शपथ से पहले लगे नीतीश के पोस्टर, नीतीश के आगे मोदी-शाह ने घुटने टेके?
क्या शपथ से पहले छिड़ गई है पोस्टर वॉर? क्या मोदी पर नीतीश बना रहे हैं दबाव? क्या नरेंदर ने फिर किया सरेंडर? बिहार का रिजल्ट आते ही अब इस बात को लेकर जंग शुरू हो गई कि आखिर बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?

4पीएम न्यूज नेटवर्क: क्या शपथ से पहले छिड़ गई है पोस्टर वॉर? क्या मोदी पर नीतीश बना रहे हैं दबाव? क्या नरेंदर ने फिर किया सरेंडर? बिहार का रिजल्ट आते ही अब इस बात को लेकर जंग शुरू हो गई कि आखिर बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?
अभी तक तो लग रहा था कि नीतीश को अब मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता है लेकिन मोदी-शाह की चुप्पी ने संदेह पैदा कर दियी है। इस बीच नीतीश ने ऐसी चाल चली है जिसको एक दबाव बनाने की रणनीति कहा जा सकता है, जिसका मकसद मोदी शाह को मैसेज देना है कि मेरे नाम पर मुहर लगाओ, नहीं तो ये समझो कि मैं सरकार में आ जाउंगा चाहे इसके लिए विपक्ष से हाथ मिलाना पड़े। वहीं नीतीश के एक खास मंत्री ने भी नीतीश के मुख्यमंत्री बनने को लेकर एक ऐसा बयान दिया है जिससे एनडीए खेमें में हल चल मच गई है। तो नीतीश ने ऐसी कौन सी चाल चली है जिसके आगे मोदी शाह अब घुटने टेक देंगे और नीतीश ने मंत्री ने क्या कुछ कहा है सब बताएंगे आपको इस वीडियो में।
चुनाव खत्म हो चुका है, ज्ञानेश कुमार का खत्म हो चुका है, और एनडीए को प्रचंड बहुमत भी मिल चुका है, लेकिन असली सवाल अब भी हवा में तैर रहा है कि बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? पटना से लेकर दिल्ली के कॉरिडोर तक, हर तरफ सिर्फ एक ही चर्चा है कि क्या नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे या भाजपा अपने सबसे बड़े दल होने का फायदा उठाकर पहली बार बिहार में अपना मुख्यमंत्री बिठाएगी। हालात बताते हैं कि तस्वीर साफ है, लेकिन फिर भी धुंध छंटने का नाम नहीं ले रही।
नतीजे आते ही जेडीयू ने जिस आक्रामक तरीके से दावा किया कि बिहार में मुख्यमंत्री पद की कोई वैकेंसी नहीं है और नीतीश कुमार ही शपथ लेंगे, उसने पूरा माहौल बदल दिया है। बीजेपी चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, सीटें भी जेडीयू से ज्यादा लाई है, लेकिन फिर भी जेडीयू ने बेहद तेज़ी से यह मैसेज दे दिया है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसी और के बैठने की कल्पना भी न की जाए। दरअसल, नतीजों के बाद से कुछ लोगों का दावा है कि भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाएगी। लेकिन जेडीयू ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है।
पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू के दौरान ऐसे तमाम अटलकों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि बिहार में एनडीए एकजुट है। जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने साफ कहा कि एनडीए एकजुट है और नीतीश ही सुशासन का एकमात्र चेहरा हैं। इस बयान ने भाजपा की उम्मीदों पर एक धक्का लगा दिया है, लेकिन भाजपा की तरफ से अभी भी चुप्पी एक अजीब रहस्य बना रही है।
इस बीच जेडीयू ने सोशल मीडिया पर जो पोस्टर जारी किया है, उसने पूरे राजनीतिक माहौल पर एक अलग तरह की गर्मी डाल दी है। इस पोस्टर में नीतीश कुमार की बड़ी तस्वीर है और नीचे लिखा है – “बिहार है खुशहाल, फिर से आ गए नीतीश कुमार।” और कैप्शन—“खुशहाल है बिहार… सुरक्षित है बिहार।” अब देखिए यह किसी साधारण पोस्टर का मैसेज नहीं है, यह एक political signal है, जिसे देखकर ही लोगों ने समझ लिया कि जेडीयू ने गठबंधन के भीतर अपना कार्ड खुलकर खेल दिया है। यह सीधा संदेश है कि नीतीश ही लौटेंगे, और अगर किसी को इस व्यवस्था में रहना है, तो इस फैसले के साथ रहना होगा।
दिलचस्प बात यह है कि एनडीए की आधिकारिक बैठक अभी बाकी है। भाजपा, जेडीयू, लोजपा-आर, हम और आरएलएम—सब मिलकर अपने विधायक दल के नेता चुनेंगे और फिर मुख्यमंत्री पर अंतिम मुहर लगेगी। लेकिन बैठक से पहले ही जेडीयू ने जिस तरह माहौल बनाया, उसने भाजपा के लिए रास्ता और मुश्किल कर दिया है। भाजपा के कई नेताओं का मानना है कि बिहार में पहली बार भाजपा का मुख्यमंत्री बन सकता है, लेकिन उसी के साथ एक लाइन हमेशा जोड़ दी जाती है कि अगर नीतीश सहमत हों तो। इसका मतलब साफ है कि असली चाबी अभी भी नीतीश कुमार के पास है।
कहने को मोदी-शाह बड़े दल की ताकत रखती है, पर सत्ता की चाबी उस नेता के पास है जिसने बिहार की राजनीति को पिछले दो दशकों से अपनी दिशा में मोड़ा है। चिराग पासवान ने भी मीडिया से साफ संकेत दे दिए कि नीतीश ही मुख्यमंत्री बनें, इसमें कोई संशय नहीं। उनका बयान जेडीयू को और मजबूत करता है, क्योंकि चिराग, जो कभी नीतीश के सबसे बड़े विरोधी बने घूमते थे, आज वही नीतीश को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के समर्थन में खड़े हैं। उनका कहना था कि गठबंधन की एकता सबसे ज़रूरी है और अगर नेतृत्व तय है तो उस पर सवाल नहीं उठना चाहिए।
चिराग का यह बदलता हुआ सुर भी इस बात की पुष्टि करता है कि कहीं न कहीं गठबंधन के भीतर पहले ही फैसला हो चुका है, बस औपचारिकता बाकी है। भाजपा की ओर से वही पुराना, संतुलित जवाब दिया जा रहा है कि “केंद्रीय नेतृत्व फैसला करेगा।” इससे माहौल में और भी धुंध बढ़ी है, क्योंकि भाजपा यह कहने को तैयार नहीं कि वो सीएम पद नहीं चाहती, लेकिन यह भी नहीं कह रही कि वो नीतीश को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। यह राजनीतिक चुप्पी तब और दिलचस्प हो जाती है जब अंदरखाने से खबर आती है कि भाजपा सिर्फ एक ही स्थिति में मुख्यमंत्री बनाएगी अगर नीतीश खुद कहें। यानी गेंद भाजपा के पाले में नहीं है, वह नीतीश के कदम का इंतज़ार कर रही है। यह वही नीतीश कुमार हैं जिनके बारे में विपक्ष ने चुनाव से पहले कहा था कि भाजपा उन्हें sidelined कर चुकी है, लेकिन नतीजों के बाद तस्वीर बिलकुल उलटती दिख रही है।
जेडीयू के पोस्टर ने इस पूरे मामले को और विस्फोटक बना दिया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस पोस्टर का timing ही सबसे बड़ा संदेश है। नतीजे आए, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, सत्ता संतुलन बदला, अटकलें तेज हुईं—और उसी वक्त जेडीयू ने नीतीश को चेहरे के रूप में पेश कर दिया। पोस्टर में लिखा हर शब्द एक दबाव की तरह काम करता है, जैसे जेडीयू साफ कह रही हो कि जनादेश चाहे जिसे मिले, मुख्यमंत्री वही बनेगा जिसे हम तय करेंगे। जेडीयू का यह रवैया भाजपा को एक तरह से यह समझाने की कोशिश है कि गठबंधन नेतृत्व अभी भी नीतीश के हाथ में है।
सियासत का खेल यही है—जो वक्त पर narrative सेट कर दे, वही आगे बढ़ता है। जेडीयू ने narrative सेट कर दिया है। भाजपा ने अभी तक उसे चुनौती नहीं दी। न विरोध, न समर्थन, बस चुप्पी। और राजनीति में चुप्पी भी बहुत कुछ कहती है। बिहार की जनता भी अब यही सवाल पूछ रही है कि आखिर भाजपा खुलकर क्यों नहीं कह रही? क्या अंदर ही अंदर सहमति बन गई है? क्या केन्द्रीय नेतृत्व पहले ही तय कर चुका है कि गठबंधन की मजबूती के लिए नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाना है? या भाजपा इंतज़ार कर रही है कि नीतीश खुद पहल करें? यह सस्पेंस पूरे माहौल को और नाटकीय बना देता है।
इधर एनडीए के छोटे दल भी नीतीश के साथ खड़े दिख रहे हैं। लोजपा-आर, हम और आरएलएम—इन सबके नेताओं ने कहा कि स्थिरता ज़रूरी है और अनुभव वाला नेतृत्व चाहिए। यानी indirectly सभी ने उसी तरफ झुकाव कर दिया है जिसका पोस्टर जेडीयू ने जारी किया है। अब हर किसी की निगाहें उस बैठक पर टिकी हैं जहाँ अंतिम फैसला होगा, लेकिन राजनीतिक हवा पहले ही बता रही है कि फैसला शायद हो चुका है। जेडीयू का पोस्टर महज एक पोस्टर नहीं, बल्कि एक आत्मविश्वास भरा दावा था, और इस दावे का असर इतना गहरा है कि पूरी बहस ही बदल गई है। अब लोगों में यह चर्चा नहीं कि भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाएगी, बल्कि यह कि नीतीश कब शपथ लेंगे।
वहीं अंदरखाने बात चल रही है कि अगर नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी नहीं मिली तो क्या वो फिर से पलटी मारकर तेजस्वी के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे? या फिर कुछ और बड़ा होने वाला है। अब देखिए चुनावी आंकड़े कुछ ऐसे बैठे हैं कि विपक्ष बार बार नीतीश कुमार को खुला ऑफर दे रहा है जिससे मोदी-शाह और दबाव में आ गए हैं। तो क्या इस दबाव में आकर भाजपा नीतीश को ही अपना मुख्यमंत्री बना लेगी या फिर वो अपनी मनमानी करेगी, ये एक अहम सवाल है। नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के उस मोड़ पर खड़े हैं जहाँ वे चाहे तो भाजपा की महत्वाकांक्षा को एक झटके में रोक सकते हैं, और चाहे तो खुद पीछे हटकर बिहार को पहली बार भाजपा का मुख्यमंत्री देने का रास्ता भी खोल सकते हैं।
लेकिन अभी की तस्वीर बताती है कि नीतीश इस बार भी पीछे हटने वाले नहीं। उन्होंने सत्ता संतुलन को अपनी ओर मोड़ लिया है और जेडीयू ने यह संदेश जनता, गठबंधन और भाजपा—सबको साफ-साफ दे दिया है। यह कहानी अब सिर्फ मुख्यमंत्री चुनने की नहीं रही, यह बिहार की राजनीति में शक्ति-संतुलन की कहानी बन चुकी है। गठबंधन की मजबूरी, दलों की चाहत, नतीजों की सच्चाई और नेताओं की महत्वाकांक्षा—सब मिलकर एक ऐसी तस्वीर बना रहे हैं, जिसका नतीजा वही होगा जो शायद पहले से तय हो चुका है। और उस तस्वीर में सबसे बड़ी, सबसे उभरती हुई और सबसे नियंत्रण वाली ताकत अभी भी सिर्फ एक ही है—नीतीश कुमार।



