ओवैसी ने M-Y फैक्टर में मारी सेंध, महागठबंधन ने AIMIM को क्यों किया बाहर?

बिहार चुनाव 2025 की सियासत एक बार फिर गर्म है... ओवैसी की AIMIM ने इस बार M-Y फैक्टर में बड़ी सेंध लगाई है... जिससे महागठबंधन की...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों बिहार की राजनीति में 2025 का विधानसभा चुनाव एक बड़ा मोड़ साबित हुआ है.. इस चुनाव ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वोटों का बंटवारा किस तरह बड़े गठबंधनों को फायदा पहुंचा सकता है.. और विपक्ष को नुकसान.. खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के वोटों में बिखराव ने महागठबंधन को बुरी तरह प्रभावित किया.. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने पूर्वी बिहार के सीमांचल इलाके में अप्रत्याशित सफलता हासिल की.. जिससे मुस्लिम बहुल सीटों पर एमजीबी के उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा.. इस बंटवारे का सीधा फायदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को मिला.. और भाजपा-नीतीश कुमार की जोड़ी ने कई अहम सीटें जीत लीं.. इस रिपोर्ट में हम चुनाव के नतीजों.. AIMIM की भूमिका वोट स्प्लिट के प्रभाव.. और राजनीतिक निहितार्थों पर विस्तार से चर्चा करेंगे..

दोस्तों बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में 243 सीटों के लिए मतदान 6 नवंबर से 11 नवंबर तक हुआ.. मतगणना 14 नवंबर को हुई, और नतीजे एनडीए की बड़ी जीत की कहानी बयान करते हैं.. चुनाव आयोग के अनुसार एनडीए ने कुल 198 सीटें जीतीं.. जिसमें भाजपा को 89, जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू को 85, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) को 19 और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर) को 5 सीटें मिलीं.. वहीं, महागठबंधन ने सिर्फ 37 सीटें हासिल की.. जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को 25, कांग्रेस को 6 और अन्य को 6 सीटे मिली.. AIMIM ने 5 सीटें जीतीं.. जो एक छोटी लेकिन प्रभावशाली संख्या है.. अन्य छोटे दलों और निर्दलीयों को 9 सीटें मिलीं…

वहीं यह जीत एनडीए के लिए 2020 के चुनाव से बेहतर है.. जब उन्होंने 125 सीटें जीती थी… इस बार एनडीए का वोट शेयर करीब 45 प्रतिशत रहा.. जबकि एमजीबी का 32 प्रतिशत वोट शेयर रहा.. AIMIM का वोट शेयर लगभग 2 प्रतिशत पहुंच गया.. जो 2020 के 1.24 प्रतिशत से बढ़ोतरी दर्शाता है.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत को विकास और समृद्धि के लिए जनादेश बताया… जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे बिहार की जनता का विश्वास कहा.. वहीं, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने हार स्वीकार करते हुए कहा कि हमने कड़ी मेहनत की.. लेकिन कुछ रणनीतिक चूक हुई..

चुनाव में कुल मतदान प्रतिशत 57 रहा..जो पिछले चुनाव से थोड़ा कम है.. महिलाओं की भागीदारी बढ़ी.. लेकिन ग्रामीण इलाकों में मतदान कम रहा.. एनडीए ने शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में मजबूत प्रदर्शन किया.. जबकि एमजीबी को यादव और कुछ पिछड़े वर्गों का समर्थन मिला.. लेकिन सबसे बड़ा फैक्टर अल्पसंख्यक वोटों का बिखराव रहा.. खासकर मुस्लिम समुदाय का.. जो बिहार की आबादी का करीब 18 प्रतिशत है..

सीमांचल बिहार का पूर्वी हिस्सा है.. जिसमें किशनगंज, अररिया, पूर्णिया.. और कटिहार जिले शामिल हैं.. यहां मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत से अधिक है.. और यह इलाका राजनीतिक रूप से संवेदनशील है.. सीमांचल में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं.. और यहां की राजनीति भाषाई विविधता.. गरीबी और सीमा से सटे होने के कारण जटिल है.. 2025 के चुनाव में इस क्षेत्र ने चुनाव के नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित किया..

एनडीए ने सीमांचल में 12 सीटें जीतीं, जिसमें भाजपा को 6, जेडीयू को 5 और एलजेपी (राम विलास) को 1 सीटे मिली.. एमजीबी को सिर्फ 1 सीट मिली.. जो आरजेडी की थी.. AIMIM ने यहां 5 सीटें जीतीं.. अमौर, बहादुरगंज, कोचाधामन, जोकीहाट और बैसी.. इनमें से ज्यादातर सीटों पर AIMIM ने एमजीबी के उम्मीदवारों को हराया.. उदाहरण के लिए प्रणपुर सीट पर वोट बंटवारे से भाजपा आगे रही.. जबकि बालारामपुर में एलजेपी को फायदा हुआ..

सीमांचल में मुस्लिम वोटों की एकजुटता पहले एमजीबी के पक्ष में रहती थी.. लेकिन इस बार AIMIM और जन सुराज पार्टी जैसे नए खिलाड़ियों ने इसे तोड़ दिया.. जहां मुस्लिम आबादी 25-40 प्रतिशत है.. वहां एनडीए ने 13 में से 12 सीटें जीतीं.. AIMIM का वोट शेयर 9 विधानसभाओं में 15 प्रतिशत से अधिक.. और 8 में 5-15 प्रतिशत रहा.. जो एमजीबी की हार का मुख्य कारण बना..

AIMIM, जिसकी स्थापना तेलंगाना में हुई.. उसने बिहार में 2020 में पहली बार सफलता पाई थी.. 2020 में पार्टी ने 5 सीटें जीतीं.. लेकिन 4 विधायक बाद में आरजेडी में शामिल हो गए.. 2025 में AIMIM ने 25 उम्मीदवार उतारे.. ज्यादातर सीमांचल से थे.. पार्टी ने 5 सीटें जीतीं और 2 पर दूसरे स्थान पर रही.. यह प्रदर्शन एक्जिट पोल्स के विपरीत था.. जो AIMIM को कम आंक रहे थे..

AIMIM के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव प्रचार में मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर जोर दिया.. और उन्होंने कहा कि बिहार में 18 प्रतिशत मुस्लिम हैं.. लेकिन सेकुलर पार्टियां उन्हें राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं देतीं.. ओवैसी ने पूछा कि बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री क्यों नहीं हो सकता.. यह सवाल मुस्लिम समुदाय में गूंजा और AIMIM को समर्थन मिला.. पार्टी ने गैर-मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे.. जैसे दो हिंदू उम्मीदवार.. ताकि खुद को सिर्फ मुस्लिम पार्टी न कहा जाए..

AIMIM की संगठनात्मक मजबूती सीमांचल में दिखी.. पार्टी ने स्थानीय मुद्दों जैसे गरीबी, बाढ़ और शिक्षा पर फोकस किया.. ओवैसी ने बहादुरगंज, बालरामपुर, बारारी और अमौर में रैलियां की.. परिणामस्वरूप, पार्टी ने मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा खींच लिया.. जो पहले आरजेडी या कांग्रेस को जाता था..

आपको बता दें कि फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिस्टम में वोट बंटवारा हमेशा बड़े दलों को फायदा देता है.. 2025 में मुस्लिम वोटों का बिखराव एमजीबी के लिए घातक साबित हुआ.. सीमांचल में AIMIM ने जहां 15-20 प्रतिशत वोट लिए.. वहां एमजीबी के उम्मीदवार हार गए.. और एनडीए जीत गया.. उदाहरण के लिए किशनगंज में कांग्रेस ने एकमात्र सीट जीती.. लेकिन आरजेडी और सीपीआई(एमएल) को कोई सफलता नहीं मिली..

चुनाव विश्लेषण से पता चलता है कि अगर AIMIM न होती.. तो इन वोटों का बड़ा हिस्सा एमजीबी को जाता.. और कम से कम 10-15 सीटें एमजीबी जीत सकती थी.. एनडीए ने मुस्लिम बहुल इलाकों में भी प्रवेश किया, जो पहले मुश्किल था.. भाजपा ने ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई.. लेकिन विकास के मुद्दों पर फोकस किया.. परिणामस्वरूप, मुस्लिम प्रतिनिधित्व विधानसभा में घट गया.. सिर्फ 12 मुस्लिम विधायक चुने गए.. जो पिछले चुनाव से कम है..

जन सुराज पार्टी ने भी कुछ वोट बांटे.. लेकिन AIMIM का प्रभाव ज्यादा था.. यह स्प्लिट एमजीबी की हार का मुख्य कारण बना.. क्योंकि अल्पसंख्यक वोट एकजुट न रह सके.. 2020 के चुनाव में AIMIM ने सीमांचल में 5 सीटें जीती… जहां भाजपा दूसरे स्थान पर थी.. लेकिन चार विधायक आरजेडी में चले गए, जिससे पार्टी कमजोर हुई.. 2025 में AIMIM ने वापसी की.. जो दर्शाता है कि मुस्लिम वोटरों में सेकुलर दलों से असंतोष है.. ओवैसी ने कहा कि 2020 में हमने भाजपा को हराया था.. लेकिन एमजीबी ने हमें शामिल नहीं किया..

तेलंगाना से बाहर AIMIM का प्रदर्शन कमजोर रहा है.. उत्तर प्रदेश, गुजरात या दिल्ली में 1 प्रतिशत वोट भी नहीं पार किया.. लेकिन बिहार अपवाद बना.. जहां मुस्लिम समुदाय की भाषाई विविधता (उर्दू, बंगाली) और क्षेत्रीय मुद्दे AIMIM के अनुकूल साबित हुए.. AIMIM ने चुनाव से पहले एमजीबी से गठबंधन की कोशिश की.. प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने तेजस्वी यादव से मिलकर अनुरोध किया.. लेकिन एमजीबी ने मना कर दिया.. कहते हुए कि इससे हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण होगा.. AIMIM के प्रवक्ता आदिल हसन ने कहा कि हमने राजद से संपर्क किया क्योंकि वोट बंटना नहीं चाहते थे.. लेकिन वे नहीं माने.. कांग्रेस की ‘मोहब्बत की दुकान’ कहां है.. मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व क्यों नहीं..

 

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