट्रीय जनता पार्टी नाम से एक अलग पार्टी बनाई। अक्टूबर 1997 में वघेला ने पद छोड़ा तो राष्ट्रीय जनता पार्टी के ही दिलीप पारिख मुख्यमंत्री बने जो मार्च 1998 तक पद पर रहे। 1995 के बाद यही 17 महीने का अपवाद है जब गुजरात में बीजेपी की सरकार नहीं रही है।
पिछले चुनाव में बीजेपी को 99 सीटें और कांग्रेस को 78 सीटें मिली थीं। 2012 के चुनाव में बीजेपी को 115 और कांग्रेस को 61 सीट पर जीत मिली थी। 2007 में बीजेपी को 117 और कांग्रेस को 59, 2002 में बीजेपी को 127 और कांग्रेस को 51, 1998 में बीजेपी को 117 और कांग्रेस को 53 सीटें मिली थीं। 1995 के गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 121 और कांग्रेस के खाते में 45 सीटें आई थीं।