‘पुलिसवाले का कोई धर्म नहीं होता’, अकोला केस की SIT में हिंदू-मुसलमान अफसर पर महाराष्ट्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में जवाब

महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की है. इस याचिका में सरकार ने कोर्ट के उस फैसले पर आपत्ति जताई है जिसमें कोर्ट ने अकोला दंगे से जुड़े दो आपराधिक मामलों की जांच के लिए हिंदू और मुस्लिम समुदाय के सीनियर पुलिस अधिकारियों की एक SIT गठित करने का आदेश दिया था. सरकार का कहना है कि पुलिस को धार्मिक आधार पर बांटना राज्य की धर्मनिरपेक्ष नीतियों के खिलाफ है.
मोहम्मद अफजल शरीफ नाम के एक व्यक्ति ने दावा किया था कि उसने 13 मई, 2023 को अकोला में एक हिंदू व्यक्ति की हत्या होते हुए देखी. वह व्यक्ति एक मुस्लिम व्यक्ति का ऑटो-रिक्शा चला रहा था. अफजल ने कहा कि बाद में हमलावरों ने उस पर भी हमला किया था. यह घटना उस समय की है जब अकोला शहर में पैगंबर मोहम्मद से जुड़े एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दंगा चल रहा था.
हाई कोर्ट ने भी नहीं की सुनवाई
अफजल ने आरोप लगाया कि उसने इस मामले की शिकायत पुलिस में की थी, लेकिन पुलिस ने FIR दर्ज होने के बावजूद तुरंत कोई कार्रवाई नहीं की. इसके बाद उसने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन पुलिस ने कहा कि उसने अपराध की जांच की है और चार्जशीट दायर की है. जब हाई कोर्ट ने उसकी याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, तो अफजल ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखी.
कोर्ट ने SIT के गठन के दिए निर्देश
जस्टिस संजय कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच ने अफजल की अपील स्वीकार कर ली और महाराष्ट्र के गृह सचिव को निर्देश दिया कि एक SIT का गठन किया जाए, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के सीनियर पुलिस अधिकारी शामिल हों, ताकि अपीलकर्ता द्वारा लगाए गए सभी आरोपों की जांच की जा सके और उस पर हुए हमले को लेकर FIR दर्ज करके उचित कार्रवाई की जा सके. इसके अलावा कोर्ट ने राज्य से अपने कर्तव्य में लापरवाही बरतने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का भी आदेश दिया.
महाराष्ट्र सरकार ने जताई आपत्ति
महाराष्ट्र ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेगा और घटना की जांच के लिए SIT का गठन करेगा. हालांकि, उसने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा, “जब कोई अधिकारी पुलिस बल की वर्दी पहन लेता है, तो वह निष्पक्षता, तटस्थता और कानूनी कार्रवाई के कर्तव्यों से बंधा होता है. एक पुलिस अधिकारी का कोई धर्म नहीं होता, कोई जाति नहीं होती, कोई राजनीतिक जुड़ाव नहीं होता, केवल कानून के शासन को बनाए रखने, निष्पक्षता के साथ सार्वजनिक कार्यों का निर्वहन करने और ईमानदारी के साथ सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने का कर्तव्य होता है.”
राज्य ने तर्क दिया कि धार्मिक आधार पर SIT बनाना अनजाने में पुलिस बल की अखंडता और निष्पक्षता को कमजोर करता है. यह एक ऐसी मिसाल कायम कर रहा है जिससे धार्मिक पहचान को प्रशासनिक सेवा में शामिल किया जा सकता है और संविधान में मौजूद धर्मनिरपेक्ष से ही समझौता हो सकता है.



