बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की एकता तार-तार!

- प्रथम चरण की नामंकन प्रक्रिया पूरी, लेकिन एनडीए में नहीं बन पा रही बात
- चुनावी मौसम में रोज नयी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है एनडीए को
- दिल्ली की रणनीति पर भारी पड़ रही है बिहारी एनडीए दलों की आपसी सिर-फुटव्वल
- बीजेपी के पूर्व केन्द्रीय मंत्री और स्टार प्रचारक अश्वनी चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत ने भागलपुर से चुनाव लडऩे का किया ऐलान
- जेडीयू का एक और विधायक बागी, बरबीघा से सुदर्शन कुमार ने निर्दलीय दाखिल किया नामांकन
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण के नामांकन की प्रकिया पूरी हो चुकी है लेकिन बिहार की सत्ता का समीकरण अब भी सुलझा नहीं है। एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर ऐसी सिरफुटव्वल मची है कि यह गठबंधन अब परिवार कम और कुश्ती का अखाड़ा ज़्यादा नजर आ रहा है। जदयू में बगावत खुलेआम हो चुकी है। पार्टी के भीतर कई पुराने नेता टिकट न मिलने से नाराज हैं और निर्दलीय नामांकन दाखिल कर चुके हैं। वहीं लोजपा (रामविलास) को मिली चार विधानसभा सीटों पर नीतीश कुमार ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं यानी दोस्ताना अब महज औपचारिक नाता बनकर रह गया है।
सीएम के स्वास्थ्य को लेकर भ्रम
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नीतीश-अमित शाह की मुलाकात पर तंज कसते हुए नीतीश की सेहत और सक्रियता पर सवाल उठाया है। इससे पहले चिराग पासवान भी सीएम नीतिश कुमार की हेल्थ को लेकर सवाल उठा चुके हैं उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि मुख्यमंत्री की जगह अब उनके अधिकारी शासन चला रहे हैं। हालांकि चुनावी मौसम और गृहमंत्री से मुलाकात के बाद उनके सुर बदले हैं और उन्होंने इंडिया गठबंधन पर सवाल दागे हैं।
कौन टिकेगा और कौन टूटेगा
बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाता अब यह देख रहे हैं कि कौन टिकेगा और कौन टूटेगा। जदयू के बागियों की बढ़ती संख्या, लोजपा की बगावती मुद्रा और भाजपा के भीतर असंतोष ने मिलकर गठबंधन की एकता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि अगर यह हाल रहा तो एनडीए का प्रदर्शन पहले फेज में उम्मीद से काफी नीचे जा सकता है। कुल मिलाकर बिहार की राजनीति में फिलहाल चुनाव से ज़्यादा चुनौती का मौसम चल रहा है। एक तरफ नीतीश कुमार अपनी साख बचाने में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव बदलाव के नारे के साथ जनता के दिल में उतरने की कोशिश कर रहे हैं। पहले चरण की वोटिंग से पहले ही यह साफ दिख रहा है कि बिहार की सियासत में बगावत की बेलें फल-फूल रही हैं और गठबंधन की दीवारों में दरारें गहरी होती जा रही हैं।
इस बार मामला ज्यादा नाजुक
बिहार की सियासत में यह नजारा नया नहीं लेकिन इस बार मामला ज़्यादा नाजुक है। नीतीश कुमार का दबदबा कमजोर पड़ रहा है और भाजपा के भीतर से भी आवाजें उठना शुरू हो चुकी है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अश्वनी चौबे जैसे सीनियर नेता के बेटे की बगावत ने पार्टी को असहज कर दिया है। यानी एनडीए की नाव में अब हर कोई अपनी पतवार चला रहा है। अमित शाह और जेपी नड्डा के लिए यह स्थिति सिरदर्द बन चुकी है। दिल्ली में लगातार मीटिंगें हो रही हैं लेकिन बिहार के ज़मीनी समीकरण दिल्ली की रणनीति पर भारी पड़ रहे हैं।
कांग्रेस राजद चुपचाप आगे बढ़़ रहे हैं
वहीं विपक्ष बिल्कुल अलग मूड में है। राजद और कांग्रेस ने चुपचाप टिकट बंटवारा निपटा लिया है और अब मैदान में उतर चुके हैं। कांग्रेस ने आज अपने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है जिसमें सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के नाम प्रमुख हैं। पार्टी ने संकेत दे दिया है कि वह इस बार फ्रंट फुट पर खेलेगी। राजद की ओर से तेजस्वी यादव लगातार जनसंपर्क में जुटे हैं। उनकी रणनीति साफ है।
सीएम-गृहमंत्री की मुलाकात
बिहार के सीएम नीतीश और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मुलाकात को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है। कहा जा रहा है कि यह औपचारिक बैठक नहीं थी बल्कि भविष्य की गारंटी मांगने की कोशिश थी। जदयू के भीतर सुगबुगाहट है कि नीतीश अब थक चुके हैं उनको लेकर जिन लोगों के टिकट कटे हैं वह बड़े बयान जारी कर रहे हैं। जदयू में खींचतान चरम पर है। इनही सब मुददों को लेकर व उनके चुनाव प्रचार अभियान की तारीखों को लेकर बैठक थी। बैठक मे तय किया गया है कि 21 अक्टूबर से नीतीश अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करेंगे। पहली सभा मुजफ्फरपुर में तय है। लेकिन जनता के मन में सवाल वही तैर रहे हैं कि नीतीश किसके हैं?




