अंकिता भंडारी हत्याकांड में सप्लीमेंट्री चार्जशीटदाखिल करने की दरकरार, जानिए क्या होती है सप्लीमेंट्री चार्जशीट?
देहरादून। उत्तराखंड के सनसनीखेज अंकिता भंडारी हत्याकांड के मुलजिमों के खिलाफ राज्य पुलिस ने चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी है. राज्य पुलिस के प्रवक्ता और अपर पुलिस महानिदेशक (अपराध और कानून-व्यवस्था) वीमुरूगेशन पहले ही बता चुके हैं. चार्जशीट कोर्ट में दाखिल किए जाने के साथ ही उन्होंने इस बात की भी प्रबल संभावनाएं भी जताई कि अंकिता भंडारी हत्याकांड में सप्लीमेंट्री चार्जशीट (पूरक आरोप पत्र) कोर्ट में दाखिल करनी पड़ सकती है. आइए जानते हैं कि आखिर क्या है यह सप्लीमेंट्री चार्जशीट? कानूनन इसका कितना महत्व है? क्या फर्क होता है चार्जशीट और सप्लीमेंट्री चार्जशीट में?
मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दाखिल की गई इस 500 से ज्यादा पन्नों की चार्जशीट में, 100 से ज्यादा गवाह शामिल किए गए हैं. एसआईटी के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, चार्जशीट में, तीनों मुख्य हत्यारोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 201, 120 बी, 354 क और अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम की धारा 5(1) बी के तहत आरोप लगाए गए हैं. उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय के सूत्रों की मानें तो मामले की आगे की जांच अभी जारी रहेगी. जिसमें मुलजिमों के नार्को टेस्ट, पॉलीग्राफ टेस्ट और अन्य बिंदु शामिल किए जाने की प्रबल संभावनाएं हैं. जांच कर रही एसआईटी का दावा है कि उसने, आरोपियों के खिलाफ अभी तक तमाम मजबूत सबूत जुटा लिए हैं. जो आरोपियों को मुजरिम करार दिलवाने में कारगर साबित हो सकते हैं. इन सबूतों में अंकिता भंडारी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को एफएसएल जांच के लिए भेजकर प्राप्त की गई रिपोट्र्स और गवाहों के बयान शामिल हैं.
क्या होती है ‘सप्लीमेंट्री चार्जशीट’?
साल 2021 में एक मामले की सुनवाई के दौरान कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था कि, पूरक चार्जशीट (सप्लीमेंट्री चार्जशीट ) केवल आरोपी के खिलाफ एकत्र की गई एक अतिरिक्त सामग्री (लिखित कानूनी दस्तावेज) है. जिस पर सीआरपीसी की धारा 167 (2) (डिफ़ॉल्ट जमानत) के प्रावधान लागू नहीं किए जा सकते हैं. हाईकोर्ट ने आगे कहा कि, सीआरपीसी की धारा 167(2) केवल तभी लागू होती है जब आरोप पत्र निर्धारित नहीं किया जाता है. यह जांच के दौरान आरोपी को गिरफ्तार किए जाने पर लागू होता है मगर, अगर विशेष आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया जाता है और, पूरक आरोप पत्र (सप्लीमेंट्री चार्जशीट) अन्य आरोपियों के खिलाफ या अतिरिक्त सबूत के लिए दाखिल किया जाता है तो, सीआरपीसी की धारा 167 (2) के प्रावधान लागू नहीं हो सकते.
क्या है अंकिता हत्याकांड
इस बीच यहां बताना जरूरी है कि उत्तराखंड के ऋषिकेश के करीब पौड़ी जिले के गंगा भोगपुर इलाके में वनंत्रा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट पद पर तैनात 19 साल की अंकिता भंडारी का सितंबर 2022 में कत्ल कर डाला गया था. आरोपी के बतौर पुलिस ने रिजॉर्ट मालिक संचालक पुलकित आर्य और उसके दो कर्मचारियों सौरभ भास्कर व अंकित गुप्ता को गिरफ्तार किया गया था. तीनों ही अभी तक जेल में बंद हैं. अंकिता को हत्यारोपियों ने चीला नहर में धक्का देकर मार डाला था. क्योंकि अंकिता ने रिजॉर्ट में वीआईपी को एक्स्ट्रा सर्विस देने से इनकार कर दिया था. घटना को लेकर मचे बवाल के बाद उत्तराखंड सरकार ने जांच के लिए उप महानिरीक्षक पी रेणुका देवी के नेतृत्व में स्पेशल जांच टीम का गठन किया था. इसी एसआईटी को अब अंकिता भंडारी हत्याकांड में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करनी है.
हत्याकांड के तीनों आरोपी जेल में
ऋषिकेश के निकट पौड़ी जिले के गंगा भोगपुर क्षेत्र में वनंत्रा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करने वाली 19 वर्षीया अंकिता की सितंबर में कथित तौर पर रिजॉर्ट संचालक पुलकित आर्य ने अपने दो कर्मचारियों, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता के साथ मिलकर चीला नहर में धक्का देकर हत्या कर दी थी. पूछताछ में सामने आया कि कथित तौर पर किसी वीआईपी को ‘एक्स्ट्रा सर्विस’ देने से मना करने पर अंकिता की हत्या की गई. घटना के सामने आने के बाद तीनों आरोपियों को गिरफ्तार करके जेल भेजा जा चुका है. हत्या से उपजे जनाक्रोश के बाद राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए पुलिस उपमहानिरीक्षक पी रेणुका देवी के नेतृत्व में विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया.
हत्याकांड में क्यों सप्लीमेंट्री चार्जशीट की दरकरार?
अब अंकिता भंडारी हत्याकांड में चार्जशीट दाखिल करते ही एसआईटी ने भी इस बात की आशंका जताई है कि, मामले में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करने की जरूरत पड़ सकती है. क्योंकि अभी तक आरोपियों के नार्को टेस्ट वगैरह नहीं हो सके हैं. निर्भया हत्याकांड में मुजरिमों के पक्षकार वकील रहे सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर डॉ. एपी सिंह कहते हैं, सप्लीमेंट्री चार्जशीट दरअसल एक वो दस्तावेज है जिसे, हिंदुस्तान में कानूनी मान्यता मिली हुई है. जब भी कोई जांच एजेंसी 90 दिन के भीतर किसी मुकदमे में पहली और मुख्य चार्जशीट दाखिल कर देती है. इसके बाद भी मगर जांच पूरी न हुई हो तो, कोर्ट से विशेष अनुरोध करके जांच एजेंसी (पड़ताली अधिकारी) पूरक चार्जशीट (सप्लीमेंट्री चार्जशीट) कोर्ट में अलग से दाखिल करने की अनुमति लेती है.