अब सियासी दलों के निशाने पर आएगा आरवीएम!

  • घर से दूर रहने वाले वोटरों को उसी स्थान पर वोटिंंग का मिलेगा अधिकार
  • राजनैतिक पार्टियों ने चुनाव आयोग के डेमो में नही ली दिलचस्पी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। ईवीएम के बाद आरवीएम भी राजनीतिक दलों के निशाने पर आ सकता है। अभी हाल ही मे चुनाव आयोग में इससे संबंधित एक डेमो का आयोजन किया गया था। इसके प्रस्तुतीकरण में कुछ दल ही पहंचे थे। कांग्रेस जैसे दल ने इसमे खास दिलचस्पी नही ली। अभी से सियासी दलों ने आरवीएम को लेकर हो-हल्ला मचाना शुरू कर दिया है, हालांकि राजनैतिक पार्टियां इसके इस्तेमाल गलत नही मान रही। उनका कहना है कि सभी तरह की शंकाओं को दूर करके आपसी सहमति से है इसके प्रयोग की इजाजत दी जाए। पर इन सबके बावजूद लगता नहीं है कि लोगों को जल्द आरवीएम का इस्तेमाल करने को मिल पाएगा। अब 31 जनवरी के बाद ही पता चलेगा की सभी राजनीतिक दलों की मंशा क्या है।
चुनाव आयोग ने सोमवार को देश के तमाम राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (आरवीएम) का प्रदर्शन किया। इसका मकसद देश में अपने गृह जिलों से दूर रहने वाले मतदाताओं को वहीं से वोट करने की सुविधा देना है। इसमें दो राय नहीं कि चुनाव आयोग की इस पहल का मकसद अच्छा है। चुनावों में मतदान का कम प्रतिशत देश में आदर्श लोकतंत्र की राह में किसी न किसी रूप में बाधा बनता है। देखा गया है कि बड़े शहरों में काम करने गए मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ वोट देने के लिए अपने गांव नहीं लौट पाता। इस तरह से वह वोट देने के अधिकार से वंचित रह जाता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में ऐसे वोटरों की संख्या 45.36 करोड़ है, जो अपने गृह जिलों से बाहर रहते हैं। देश की कुल आबादी के मुकाबले यह संख्या करीब 37 फीसदी है। 2019 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो उसमें 67.4 फीसदी मतदान रेकॉर्ड किया गया था। इन आंकड़ों का मतलब यह नहीं है कि कम मतदान प्रतिशत का एकमात्र कारण इन मतदाताओं का वोटिंग से दूर रहना है, लेकिन यह एक बड़ा कारण जरूर है। वैसे भी मतदाताओं की इतनी बड़ी संख्या को उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता। उन्हें सुविधाजनक ढंग से वोटिंग प्रक्रिया में शामिल करने की व्यवस्था करना चुनाव आयोग का दायित्व है। इस लिहाज से आरवीएम निश्चित रूप से अच्छा कदम है। लेकिन कंग्रेस सहित देश के 16 विपक्षी दलों ने एक बैठक कर चुनाव आयोग की इस पहल के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए इसका विरोध करने का फैसला किया। इनका कहना है कि इस पहल से जुड़ी कई चीजें अभी साफ नहीं हैं। इनके अपने संदेह, सवाल और आशंकाएं हैं। हालांकि इन दलों ने अभी चुनाव आयोग को औपचारिक तौर पर अपने रुख से वाकिफ नहीं कराया है। ये दल अब 25 जनवरी को एक और बैठक करेंगे, जिसमें उनके सवालों पर चुनाव आयोग के रुख की समीक्षा की जाएगी।

बनेंगेे आरवीएम सेंटर

चुनाव आयोग के अनुसार, ऐसे वोटरों के लिए आरवीएम सेंटर बनाए जाएंगे। इन आरवीएम सेंटर्स पर जाकर वोटर अपने निर्वाचन क्षेत्र की जानकारी ले सकता है, निर्वाचन क्षेत्र को चुनने पर मतदाता के सामने प्रत्याशियों की लिस्ट आ जाएगी। जिनमें से वो अपने पसंदीदा प्रत्याशी को बिना गृह राज्य लौटे ही वोट कर सकेगा, इस तरह से मतदाताओं को वोट डालने के लिए वो जहां हैं, वहीं से उन्हें वोट डालने का अधिकार मिल जाएगा, इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की ओर से बनाई गई इस रिमोट वोटिंग मशीन में एक साथ 72 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए मतदान करवाया जा सकता है।

रिमोट वोटिंग मशीन क्या है

रिमोट वोटिंग मशीन यानी आरवीएम के बारे में सबसे पहले जानकारी बीते साल 29 दिसंबर को सामने आई थी। चुनाव आयोग ने इसके बारे में बताते हुए कहा था कि आरवीएम के जरिये घरेलू प्रवासी नागरिक यानी अपने गृह राज्य से बाहर रह रहे मतदाता भी वोट डाल सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर कोई मतदाता कानपुर में पैदा हुआ है और किसी कारण से दूसरे राज्य या किसी अन्य जगह रह रहा है, इस स्थिति में वो मतदाता वोट नहीं कर पाता है. आरवीएम की मदद से ऐसे मतदाताओं को भी वोटिंग का अधिकार दिया जाएगा। ईवीएम की तरह ही आरवीएम के लिए किसी तरह के इंटरनेट या कनेक्टिविटी की जरूरत नहीं होती है।

ऐसे गिने जाएंगे आरवीएम के वोट?

आरवीएम में लगभग सभी चीजें ईवीएम की तरह ही काम करती हैं, ईवीएम की यूनिट की तरह ही आरवीएम की यूनिट राज्य, निर्वाचन क्षेत्र और उम्मीदवार को दिया गया वोट दर्ज हो जाएगा।आरवीएम के साथ लगी वीवीपैट मशीन में भी ईवीएम की तरह ही पर्ची में सारे विवरण प्रिंट होकर वोटर को दिखेंगे, मतगणना के दौरान आरवीएम में दिए गए वोट के आंकड़ों को संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के कुल वोटों से जोड़ दिया जाएगा।

आरवीएम पर चर्चे की शुरुआत?

कुछ साल पहले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने इस विषय पर एक स्टडी की थी। जिसमें सामने आया था कि प्रवासी मतदाताओं के मताधिकार का इस्तेमाल न करने की वजह से मतदान पर असर पड़ता है। 29 अगस्त 2016 को चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के साथ इस पर चर्चा की। जिसमें इंटरनेट वोटिंग, प्रॉक्सी वोटिंग, तय तारीख से पहले मतदान और पोस्टल बैलेट से प्रवासियों के लिए वोटिंग कराने पर विचार किया गया. हालांकि, इस पर सहमति नहीं बन पाई। इसके बाद चुनाव आयोग ने आईआईटी के संस्थानों के साथ मिलकर रिमोट वोटिंग मशीन पर एक रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू किया. इसमें मतदाताओं को उनके गृह राज्य से दूर मतदान केंद्रों पर टू-वे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करके बायोमेट्रिक डिवाइस और वेब कैमरे की मदद से वोट डालने की अनुमति देने की व्यवस्था बनाई गई।

वोट डालने के लिए क्या करना होगा?

प्रवासी मतदाताओं यानी किसी अन्य जगह रह रहे वोटरों को एक निश्चित समय के अंदर रिमोट वोटिंग के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन आवेदन करना होगाा। आवेदन के दौरान मतदाता की ओर से दी गई जानकारी को चुनाव आयोग की टीम उनके गृह निर्वाचन क्षेत्र की जानकारियों से प्रमाणित करेगी। प्रमाणित हो जाने पर प्रवासी मतदाताओं के लिए वोटिंग के समय आरवीएम सेंटर स्थापित किए जाएंगे, वोटर आईडी कार्ड को आरवीएम पर वोटिंग के लिए स्कैन किया जाएगा, जिसके बाद मतदाता को मताधिकार के इस्तेमाल का मौका मिलेगा।

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