उच्च शिक्षा का नटवरलाल विमल जायसवाल
लखनऊ यूनिवर्सिटी के अप्लायड इकोनॉमिक्स डिपॉर्टमेंट में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत बेसिक शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा तक
फर्जी दस्तावेजों के बल पर नौकरी पाना आसान प्रोफेसर के पद पर कार्य कर रहे विमल कुमार जायसवाल को प्रदेश सरकार की जांच के बाद लोकायुक्त की भी नोटिस
विधानसभा में भी उठा था मुद्दा आखिर कैसे पा गये सीधे नौकरी
यूजीसी मानदंडों के विपरीत सीधे प्रोफेसर के पद पर मिली नौकरी
पिता सियाराम जायसवाल थे उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष
2005 में लखनऊ विश्वविद्यालय में कॉमर्स डिपार्टमेंट के अप्लाइड इकोनॉमिक्स विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर हुई थी नियुक्ति
03 वर्ष तक एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्य सेवा दिये बिना नियुक्ति यूजीसी मानदंडों के विपरीत
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। फर्जी दस्तावेजों के बल पर यूपी में प्राइमरी के टीचर से यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तक का सफर बहुत आसान है। बस मन में प्रबल इच्छा होना चाहिए। सीएम योगी ने अभियान चला कर बेसिक शिक्षा से तो फर्जी शिक्षकों का बोरिया बिस्तर बांध दिया लेकिन क्या उच्च शिक्षा में यह अभियान चल पाएगा और फर्जी शिक्षकों को निकाला जा सकेगा यह कहना मुश्किल है। क्योंकि आये दिन कोई न कोई ऐसा प्रकरण सामने आ रहा है जिसमें उच्च शिक्षा विभाग में फर्जी दस्तावेजों के बल पर नौकरी पाए लोगों की पोल खुल रही है।
ताजा प्रकरण लखनऊ यूनिवर्सिटी का है जहां यूजीसी मानदंडो के विपरीत विमल कुमार जायसवाल को लखनऊ यूनिवर्सिटी के अप्लायड इक्नोमिक्स अर्थशास्त्र विभाग में सीधे प्रोफेसर के पद पर नियुक्त होने का सनसनीखेज खुलासा हुआ है।
पिता अध्यक्ष तो बेटे को मिली नौकरी!
एक ओर नौकरी की मारामारी है और छोटे पदों पर बड़े—बड़े डिग्रीधारकों के आवेदन प्राप्त हो रहे हैं। वहीं, प्रोफेसर जैसे पद पर कुछ नियमों और फर्जी दस्तावेजों के बल पर नौकरी पाई जा रही है। ऐसे लोगों की फेहरिस्त लंबी है और धीरे-धीरे पोल खुलनी शुरू हो गयी है। यदि योगी सरकार उच्च शिक्षा में भी अभियान चलाये तो यहां भी अधिकांश शिक्षक फर्जी दस्तावेजों के बल पर बड़े—बड़े पदों पर नौकरी करते मिल जाएंगे। विमल कुमार जायसवाल के पिता सियाराम जायसवाल भी लखनऊ यूनिवर्सिटी में उसी विभाग में विभागाध्यक्ष थे उसके बाद वह उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष होने के नाते एव उक्त श्रेणी हेतु निर्धारित वेतनमान तथा संपत्ति के स्वामित्तव के कारण नान क्रीमीलेयर की परिधि से परे थे।
यह हो क्या रहा है?
सोचिए अगर पिता विभाग के सर्वोच्चय पद पर आसीन है तो क्या वह अपने पुत्र को सीधे नौकरी पर रखवा सकता है? नियम विरूध नौकरी क्या उन लोगों के अधिकारों का हनन नहीं है जो वर्षों से वहां काम कर रहे हों और पक्की नौकरी की आस रखते हो। बाहरहाल फर्जी दस्तावेजों के बल पर जितने दिन नौकरी कर सकते थे कर ली। अब लोकायुक्त ने उन्हें नोटिस भेजकर दस्तावेजों के साथ बुलाया है। यही नहीं यह प्रकरण यूपी की विधानसभा तक पहुंच चुका है जहां विधायकों ने नियम 51 के तहत सरकार से सवाल पूछा है कि यह हो क्या रहा है। क्या नियमों का सहारा लेकर उसे अपनी परिभाषा में भाषित कर कोई भी उच्च पद पर आसीन हो सकता है।
सरकार ने दिये जांच के आदेश
विमल सियाराम जायसवाल का प्रकरण पूरे उत्तर प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। सियाराम ?जायसवाल के दो बेटे है। एक बेटे विमल कुमार जायसवाल को लखनउ युनिवर्सिटी के अप्लायड इकोनामिक्स डिपार्टमेंट में प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति मिल गयी जबकि दूसरा बेटा भीमराव अम्बेडकर इंस्टीटयूट में सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिम है कि बेरोजगारों की लंबी लाइन है। बहुत से लोग युनिवर्सिटी और कालेज में सहायक अध्यापक जैसे पदों पर कार्य कर रहे हैं। ऐसे में यदि सीधे पैराशूट नियुक्तियां होगी तो फिर उन लोगों का क्या होगा जो वर्षों तक अपनी सेवाएं इस आस में देते हैं कि भविष्य में उन्हें पक्की नौकरी मिल जाएगी।
नियमों के विपरीत जाकर कार्य नहीं किया जाना चाहिए : यशवीर त्यागी, पूर्व प्रोफेसर
लखनऊ युनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर यशवीर त्यागी ने इस मुददे पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन इतना जरूर कहा कि उनके जमाने में यह सब चीजे असंभव थी। इस तरह की चीजें बंद होना चाहिए तभी शिक्षा में पारदर्शिता आयेगी। उच्च शिक्षा में तो यह नहीं होना चाहिए। नियमों के विपरीत जाकर कार्य नहीं किया जाना चाहिए।
प्रोफेसर की नियुक्ति पर वक्तव्य दे सरकार : अभय सिंह
विधायक अभय सिंह ने नियम-51 के तहत विधान सभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा मैं आपका ध्यान जनपद लखनऊ के अतिलोक महत्व के सूचना की तरफ दिलाना चाहता हूं। जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय के अप्लायड इकनोमिक्स अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्त बिमल सियाराम जायसवाल के नॉन क्रीमीलेयर के संबंध में उक्त बिमल सियाराम जायसवाल के द्वारा जमा किये गये अर्हता संबंधित दस्तावेजों का सत्यापन किस स्तर पर किया गया । जबकि तत्समय उक्त बिमल सियाराम जायसवाल के पिता सियाराम जायसवाल उसी विभाग में प्रोफसेर / विभागाध्यक्ष एवं तत्पश्चात् उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष होने के नाते एवं उक्त श्रेणी हेतु निर्धारित वेतनमान तथा संपत्ति के स्वामित्व के कारण नॉन क्रीमीलेयर की परिधि से परे थे। उक्त बिमल सियाराम जायसवाल के द्वारा सहायक प्रोफेसर के पद के उपरांत 3 वर्ष तक एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्य सेवा दिये बिना, अप्लायड अर्थशास्त्र विभाग, लखनऊ विवि में प्रोफेसर के पद पर सीधे नियुक्ति यूजीसी मानदंडों के विपरीत किस आधार पर की गई। बिमल सियाराम जायसवाल को अपनी नियुक्ति के उपरांत तुरन्त विभिन्न प्रशासनिक पदों पर नियुक्त कर अतिरिक्त लाभ किस अधिकारी/ किसके दबाव में किया गया एवं अपनी उत्त अवैध नियुक्ति के उपरांत उक्त बिमल सियाराम जायसवाल किन किन प्रशासनिक / गैर प्रशासनिक पदों पर नियुक्त रहे। उक्त बिमल सियाराम जायसवाल के विरूद्ध पूर्व में लखनऊ विवि/शासन स्तर पर की गई शिकायतों एवं उक्त शिकायतों के संबंध में की गई जांच एवं उक्त जांच की आख्यायें कृपया प्रस्तुत की जाये। अत इस लोक महत्व सूचना पर आपके माध्यम से लखनऊ विश्वविद्यालय के अप्लायड इकनोमिक्स अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति में हुयी अनियमित्ताओं का दूर करने हेतु लखनऊ विश्वविद्यालय निरीक्षक, जनपद लखनऊ के प्रकरण में कृत कार्यवाही के सम्बन्ध में सरकार से व्यक्तव्य दिये जाने की मांग करता हूं।
प्रोफसर पर नॉन क्रीमी लेयर संवर्ग में गलत जानकारी देने का भी आरोप
प्रोफसर पर नॉन क्रीमी लेयर संवर्ग में गलत जानकारी देने का आरोप है। शासन की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि प्रोफेसर विमल जायसवाल की साल 2005 में लखनऊ विश्वविद्यालय में कॉमर्स डिपार्टमेंट के अप्लाइड इकोनॉमिक्स विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हुई थी। उन्हें पिछड़ा वर्ग की नॉन क्रीमी लेयर संवर्ग कैटेगरी में नियुक्ति दी गई थी। इसके अलावा शासन को भेजी गई शिकायत में कहा गया है कि उनके द्वारा परीक्षा केंद्रो के निर्धारण, शिक्षकों की नियुक्तियों में भी अनियमितता की गई है। साथ ही अंकों में हेर-फेर, शोध विद्यार्थियों का शोषण आदि भी शामिल हैं। इस संदर्भ में जब जानकारी लेने के लिए प्रोफेसर विमल जायसवाल को फोन किया गया तो उनका फोन नेटवर्क क्षेत्र में नहीं था। उनके पिता राधेश्याम जयसवाल लखनऊ विश्वविद्यालय के ही फूड प्रोफेसर रहने के साथ ही अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में योजना आयोग के उपाध्यक्ष के पद पर भी रह चुके थे।