Bihar में Gyanesh Kumar की मेहरबानी से जीता NDA, हुआ बड़ा खुलासा!
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर अभी भी गहन मंथन जारी है…सब पूछ रहे हैं कि अगर एनडीए के पक्ष में इतनी बड़ी लहर चल रही थी….तो वो लहर विपक्ष को क्यों नहीं दिखी और खुद एनडीए के बड़े नेताओं को भी क्यों महसूस नहीं हुई…

4पीएम न्यूज नेटवर्क: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर अभी भी गहन मंथन जारी है…सब पूछ रहे हैं कि अगर एनडीए के पक्ष में इतनी बड़ी लहर चल रही थी….तो वो लहर विपक्ष को क्यों नहीं दिखी और खुद एनडीए के बड़े नेताओं को भी क्यों महसूस नहीं हुई…
आम तौर पर जहां कोई राजनीतिक लहर होती है…तो उसका असर जमीन पर साफ दिखने लगता है…लेकिन बिहार में एनडीए के पक्ष में चली ये लहर इतनी खामोश थी कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जैसे रणनीतिकार भी उसे भांप नहीं पाए…उधर इंडिया गठबंधन इस जीत को NDA की नहीं बल्कि चुनाव आयोग की जीत बता रहा है…उनका आरोप है कि आयोग ने चुन-चुनकर महागठबंधन के मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए…और बारीकी से देखें तो चुनाव के बाद आए आंकड़े भी यही दिखा रहे हैं कि महागठबंधन का कोर वोट कहीं कमजोर नहीं पड़ा…2020 की तरह इस बार भी उसका आधार मजबूती से उसके साथ खड़ा रहा…
हालही में सामने आए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे हर किसी के लिए चौंकाने वाले रहे….जहां देखा गया था कि इस बार की जनता बदलाव चाहती है….लेकिन, ये बदवान चुनाव नतीजों में दिखाई नहीं दिया…तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली RJD को हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा….लेकिन उसका पारंपरिक मुस्लिम-यादव वोट बैंक इस बार भी बरकरार रहा….एसेंडिया स्ट्रैटेजीज़ के चुनावी विश्लेषण से साफ़ पता चलता है कि सीटों की संख्या भले ही कम हुई हो….लेकिन आरजेडी के कोर वोटर पार्टी के प्रति वफ़ादार बने रहे….
रिपोर्ट के अनुसार, महागठबंधन को मिले 38% वोटों में से 60% वोट अकेले मुस्लिम और यादव समुदायों से आए….महागठबंधन को मिले कुल वोटों में यादवों का योगदान 10% था….जबकि मुस्लिम वोटों का हिस्सा 13% था….यानी RJD के सामाजिक आधार में कोई खास गिरावट नहीं आई…..यानीकि इन आंकड़ों के मुताबिक और जो तमाम सर्वेज में कहा गया था कि तेजस्वी यादव को जनता बतौर मुख्यमंत्री पसंद कर रही है….वो तस्वीर भी काफी हद तक क्लियर हो गई है…विपक्ष पहले से ही वोट चोरी का आरोप लगाते हुए कह रहा है कि ये जीत NDA को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की देन है….
क्योंकि, चुनाव के बाद आए आंकड़े भी यही दिखा रहे हैं कि महागठबंधन का कोर वोट कहीं कमजोर नहीं पड़ा…2020 की तरह इस बार भी उसका आधार मजबूती से उसके साथ खड़ा रहा….2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर हुई थी…सिर्फ 12,000 वोटों के बेहद छोटे अंतर से एनडीए सरकार बनाने में सफल हुआ…इस हार के बाद तेजस्वी यादव ने समझ लिया कि अब M-Y समीकरण से आगे बढ़कर आधार का विस्तार करना होगा…मुस्लिम और यादव समुदाय तो पहले से ही उनके साथ मजबूती से थे….जिनकी कुल आबादी करीब 31% है…तेजस्वी ने इसके आगे बढ़ते हुए A to Z की नीति अपनाई और हर वर्ग तक पहुंचने की कोशिश शुरू कर दी……….इस रणनीति का फायदा 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मिला….जब महागठबंधन ने एनडीए की नौ सीटें छीन लीं…
अब आते हैं 2025 के विधानसभा चुनाव पर…इस बार महागठबंधन में दो नए साथी जुड़े—मुकेश सहनी की VIP और इंद्रजीत प्रसाद गुप्ता की IIP… IIP के पास निषाद समुदाय का मजबूत समर्थन माना जाता है…जबकि IIP को पान समाज का बड़ा वोट मिलता है…IIP ने तो सहरसा की सीट भी NDA से छीन ली…इसलिए माना जा रहा था कि महागठबंधन का वोट बैंक और मजबूत हुआ है…लेकिन नतीजों में ऐसा कुछ दिखा ही नहीं…एनडीए की तरफ से दावा किया गया कि उसने महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा दी…लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बताते हैं…2020 में जहां 75% मुसलमानों ने महागठबंधन को वोट दिया था, वहीं 2025 में ये आंकड़ा बढ़कर 78% से ऊपर पहुंच गया…एनडीए को 2020 में मुसलमानों के 15% वोट मिले थे, जो 2025 में घटकर केवल 11% रह गए…
यादव समुदाय ने भी अपना रुझान ज्यादा नहीं बदला…2020 में 84% यादवों ने महागठबंधन को वोट दिया था…..2025 में ये आंकड़ा 81% रहा…एनडीए को यादवों के वोट 11% से बढ़कर 14% जरूर मिले, लेकिन इससे समीकरण में बड़ा बदलाव नहीं आया…अब आबादी के हिसाब से देखें…बिहार की मुसलमान आबादी करीब 17% है और यादव समुदाय 14% से थोड़ी ज्यादा…इन दोनों का लगभग 25% वोट अकेले महागठबंधन के खाते में गया…महागठबंधन का कुल वोट शेयर 38% रहा….जिसमें से 25% सिर्फ M-Y आधार का था…यानी आधार वोट पहले जैसा ही ठोस रहा……….
इस बीच एनडीए का वोट शेयर 47% तक पहुंच गया…जबकि वीआईपी, जो 2020 में एनडीए के साथ थी, इस बार महागठबंधन में शामिल थी और उसका अनुमानित 3% वोट भी MG को मिलना चाहिए था…आईआईपी के 1% वोट के जुड़ने से महागठबंधन का आधार और बढ़ना चाहिए था…लेकिन नतीजों में ये वृद्धि नजर नहीं आई…लेकिन, NDA का दावा कि हमने महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगाई आधा-अधूरा है….
सेंध उन्होंने महागठबंधन के संभावित एक्सपैंशन एरिया यानीकि EBC और नॉन-यादव OBC में लगाई…..जो उसके कोर वोट बैंक MY में नहीं आते हैं…………..महागठबंधन का आरोप है कि ऐसा इसलिए नहीं दिखा क्योंकि SIR में बड़ा खेल हुआ…कहा जा रहा है कि 65 लाख वोट काटे गए जिनमें सबसे अधिक संख्या मुसलमान, दलित और यादव समुदाय के वोटरों की थी…ये वही समुदाय थे जिनका अधिकतर समर्थन महागठबंधन को मिलने वाला था…दूसरी तरफ आरोप लगा कि बीजेपी समर्थक दूसरे राज्यों से लाए गए और उन्हें वोटर लिस्ट में जोड़ा गया…
इससे प्राकृतिक वोट संतुलन बिगड़ गया…साथ ही एक और बड़ा तथ्य ये भी है कि तेजस्वी यादव की रणनीति ने एनडीए के अपर कास्ट वोट बैंक में भी सेंध लगाई…2020 में जहां महागठबंधन को सिर्फ 13% सवर्ण वोट मिलता था….2025 में ये बढ़कर 25% हो गया…एनडीए को जरूर 70% अपर कास्ट वोट मिले….लेकिन ये 2020 के 76% से कम था…यानी यहां भी महागठबंधन ने नुकसान की बजाय लाभ ही लिया…
अब सवाल उठता है कि आखिर फिर चुनावी नतीजे उल्टा हुए कैसे…एनडीए के वोट बैंक में चिराग पासवान तो थे… लेकिन उनकी पार्टी पहले ही दो हिस्सों में बंट चुकी थी…उनके चाचा पशुपति पारस अलग से चुनाव लड़ रहे थे….इसके अलावा एनडीए से एक पार्टी बाहर भी चली गई थी….नीतीश कुमार के प्रति भी जनता की नाराजगी भी दिखाई दे रही थी…महागठबंधन ने भी एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाई…फिर भी एनडीए का वोट शेयर 9% कैसे बढ़ गया…
ऊपर से महागठबंधन को SC, ST और OBC वर्गों में भी कड़ी टक्कर मिल रही थी…लेकिन बीजेपी नेताओं के बयानों और उनकी घबराहट से लग रहा था कि मुकाबला बेहद नजदीकी है……लेकिन, जब चुनावी नतीजे सामने आएं और जिस तरह से जगह-जगह पर EVM में गडबड़ियां दिखाई दीं…कई जगहों पर तो जनता ने चुनाव का बहिष्कार तक कर दिया….यहां तक कि डिप्टी सीएम विजय कुमार सिंहा को जनता ने खधेड़ा…ऐसे में नतीजों के बाद उठ रहे सवाल लगातार गहरे होते जा रहे हैं कि क्या सच में ये नतीजें जनता का सनाधार है या NDA के प्रति मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार का प्यार?



