नीतीश-तेजस्वी सरकार का एक साल: चाचा-भतीजे की केमिस्ट्री मजबूत, महागठबंधन की फिजिक्स गड़बड़
नई दिल्ली। बिहार की सियासत में बीजेपी के साथ नाता तोडक़र महागठबंधन में शामिल हुए नीतीश कुमार को एक साल पूरे हो गए हैं। 9 अगस्त 2022 में नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, जिसे वामपंथी दल बाहर से समर्थन कर रहे हैं। नीतीश मुख्यमंत्री तो तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने। चाचा-भतीजे के बीच भले ही बेहतर केमिस्ट्री देखने को मिल रही हो, लेकिन महागठबंधन में शामिल दलों के नेताओं के बीच बेहतर तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। इसके चलते जेडीयू के केई नेता पार्टी छोडक़र चले गए हैं तो आरजेडी और कांग्रेस के नेता कशमकश में फंसे हुए हैं। इस तरह महागठबंधन का फिजिक्स बिहार में गड़बड़ता नजर आ रहा है?
नीतीश-तेजस्वी के बीच दिख रही केमिस्ट्री
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के बीच बेहतर केमिस्ट्री दिख रही है। नीतीश के कदम से कदम मिलाकर तेजस्वी चल रहे हैं तो नीतीश भी तेजस्वी की बात का मान रख रहे हैं। इस तरह दोनों ही नेता एक सुर में बात रख रहे हैं। आरजेडी नेताओं की ओर से बयानबाजी शुरू हुई और नीतीश ने इसे लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की तो तेजस्वी ने अपने नेताओं को सयंम में रहने की नसीहत दे डाली थी। माना जा रहा है कि इस बार तेजस्वी बहुत ही सावधानी के साथ कदम बढ़ा रहे हैं और अपनी भविष्य की राजनीति को देखते हुए सधे दांव चल रहे हैं। सुधाकर सिंह का इस्तीफा तेजस्वी ने खुद लिया था, जिससे यह बात बाखूबी समझी जा सकती है।
महागठबंधन में साल भर से चल रही कलह
नीतीश कुमार ने महागठबंधन में शामिल होकर जब से सरकार बनाई है, तब से ही सियासी टकराव बना हुआ है। नीतीश और तेजस्वी के अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार अपनी एक साल की उपलब्धियां गिना रही है, लेकिन सियासी तौर पर देखें तो गठबंधन अपने अंदर अंतर्विरोध से जुझूता हुआ नजर आ रहा है। जेडीयू के तमाम नेता पार्टी छोडक़र चले गए हैं तो आरजेडी नेताओं के साथ टकराव बना हुआ है। वामपंथी दल नीतीश सरकार को समर्थन कर रहे हैं, लेकिन विरोध करने से भी पीछे नहीं है। पटना में रैली करके सरकार की अलोचना कर चुके हैं। कांग्रेस अपने लिए उचित मुकाम की लड़ाई लड़ रही है। इसके अलावा शराब बंदी को लेकर भी आरजेडी और जेडीयू नेताओं के बीच शीत युद्ध जारी है।
आरजेडी नेताओं की कसमसाहट
आरजेडी और जेडीयू नेताओं के बीच टकराव सरकार बनने के साथ ही शुरू हो गई। आरजेडी कोटे के दो मंत्रियों को अपनी कुर्सी गवांनी पड़ी। आरजेडी नेता अनंत सिंह के करीबी कार्तिक कुमार का पहले मंत्रालय बदला गया और उसके बाद मंत्री पद से छुट्टी हो गई। इसके बाद आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह की बारी आई, जो आरजेडी कोटे से मंत्री बनाए गए थे। सुधाकर को नीतीश कुमार के खिलाफ बगावती तेवर अपनाने के चलते मंत्री पद छोडऩा पड़ा।
आरजेडी कोटे से शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर का रामचरितमानस पर टिप्पणी करना जेडीयू नेताओं को नहीं भाया। इसके चलते आरजेडी और जेडीयू नेताओं के बीच सियासी टकराव दिखा। जेडीयू और आरजेडी नेता आमने-सामने आ गए थे। चंद्रशेखर का अपने ही शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के साथ भी तनातनी जारी है। हाल ही में आरजेडी कोटे से मंत्री अलोक मेहता के विभाग में हुए ट्रांसफर-पोस्टिंग को सीएम नीतीश कुमार ने रद्द कर दिया है। आरजेडी के कोटे के ये चारों ही नेता लालू परिवार के करीबी माने जाते हैं। इतना ही नहीं लालू परिवार के करीबी एमएलसी सुनील सिंह को नीतीश ने विधायक दल की बैठक में जमकर सुनाया था।
जेडीयू नेताओं ने नीतीश का साथ छोड़ा
एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में नीतीश कुमार शामिल होने के बाद से कई जेडीयू नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया है। उपेंद्र कुशावाहा से लेकर आरसीपी सिंह को पार्टी छोडऩी पड़ी है। उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी बना ली तो आरसीपी सिंह और अजय आलोक ने बीजेपी का दामन थाम लिया। इन सारे नेताओं ने जेडीयू छोडऩे की वजह आरजेडी के साथ गठबंधन करने को बताया था। कुशवाहा ने तो सार्वजनिक रूप से कहा था कि नीतीश ने जेडीयू को आरजेडी के हाथों गिरवी रख दिया है और देर-सवेर पार्टी का विलय कर देंगे। इसके अलावा जीतनराम मांझी ने महागठबंधन से अलग होने के पीछे आरजेडी को ही जिम्मेदार ठहराया था। बिहार की सियासत में लंबे समय तक जेडीयू और आरजेडी एक दूसरे के विरोध रही हैं। नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति लालू के विरोध में खड़ी की है। यही वजह है कि आरजेडी और जेडीयू नेताओं के बीच बेहतर तालमेल नहीं बन पा रहे हैं।
कांग्रेस कर रही मंत्री पद का इंतजार
बिहार की महागठबंधन सरकार में कांग्रेस भी शामिल है, लेकिन नीतीश कैबिनेट में उसे उचित स्थान की दरकार अभी भी है। कांग्रेस कोटे से नीतीश की सरकार में दो मंत्री पिछले साल बने थे, लेकिन पार्टी दो मंत्रालय और भी मांग रही है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह कई बार नीतीश से इस संबंध में मिल चुके हैं। राहुल गांधी भी पिछले दिनों विपक्षी बैठक में शिरकत होने के लिए पटना पहुंचे थे तो उन्होंने भी नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल के विस्तार करने के लिए कहा था। इसके बावजूद अभी तक न तो विस्तार हुआ है और न ही कांग्रेस को मंत्री पद मिला है। इस तरह से कांग्रेस को मंत्री पद का इंतजार है।
तेजस्वी के नौकरी देने का वादा आधूरा
महागठबंधन के नेता भले ही कहें कि नीतीश-तेजस्वी की सरकार से बिहार में विकास की बात का दावा कर रहे हों, लेकिन दस लाख नौकरी का सपना अभी भी अधूरा है। तेजस्वी ने चुनाव में तो नीतीश ने महागठबंधन में शामिल होने के बाद 10 लाख रोजगार देने का ऐलान किया था, लेकिन एक साल पूरे होने के बाद अगर इस पर गौर करें तो एक लाख 70 हजार शिक्षक भर्ती, पुलिस विभाग में 75 हजार भर्ती की कैबिनेट से मुहर, विकास विभाग, साइंस टेक्नोलॉजी विभाग सहित कई विभागों में पचास हजार के आसपास पदों का फैसला लिया गया। स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती निकाली गई हैं, लेकिन अभी तक 10 लाख नौकरी के आंकड़े का आधा 5 लाख भी पूरा नहीं हो सका है।
महागठबंधन मॉडल का विस्तार
नीतीश कुमार के नेतृत्व में 9 अगस्त 2022 में जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस, भाकपा माले, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, सीपीआई और सीपीएम ने मिलकर सरकार बनाई थी, जिसे महागठबंधन का नाम दिया गया। हिंदुस्तान आवाम मोर्चा ने खुद को अलग कर लिया है, लेकिन बिहार में बने महागठबंधन ने अब राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के गठबंधन का नया मॉडल का रूप ले लिया है। 26 विपक्षी दलों ने 2024 के लिए गठबंधन किया है, जिसे ‘इंडिया’ का नाम दिया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही महागठबंधन मॉडल पर विपक्षी दलों को एकजुट किया था, जिसे बाद में कांग्रेस ने आगे बढ़ाया। इस तरह विपक्षी एकता के सूत्रधार नीतीश कुमार हैं और उन्होंने अपने गठबंधन के आधार पर ही देश में विपक्षी गठबंधन बनाने की बात रखी थी।