न खाता, न बही, अशोक सिंह जो करें वही सही

शासन की ट्रांसफर नीति ठेंगे पे, महज 1 वर्ष में फिर लखनऊ वापसी

नगर निगम के विवादित अधिकारी अशोक सिंह पर क्यों नहीं लागू हो रही जीरो टारलेंस नीति
कई सालों से नगर निगम में जमे हैं अशोक सिंह

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। लखनऊ नगर निगम कार्य संस्कृति एक बार फिर तार—तार हुई है। हम आप को बता दें कि बड़ी—बड़ी बातों और ट्रांस्पेरेंस नीतियों के बीच नगर निगम के विवादास्पद अधिकारी अशोक सिंह की दोबारा से एंट्री हो चुकी है। आखिर क्या कारण है कि महज एक वर्ष में ही उन्हें अलीगढ़ से लखनऊ बुला लिया गया।
क्या लखनऊ नगर निगम में अधिकारियों की कमी है? क्या कोई दूसरा अधिकारी अशोक सिंह की तुलना में काम नहीं कर पा रहा है या फिर यहां कोई दूसरा तंत्र काम कर रहा है। आखिर क्या कारण है कि अशोक सिंह लखनऊ नगर निगम से दूर कहीं जाना ही नहीं चाहते। गौरतलब है कि 14 वर्षों के लगातार लखनऊ प्रवास के बाद अशोक सिंह का लखनऊ से बाहर ट्रांसफर हुआ था। लेकिन एक वर्ष में ही अशोक सिंह ने जुगाड़ लगा कर दोबारा से लखनऊ में ट्रांसफर करवा लिया।

 

ज्यादा कुछ लिखने की जरूरत नहीं, अपने लिए खुद कानून बनाते हैं अशोक सिंह

अशोक सिंह के बारे में ज्यादा कुछ लिखने की जरूरत नहीं। आंकड़े आपने आप गवाही दे रहे हैं कि वह कितने पॉवरफुल है। उनके आगे किसी की नहीं चलती। वह अपने लिए कानून खुद बनाते हैं। शासन नीति अशोक सिंह पे नहीं लागू होती एक साल पहले लखनऊ से अलीगढ़ ट्रांसफर हुआ उसके एक साल बाद फिर से लखनऊ नगर निगम मुख्य कर निर्धारण अधिकारी पद पर वापसी हो गई । शासनादेश भी ये कहता है कि जिस व्यक्ति के तीन साल का कार्यकाल पूरा हो चुका हो उसी का स्थानांतरण किया जाए। पर अशोक सिंह ने अपने मजबूत पकड़ के चलते शासन से फिर एक साल के भीतर ही अपना ट्रांसफर लखनऊ नगर निगम करा लिया।

जरा ध्यान दें…

अशोक सिंह जुलाई 2007 में कर निर्धारण अधिकारी लखनऊ नगर निगम बनें। महज एक माह के भीतर उन्हें लखनऊ के जोन 3 का जोन अधिकारी बना दिया गया। फिर मार्च 2011 में लखनऊ जोन 6 के जोन अधिकारी बना दिये गये। 2012 में उन्हें गाजियाबाद भेजा गया जहां से महज 2 वर्ष के भीतर ही वह लखनऊ नगर निगम में वापस आ गये। वर्ष 2014 में उन्हें लखनऊ नगर निगम जोन 1 का जोनल अधिकारी बना दिया गया। बड़ी मुश्किल से 2023 में अलीगढ़ ट्रांस्फर हुआ और एक वर्ष में ही वह दोबारा से लखनऊ वापस आ गये।

विवादों से घिरे रहते हैं अशोक सिंह

लखनऊ नगर निगम के मुख्य कर निर्धारण अधिकारी अशोक सिंह लगातार विवादों में बने रहे हैं। अशोक सिंह के लिए सभी नियम कायदे भी कोई मायने नहीं रखते हैं। वो जो चाहते हैं, करते हैं। यही वजह है कि वो जोन 3 के जोनल भी रह चुके हैं। आलम तो ये है कि अशोक सिंह कई सालों से नगर निगम में जमे है। इतना ही नहीं अशोक सिंह ने अपनी सेवाकाल के अधिकांश वर्ष नगर निगम लखनऊ में ही बिता दिए। उनपर पर सीधे आरोप लगे हैं कि वह खुद नगर निगम कर्मचारियों के ट्रांसफर में बड़ा खेल करते हैं और अपने चाहने वालों को मनचाही जगहों पे भेज देते हैं। अशोक सिंह के कई भ्रष्टाचारी लाडले वर्षों से नगर निगम के जोनो को चूना लगा रहे हैं। अशोक सिंह एक लंबे समय से पूरे विभाग को दीमक की तरह कुतर रहे हैं, लेकिन उनके लिए कोई नियम कायदे मायने  नहीं रखते हैं।

मुंबई हमले का दोषी तहव्वुर राणा लाया जाएगा भारत

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्यर्पण को दी मंजूरी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
वाशिंगटन। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हमले का दोषी तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने मामले में उसकी दोषसिद्धि के खिलाफ समीक्षा याचिका खारिज कर दी है।भारत कई साल से पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक राणा के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा था। राणा 2008 के 26/11 मुंबई आतंकवादी हमलों का दोषी है।
आतंकी राणा के पास भारत प्रत्यर्पित न किए जाने का यह आखिरी कानूनी मौका था। इससे पहले, वह सैन फ्रांसिस्को में उत्तरी सर्किट के लिए अमेरिकी अपील न्यायालय सहित कई संघीय अदालतों में कानूनी लड़ाई हार चुका था। 13 नवंबर को राणा ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में प्रमाणपत्र के लिए याचिका दायर की थी। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के एक दिन बाद 21 जनवरी को शीर्ष अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका स्वीकार करने योग्य नहीं है। राणा फिलहाल लॉस एंजिल्स के मेट्रोपोलिटन डिटेंशन सेंटर में हिरासत में है। तहव्वुर राणा 26/11 मुंबई आतंकी हमले का गुनहगार माना जाता है। अमेरिका की अदालत ने अब प्रत्यर्पण पर मुहर लगा दी है। एफबीआई ने साल 2009 में राणा को शिकागो से दबोचा था।
पाकिस्तानी मूल के कनाडाई कारोबारी तहव्वुर राणा अब जल्द भारत लाया जाएगा।

चुनाव आयोग का रवैया पक्षपाती: खरगे

कांग्रेस का भाजपा पर निशाना, संस्थानों की स्वतंत्रता की रक्षा पर दिया जोर

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी ने शनिवार को चुनावी मामलों से निपटने के लिए चुनाव आयोग की आलोचना की और उस पर संविधान को कमजोर करने और मतदाताओं का अपमान करने का आरोप लगाया। यह आलोचना तब हुई जब देश ने 25 जनवरी 1950 को चुनाव आयोग की स्थापना के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि आयोग की संस्थागत ईमानदारी का लगातार क्षरण गंभीर राष्ट्रीय चिंता का विषय है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि हरियाणा और महाराष्ट्र के हाल के विधानसभा चुनावों को लेकर व्यक्त की गई चिंताओं पर आयोग का रुख आश्चर्यजनक रूप से पक्षपात से भरा रहा है।
मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने ट्वीट में लिखा कि भले ही हम राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाते हैं, पिछले दस वर्षों में भारत के चुनाव आयोग की संस्थागत अखंडता का लगातार क्षरण गंभीर राष्टï्रीय चिंता का विषय है। हमारा भारत का चुनाव आयोग और हमारा संसदीय लोकतंत्र, व्यापक संदेह के बावजूद, दशकों से निष्पक्ष, स्वतंत्र और विश्व स्तर पर अनुकरण के लिए आदर्श बन गया है। उन्होंने कहा कि सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की प्राप्ति, पंचायत और शहरी स्थानीय निकायों के जमीनी स्तर तक फैली हुई, हमारे संस्थापकों के दृष्टिकोण का प्रतीक है।

पिछले एक दशक में निर्वाचन आयोग के पेशेवर रवैये पर हुआ प्रहार : जयराम रमेश

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि ऐसे ही कई अन्य प्रतिष्ठित मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं जिनमें टीएन शेषन का सबसे विशेष स्थान है – उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने दावा किया, ‘‘अफसोस की बात है कि पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की जोड़ी ने निर्वाचन आयोग के पेशेवर रवैये और स्वतंत्रता के साथ गंभीर रूप से छेड़छाड़ किया है। इसके कुछ फैसलों को अब उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा रही है।’’ उन्होंने कहा कि हरियाणा और महाराष्ट्र के हाल के विधानसभा चुनावों को लेकर व्यक्त की गई चिंताओं पर इसका रुख आश्चर्यजनक रूप से पक्षपात से भरा रहा है।

रमेश ने यह दावा भी किया,‘‘आज ख़ुद को खूब बधाइयां दी जाएंगी, लेकिन इससे यह तथ्य सामने नहीं आएगा कि आज जिस तरह से निर्वाचन आयोग काम कर रहा है वह संविधान का मज़ाक और मतदाताओं का अपमान है।

 

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