40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले भी बन सकते हैं डॉक्टर, मिलेगा एमबीबीएस में एडमिशन, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

नई दिल्ली। कोई भी कैंडिडेट अगर 40 फीसदी से ज्यादा बोलने और भाषा को समझने में असमर्थ है, तो भी वह डॉक्टर बन सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 15 अक्टूबर को अपने फैसला में कहा कि किसी कैंडिडेट को महज 40त्न से ज्यादा बोलने और भाषा को समझने की दिव्यांगता के चलते मेडिकल कॉलेज में दाखिले से इंकार नहीं किया जा सकता है. वहीं कोर्ट ने कहा कि सिर्फ 40 फीसदी दिव्यांगता होने भर से कोई एमबीबीएस में दाखिले के अयोग्य नहीं हो जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने छात्र ओमकार की याचिका पर फैसला सुनाते हुए ये आदेश दिया है. याचिकाकर्ता ने 1997 के स्नातक चिकित्सा शिक्षा विनियमन को चुनौती दी थी, जो 40 प्रतिशत या उससे अधिक विकलांगता वाले व्यक्ति को एमबीबीएस करने से रोकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 40 प्रतिशत की मानक विकलांगता का होना किसी व्यक्ति को मेडिकल शिक्षा प्राप्त करने से नहीं रोकता, जब तक कि विशेषज्ञ की रिपोर्ट में यह न कहा गया हो कि अभ्यर्थी एमबीबीएस की पढ़ाई करने में असमर्थ है.
कोर्ट ने कहा कि अगर डिसेबिलिटी असेसमेंट बोर्ड इस नतीजे पर पहुंचता है कि दिव्यांग होने की वजह से वह पढ़ाई पूरी करने में असमर्थ है, तभी उसे दाखिले से इंकार किया जा सकता है. वहीं नेशनल मेडिकल काउंसिल के मौजूदा नियमों के मुताबिक 40 प्रतिशत से ज्यादा ऐसी दिव्यांगता की हालत में किसी भी कैडिडेट को एमबीबीए कोर्स में एडमिशन नहीं मिल सकता है.
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने 18 सितंबर के अपने आदेश के लिए विस्तृत कारण बताए, जिसमें एक अभ्यर्थी को एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने की अनुमति दी गई थी, क्योंकि मेडिकल बोर्ड ने कहा था कि वह बिना किसी बाधा के चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर सकता है.
पीठ ने कहा कि दिव्यांगता से पीडि़त अभ्यर्थी की एमबीबीएस कोर्स करने की क्षमता की जांच दिव्यांगता मूल्यांकन बोर्ड द्वारा की जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि केवल बेंचमार्क दिव्यांगता का अस्तित्व किसी उम्मीदवार को एमबीबीएस कोर्स के लिए पात्र होने से अयोग्य नहीं ठहराएगा. अभ्यर्थी की दिव्यांगता का आकलन करने वाले दिव्यांगता बोर्ड को सकारात्मक रूप से जांच करनी चाहिए कि कैंडिडेट की दिव्यांगता कोर्स करने के रास्ते में आएगी या नहीं.

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