परिवारवाद पर हमला बोल घिरे PM मोदी, जनता ने दिखा दिया आईना
बेंगलुरु। लोकसभा चुनावों का बिगुल पूरे देश में बज चुका है। सियासी दलों ने अपनी-अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। तो वहीं चुनाव नजदीक आता देख नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर सियासी हमले और बयानवाजी भी तेज हो गई है। आए दिन एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं। और अपने विरोधियों पर निशाना साधा जा रहा है। चुनाव करीब आता देख देश के प्रधानमंत्री मोदी भी अब चुनावी मोड में आ गए हैं। और रैलियों व सभाओं में दौड़ लगा रहे हैं। भाजपा व पीएम मोदी इस बार 400 पार का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
प्रधानमंत्री इसके लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं और साम-दाम-दंड-भेद सभी अपना रहे हैं। ताकि किसी भी तरह से भाजपा 370 और एनडीए 400 के आंकड़े को पार करके देश की सत्ता में फिर से वापस आ जाए। इसके लिए भाजपा व पीएम मोदी साउथ पर काफी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। क्योंकि वो जानते हैं कि साउथ को साधकर ही इस आंकड़े के आस-पास पहुंचा जा सकता है। हालांकि, इसमें भी कोई दोराय नहीं कि साउथ में भाजपा को खड़े कर पाना भी काफी मुश्किल है। क्योंकि यहां भाजपा अभी भी कर्नाटक को छोड़कर बाकी राज्यों में लगभग शून्य पर ही खड़ी है। ऐसे में साउथ में खुद को खड़ा करने के लिए बीजेपी को शुरू से शुरूआत करने की जरूरत है।
यही वजह है कि भाजपा व पीएम मोदी कर्नाटक के काफी चक्कर लगा रहे हैं। क्योंकि भाजपा के लिए साउथ में उम्मीद की किरण कर्नाटक ही है। क्योंकि कर्नाटक में पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 28 लोकसभा सीटों में से 25 पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था। लेकिन इस बार हालात पूरी तरह से अलग हैं। और इस बार प्रदेश की सत्ता पर भाजपा नहीं बल्कि कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में जाहिर है कि कर्नाटक में भी भाजपा को मनवांछित सफलता प्राप्त नहीं होगी। ये बात बीजेपी भी अच्छे से जानती है। इसीलिए वो कर्नाटक में काफी मेहनत कर रही है और उसके पीएम मोदी व गृह मंत्री अमित शाह जैसे दिग्गज भी लगातार कर्नाटक के चक्कर लगा रहे हैं।
इसी बीच पीएम मोदी कर्नाटक में पहुंचकर विपक्ष को घेरते रहे हैं। इस बीच पीएम मोदी परिवारवाद को लेकर अक्सर ही कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष पर निशाना साधते रहते हैं। वो जबतक परिवारवाद का राग अलापकर कांग्रेस को निशाना बनाते रहते हैं। और विपक्ष की अन्य पार्टियों पर भी परिवारवाद का आरोप लगाकर उन पर तंज कसते रहते हैं। लेकिन कर्नाटक में जब पीएम ये बात बोलते हैं तो वो शायद अपनी पार्टी की ओर ध्यान देना भूल ही जाते हैं। वैसे सिर्फ कर्नाटक ही नहीं पूरी भाजपा में परिवारवाद उसी तरह फल-फूल रहा है जैसे कांग्रेस या किसी अन्य राजनीतिक पार्टी में फैल रहा है,. ऐसे में पीएम का सिर्फ कांग्रेस या विरोधियों पर परिवारवाद को लेकर हमला बोलना और परिवारवाद का आरोप लगाना।. उल्टा पीएम की ही फजीहत करा जाता है,।
वैसे पीएम मोदी की परिवारवाद पर टिप्पणी या उनका ये राग कोई नया नहीं है। लेकिन इसने नया आयाम तब लिया जब राजनीतिक दलों ने लोकसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कीयय यह स्पष्ट हो गया कि परिवार-केंद्रित राजनीति के मुखर विरोध के बावजूद कांग्रेस और जेडीएस की तरह ही बीजेपी भी इसके आकर्षण से अछूती नहीं है। राष्ट्रव्यापी रुझान का एक सूक्ष्म उदाहरण कर्नाटक है, जहां तीन प्रमुख राजनीतिक दलों ने सामूहिक रूप से ‘वंशवादी परंपरा’ को अपनाया है। जिसमें प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों से करीबी संबंध रखने वाले लगभग दो दर्जन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है। पार्टी संबद्धता की परवाह किए बिना, प्रमुख हस्तियों के बेटे, बेटियां, पत्नी, बहनें, भाई और अन्य रिश्तेदार खुद को राजनीतिक सुर्खियों में पाते हैं।
अक्सर कांग्रेस व अन्य पार्टियों पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाली भाजपा खुद के गिरेबान में झांकना शायद भूल ही जाती है। खासकर कर्नाटक में तो भाजपा की कमान ही परिवारवाद के हाथ में है। कर्नाटक में बीजेपी को चलाता ही सिर्फ एक परिवार ही है,., और इस बात से खुद बीजेपी के ही लोग व नेता परेशान हैं। क्योंकि इस चुनाव में भाजपा के कई दिग्गजों की खुली बगावत की वजह ही प्रदेश में पार्टी के अंदर एक परिवार का वर्चस्व और एक परिवार की तानाशाही बना। और ये हम नहीं बल्कि भाजपा के कई नेता भी कह चुके हैं कि कर्नाटक में भाजपा का मतलब सिर्फ एक ही परिवार है। प्रदेश में पार्टी सिर्फ एक परिवार से चलती है,., और वो एक परिवार कोई और नहीं बल्कि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का परिवार है।
क्योंकि वर्तमान समय में कर्नाटक में भाजपा एक बार फिर येदियुरप्पा पर ही आकर अटक गई है। यही वजह है कि पार्टी के अन्य दिग्गज नेता पार्टी से नाराज चल रहे हैं। और वो अपनी ही पार्टी से बगावत तक पर उतर आए हैं। कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाली भाजपा कर्नाटक में खुद वंशवादी राजनीति को अपनाने में कांग्रेस की तरह ही है। प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों के व्यक्ति पार्टी उम्मीदवारों की सूची में प्रमुखता से शामिल हैं। जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई राघवेंद्र शिमोगा से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। जबकि पूर्व सीएम एसआर बोम्मई के बेटे, बसवराज बोम्मई, जो खुद एक पूर्व सीएम हैं, हावेरी में मैदान में हैं।
इतना ही नहीं एक आश्चर्यजनक कदम में बीजेपी ने बेंगलुरु ग्रामीण सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के दामाद डॉ सीएन मंजूनाथ की उम्मीदवारी को भी अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं दावणगेरे में मौजूदा सांसद जीएम सिद्धेश्वर की जगह बीजेपी ने उनकी पत्नी गायत्री सिद्धेश्वर को टिकट दिया है। बीजेपी के फैसले से पार्टी के पारिवारिक झुकाव का पता चलता है। इतना ही नहीं बीजेपी ने इस चुनाव के लिए जिस जेडीएस से गठबंधन किया है, वो तो चल ही परिवारवाद पर रही है। अक्सर ‘अप्पा-मक्काला’ यानी पिता-पुत्र की पार्टी के रूप में आलोचना की जाने वाली, जेडी(एस) पारिवारिक राजनीति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखती है। इस लोकसभा चुनाव में भी पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी मांड्या से चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि उनके भाई और पूर्व मंत्री एचडी रेवन्ना के बेटे, प्रज्वल रेवन्ना, हासन लोकसभा सीट से जीत की तलाश में हैं।
कर्नाटक में भाजपा के अंदर मची नाराजगी और बगावत भी पार्टी के परिवारवाद को तवज्जो देने की वजह से ही है। भाजपा के पूर्व मंत्री केएस ईश्वरप्पा कर्नाटक भाजपा नेतृत्व के मुखर आलोचक बनकर उभरे हैं। क्योंकि वो येदियुरप्पा परिवार के वर्चस्व से नाराज हैं। उन्होंने येदियुरप्पा और उनके बेटे पार्टी अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र के प्रभाव में पारिवारिक राजनीति के आकर्षण के आगे झुकने का आरोप लगाया है। ईश्वरप्पा की आलोचना एक विरोधाभास प्रस्तुत करती है। यह देखते हुए कि भाजपा के राज्य नेतृत्व के साथ उनका अपना असंतोष हावेरी लोकसभा टिकट उनके बेटे केई कंठेश को देने से इनकार करने से उपजा है। फिर भी, ईश्वरप्पा अपने असंतोष में अकेले नहीं हैं, क्योंकि भाजपा के रैंकों के भीतर कई अन्य लोग पितृसत्तात्मक राजनीति के प्रचलन से अछूते नहीं हैं।
पार्टी के भीतर वैचारिक कलह को स्वीकार करते हुए भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि जबकि हमारे पीएम ‘परिवारवाद’ के खिलाफ दृढ़ हैं, कार्यकर्ताओं को अभी इस मानसिकता को अपनाना बाकी है। नतीजतन, एक वर्ग का संघर्ष जारी है। पिछले पांच दशकों में, कुछ परिवारों ने खुद को अपने निर्वाचन क्षेत्रों के स्वामी के रूप में स्थापित किया है। एक धारणा जो जनमानस में गहराई से समा गई है। इस जड़ प्रणाली को खत्म करने के लिए सामूहिक सामाजिक प्रयास की आवश्यकता होगी।
बेशक कांग्रेस में भी परिवारवाद की झलक दिखाई दी और लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों में कई परिवारवाद की उपज दिखी। कर्नाटक में कांग्रेस ने पारिवारिक विरासत की नींव पर अपने चुनावी भाग्य को दांव पर लगाते हुए, प्रभावशाली राजनीतिक वंशों से बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को नामित किया है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के शीर्ष से लेकर कई राज्य मंत्रियों और विधायकों तक, पार्टी ने संसदीय सीटों के लिए अनुभवी राजनेताओं के परिजनों को रणनीतिक रूप से तैनात किया है। हालांकि, उम्मीदवारों की पार्टी की पसंद का बचाव करते हुए, कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने युवाओं, शिक्षा और लैंगिक समावेशिता की दिशा में बदलाव पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि राजनीति में मेरे 40 वर्षों में, यह पहली बार है कि हमने इतने सारे टिकट युवा, शिक्षित और महिला उम्मीदवारों को दिए हैं। मुझे उनकी जीत पर भरोसा है और वे सभी राष्ट्रीय नेता बनेंगे। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी वंशवाद की राजनीति के दावों को खारिज करते हुए कहा कि मंत्रियों के बच्चों या परिजनों को टिकट देना वंशवाद की राजनीति नहीं है. हमने केवल मतदाताओं की राय को स्वीकार किया है।
बेशक कांग्रेस में परिवारवाद की झलक दिखती है। लेकिन पीएम का परिवारवाद को लेकर विपक्ष को घेरना और उन पर ही परिवारवाद का आरोप लगाना सरासर नाजायज है। क्योंकि दूसरे पर कीचड़ उछालने से पहले एक बार खुद को भी ढंग से देख लेना चाहिए। पीएम मोदी जब कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों पर परिवारवाद को लेकर हमला बोलते हैं, तो उन्हें अपनी पार्टी की ओर भी ध्यान देना चाहिए। कर्नाटक में जब वो ये बोलते हैं तो उन्हें एक नजर अपने मंच पर ही डाल लेनी चाहिए, जहां उन्हें अपनी पार्टी का परिवारवाज साफ नजर आ जाएगा। कर्नाटक में तो भाजपा की कमान ही बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई वीजयेंद्र के हाथों में है। इसके अलावा कर्नाटक के बाहर भी भाजपा में भर-भरकर परिवारवाद भरा पड़ा है। फिर वो चाहे राजनाथ सिंह के दोनों बेटों का राजनीति में होना हो, या रविशंकर प्रसाद, शिवराज सिंह चौहान, अनुराग ठाकुर, जितिन प्रसाद और सुषमा स्वराज की बेटी को लोकसभा का टिकट देना हो। इसलिए परिवारवाद का मुद्दा उठाना पीएम के लिए अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारने जैसा है।