अब छिड़ेगी शहरों पर कब्जे की लड़ाई

निकाय चुनाव को बिछ रही है बिसात

  • सभी सियासी पार्टियां तैयारी में जुटी
  • भाजपा ओबीसी व दलितों पर डालेगी डोरे

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। नगर निक ाय चुनावों की घोषणा होने में अभी समय है। पर राज्य में चुनावों को लेकर सरगर्मियां जोर लेने लगीं है। आमजन से लेकर खास तक में चर्चा हो रही शहरों में किस पार्टी की सरकार आएगी। मौजूदा समय में कई निकायों में भाजपा काबिज है सबसे ज्यादा दांव उसकी साख पर लगी है। जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी अपनीे दावेदारी मजबूती से ठोंकने की तैैयारी कर रही है। वहीं बहुजन पार्टी भी शहरी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के सारै पैंतरे आजमाने की जुगत लगा रही है। कांग्रेस पार्टी भी इन चुनावों में वजूद को तलाशने की तैयारी में हैं। किसको क्या मिलेगा ये तो चुनाव परिणाम ही बताएगा। पर इतना तो तय है निकाय चुनाव इसबार रोमांच जरूर पैदा करेंगे।
भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा आगामी नगरीय निकाय चुनाव के मद्देनजर दलितों के बीच संपर्क बढ़ाएगा। दलित लाभार्थियों से संवाद कर उन्हें मोदी-योगी सरकार में मिले लाभों को निरंतर रखने के लिए भाजपा की जीत का महत्व बताया जाएगा। वहीं केंद्र व प्रदेश सरकार की योजनाओं के लाभ से वंचित रहे पात्र दलितों का योजनाओं में पंजीकरण कराकर लाभ दिलाया जाएगा। भाजपा के स्थापना दिवस 6 अप्रैल से डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल तक बीजेपी सामाजिक न्याय सप्ताह मनाएगी। इस दौरान दलित बस्तियों में चिकित्सा शिविर, सहभोज सहित अन्य सेवा के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। पार्टी ने सामाजिक न्याय सप्ताह के जरिए समाज के प्रत्येक तबके और इलाके में पहुंचकर निकाय चुनाव की बिसात बिछाने की रणनीति बनाई है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह ने न्याय सप्ताह की तैयारियों की समीक्षा की। भाजयुमो की ओर से 7 अप्रैल को जिला व मंडल स्तर पर चिकित्सा शिविर और सहभोज के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। 8 अप्रैल को अनुसूचित जनजाति मोर्चा की ओर से जिला स्तर पर सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। रोजगार से संबंधित जानकारियां भी उपलब्ध कराई जाएंगी। किसान मोर्चा की ओर से 9 अप्रैल को प्राकृतिक खेती पर जनजागरण अभियान चलाया जाएगा। शहरी क्षेत्र में श्रीअन्न (मोटे अनाज) को लेकर जनजागरण अभियान चलाया जाएगा। महिला मोर्चा के की ओर से 10 अप्रैल को अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ जिला स्तर पर सहभोज के कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। पिछड़ा वर्ग मोर्चा की ओर से 11 अप्रैल को जिला स्तर पर महात्मा ज्योतिबा फूले की जयंती पर उनकी प्रतिमा एवं चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की जाएगी। मोदी-योगी सरकार की ओर से पिछड़े वर्ग के लिए किए गए कार्यों की चर्चा होगी। प्रत्येक जिले में वरिष्ठ कार्यकर्ता सम्मान समारोह का आयोजन भी किया जाएगा। 12 अप्रैल को प्रदेश भर में नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायत के सभी वार्डों में स्वच्छता अभियान चलाया जाएगा। 13 को मंडल स्तर पर वृक्षारोपण अभियान एवं जलाशयों की सफाई का अभियान चलाया जाएगा। 14 को डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर अनुसूचित जाति मोर्चा व पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से प्रदेश, जिला, मंडल व बूथ स्तर तक कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

सपा की स्थिति में सुधार

तब जब 2017 के मुकाबले राजनीतिक समीकरण काफी बदल चुके हैं। खासतौर से मुख्य विपक्षी दल सपा के पक्ष में परिस्थितियां भी 2017 के मुकाबले काफी बदली दिख रही हैं। तब सपा के विधायकों की संख्या 47 ही थी। इस बार इनकी संख्या 111 हो चुकी है। यही नहीं, सपा की जमीन मजबूत करने में पार्टी संस्थापक स्व. मुलायम सिंह यादव के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले शिवपाल सिंह यादव भी अब अखिलेश यादव के साथ हैं। पिछली बार दोनों एक-दूसरे के विरोध में थे। साफ है कि चाचा-भतीजे के कारण राजनीतिक परिस्थितियां पहले की तुलना में सपा के पक्ष में सुधरी दिख रही है। इस बार सपा के वोटों में 2017 के निकाय चुनाव जैसा बंटवारा होने की आशंका फिलहाल कम ही है। साथ ही 2017 के मुकाबले 2022 में ज्यादा संख्या में विधायकों की जीत भी उसके पक्ष में समीकरणों को मजबूत दिखा रही है। कारण, ये विधायक अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत दिखाने के लिए अपने क्षेत्रों के नगरीय निकायों में पार्टी उम्मीदवारों को जीत दिलाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाएंगे। ऊपर से पश्चिमी यूपी और पूर्वी यूपी के कई इलाके ऐसे हैं जहां 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी है।

भाजपा के लिए चुनौती बड़ी

लोकसभा चुनाव के ठीक पहले हो रहे नगर निकाय चुनाव भाजपा और सपा दोनों के लिए काफी अहम हैं। नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में भाजपा के लिए बढ़त बनाना बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े इन निकायों में सपा समर्थित सदस्यों की अच्छी खासी संख्या है। ऐसी सीटों पर कब्जा करने के लिए भाजपा को कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। दरअसल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड जीत मिली थी। इसके बाद हुए निकाय चुनाव में भाजपा ने 16 में 14 नगर निगमों में महापौर की सीटें जीती थीं, लेकिन बहुत से नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में अध्यक्ष और वार्डों में सपा, बसपा और कांग्रेस व निर्दलियों ने भाजपा के प्रचंड जीत की रफ्तार को रोका था। वहीं, इस बार निकायों की संख्या भी बढ़ गई है। नए में से ज्यादातर निकाय सपा के प्रभाव वाले क्षेत्र के माने जा रहे हैं। ऐसे में परिस्थितियां तब के मुकाबले इस बार ज्यादा जटिल नजर आ रही हैं। बीते तीन निकाय चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो पता चलता है कि शहरी इलाकों यानी नगर निगमों में भले ही भाजपा सबसे आगे रही हो, लेकिन, कस्बाई और ग्रामीण इलाकों से जुड़ी नगर पालिका परिषदों तथा नगर पंचायतों में उसे सपा-बसपा एवं निर्दलीयों से तगड़ी चुनौती मिलती रही है। लोकसभा एवं विधानसभा में जीत के विस्तार के साथ भाजपा का नगर पालिका परिषदों में तो प्रदर्शन सुधरा, लेकिन ज्यादातर नगर पंचायतें अब भी उसकी पहुंच से दूर हैं।

भाजपा सरकार नगर निकायों की संख्या बढ़ा चल रही दांव

हालांकि वर्तमान सरकार ने कुछ नगर पालिका परिषदों को नगर निगमों में तब्दील कर, कुछ नगर पंचायतों को नगर पालिका परिषद बनाकर तथा नगर पंचायतों की संख्या में इजाफा करके लोगों को बेहतर जनसुविधाएं देने की गारंटी देने का संदेश दिया। यह भी संदेश देने की कोशिश की है कि वह ग्रामीण इलाकों को भी नगरों जैसी सुविधा देना चाहती है । इसके जरिये उसने इन नगरीय निकायों के रहने वालों को राजनीतिक रूप से भी भाजपा के साथ लामबंद करने का प्रयास किया है । पर, अभी तक इन निकायों के चुनाव के नतीजों से संकेत यही मिल रहे हैं कि सब कुछ होने के बावजूद मतदान नजदीक आते-आते स्थानीय समीकरणों की भूमिका बढ़ जाएगी । जिसमें राजनीतिक परिस्थितियां तथा स्थानीय विधायकों की भूमिका निर्णायक होगी।

सरकार के झूठ को करेंगे उजागर : अखिलेश

लखनऊ। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि निकाय चुनाव में भाजपा के झूठ को उजागर कर जनता के सामने उठाएंगे। उन्होंने कहा इस चुनाव में भाजपा को पूरी टक्क्र देकर उसको उखाड़ फेंकेंगे। इसके लिए पार्टी के कार्यकर्ता तैयार हो जाएं। पार्टी अपने गठबंधन के सहयोगियों के साथ बातचीत कर चुनाव लड़ेगी। सपा अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा ने स्मार्ट सिटी के नाम पर जनता को धोखा दिया है। नगरों में कूड़ा भरा पड़ा है। नालियों में गंदगी है। सफाई नहीं है। व्यापारी परेशान है। नगर निकाय चुनाव में जनता भाजपा को सबक सिखाएगी। समाजवादी पार्टी अब कांशीराम के जरिए दलित एजेंडे को धार देगी। पार्टी की रणनीति है कि जातीय जनगणना, संविधान रक्षा के साथ कांशीराम के समता और स्वाभिमान के संदेश को भी जन- जन तक पहुंचाया जाएगा। इसकी शुरुआत सोमवार को कांशीराम की मूर्ति के अनावरण समारोह के साथ हुई। यह मूर्ति रायबरेली के दीन शाह गौरा ब्लॉक स्थित मान्यवर कांशीराम महाविद्यालय में लगी। समाजवादी पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि सपा के मूल वोटबैंक के साथ दलित वोटबैंक जुड़ जाए तो सियासी वैतरणी आसानी से पार की जा सकती है। इसी रणनीति के तहत सपा ने लोहियावादियों के साथ अंबेडकरवादियों को एक मंच पर लाने की कोशिश की। बाबा साहब वाहिनी का गठन किया गया। पार्टी के दलित नेता अवधेश प्रसाद को न सिर्फ विधानसभा में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बगल की कुर्सी दी गई बल्कि राष्ट्रीय सम्मेलन में भी वह साथ- साथ नजर आए। सपा संस्थापक रहे स्व. मुलायम सिंह यादव ने 1991 में इटावा से बसपा संस्थापक स्व. कांशीराम को चुनाव लड़ाया। इस चुनाव में भाजपा ने मुलायम सिंह के सहयोगी राम सिंह शाक्य को मैदान में उतार दिया। कांशीराम को जीत मिली और यहीं से दोनों की दोस्ती गहरी होती चली गई। वर्ष 1993 में मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम से दोस्ती कर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा। सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिली। गठबंधन ने 176 सीटें के साथ अन्य दलों को जोड़ा और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। लेकिन दो जून 1995 को बसपा ने समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा- बसपा गठबंधन हुआ। बसपा प्रमुख मायावती ने सभी गिले-शिकवे भूलने की बात करते हुए वोट मांगा। बसपा को 10 और सपा को पांच सीटें मिलीं। कुछ समय बाद यह गठबंधन टूट गया। विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले बसपा ही नहीं बल्कि बसपा पृष्ठभूमि से निकलकर भाजपा में जाने वाले तमाम नेताओं ने सपा का रूख किया।

मायावती क्षेत्र के लोगों की आवाज उठाने वाले को देंगी टिकट

लखनऊ। बसपा प्रमुख व पूर्व यूपी सीएम मायावती ने कहा कि आगामी निकाय चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग हो सकता है ऐसें में इस कुचक्र को तोडऩा होगा। बसपा सुप्रीमो सभी कोआर्डिनेटरों, जिलाध्यक्षों के साथ मायावती ने शहरी निकाय चुनाव को लेकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि निकाय चुनाव में उम्मीदवारों का चयन सोच-समझकर किया जाए। उन्हीं लोगों को प्राथमिकता दें जो अपने क्षेत्र के लोगों के बीच रहते हों। उनकी आवाज उठाते हों। बनहजी ने कहा कि चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग तथा विरोधियों के हथकंडों से खुद को बचाना है। कुचक्रों को तोडऩा है। लोग इस समय महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, बदहाल कानून व्यवस्था से त्रस्त हैं। भाजपा इन सब मुद्दों पर फेल हो गई है। स्मार्ट सिटी अभियान केवल कागजों में हैं । शहरों की तो छोड़ो, गांवों तक की हालत खराब है। इस सरकार ने सब कुछ ठेके पर कर दिया है। इस ठेका प्रथा के चलते स्थाई नौकरी लोगों के लिए दूर का सपना हो गई है । सरकार शह खर्चीला विकास कर ढिंढोरा पीट रही है। विकास तो केवल मु_ी भर सत्ताधारी लोगों का हुआ है। सपा की दलित, अति पिछड़ा व मुस्लिम समाज के प्रति खराब सोच व गलत रवैये के कारण ही पहले भी सपा बसपा का गठबंधन टूटा था। आज भी सपा भाजपा से लडऩे की बजाय बसपा को कमजोर करने का काम करने से बाज नहीं आ रही है। इसका लाभ भाजपा उठा रही है। जनता को सब याद है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि यदि आज सपा कांशीराम के नाम को भुनाने की पैंतरे बाजी कर रही है जबकि उनका कांशीराम के प्रति अहसान फरामोशी का इतिहास लोगों के सामने है। इसके कारण ही वर्ष 1995 में गेस्ट हाउस कांड हुआ और सपा बसपा का गठबंधन टूटा। सपा अगर कांशीराम की मिशनरी सोच के साथ गठबंधन सरकार चलाती रहती तो यह गठबंधन आज देश पर राज कर रहा होता। इसी का लाभ आज भाजपा उठा रही है। वह निकाय चुनाव के मद्देनजर पार्टी के प्रदेश कार्यालय पर पदाधिकारियों की बैठक ले रहीं थीं।

 

 

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