महाराष्ट्र में अभी बाकी है सियासी खेल…
नई दिल्ली। महाराष्ट्र में जारी सियासी घमासान अभी थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। महाराष्ट्र की सियासत हर रोज एक नया रंग दिखा रही है। पहले जहां एनसीपी में टूट और फिर भ्रष्टाचारियों का पाक साफ भाजपा सरकार में शामिल होना। राज्य की सियासत में भूचाल ला गया। तो वहीं उसके बाद अजित पवार और उनके साथियों का सरकार में शामिल होना सीएम एकनाथ शिंदे और उनके गुट के लोगों को रास नहीं आया। लेकिन बेचारे कुछ कर नहीं सके। क्योंकि जैसे ही अजित पवार अपने विधायकों के साथ भाजपा-शिंदे सरकार में शामिल हुए हैं। वैसे ही सीएम एकनाथ शिंदे की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। और इस बात को अब सीएम एकनाथ शिंदे भी भांप गए हैं। क्योंकि अजित के सरकार में आते ही भाजपा को शिंदे से लालच भी कम हो गया है। और शिंदे गुट पर अयोग्यता की तलवार वैसे भी लटक रही है। यही वजह है कि अजित के शामिल होने के बाद ही शिंदे गुट को पहले विधानसभा अध्यक्ष की ओर से नोटिस पहुंच जाती है। तो वहीं अब तक विधायकों की अयोग्यता के मामले में कोई फैसला न लेने पर अब सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को ही नोटिस दे दिया है। क्योंकि आखिर 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने की जिम्मेदारी स्पीकर को सौंपी थी। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने अब तक कोई फैसला नहीं लिया। अब इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस जारी कर दिया है।
इस बीच एक लड़ाई जो सरकार में शामिल तीनों दलों भाजपा, शिंदे गुट और अजित पवार गुट के बीच चल रही थी, वो मंत्रियों के विभागों के बंटवारे को लेकर थी। अब उस पर भी विराम लग गया। क्योंकि हाल ही में अजित गुट के मंत्रिपद की शपथ लेने वाले सभी विधायकों को विभागों का बंटवारा हो गया। और सबसे बड़ी बात कि यहां भी जीत अजित पवार की ही हुई। क्योंकि अजित पवार को वित्त समेत अपने सारे मन माफिक विभाग मिल गए। जो कि शिंदे गुट नहीं चाहता था। यानी भाजपा ने यहां भी शिंदे गुट पर अजित पवार और उनके गुट को अधिक तरजीह दी। हालांकि, जो विभाग अजित गुट को मिले हैं, वो सभी इससे पहले भाजपा और शिंदे गुट के लोगों के पास ही थे। लेकिन इसमें अधिकतर विभाग भाजपा के पास ही थे।
कुल मिलाकर काफी जद्दोजेहद के बाद अंतत: विभागों का बंटवारा हो गया। और एनसीपी के कोटे में सात महत्वपूर्ण मंत्रालय आ गए हैं। जिनमें वो वित्त मंत्रालय भी शामिल है, जिसे लेकर काफी दिनों से रस्साकशी चल रही थी। इसके अलावा एनसीपी को योजना, खाद्य और नागरिक आपूर्ति, सहकारी समितियां, महिला और बाल विकास, कृषि, राहत और पुनर्वास, चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय भी मिल गया है। एनसीपी नेताओं को जो विभाग मिले हैं। उनमें वित्त अजित पवार को, कृषि धनंजय मुंडे को, सहकार दिलीप वलसे पाटिल को, चिकित्सा एवं शिक्षा हसन मुश्रीफ को, अन्न एवं नागरिक आपूर्ति छगन भुजबल को, खेल और युवा कल्याण संजय बनसोडे, राहत एवं पुनर्वास अनिल पाटिल और महिला एवं बाल कल्याण अदिति तटकरे को दिया गया है।
अजित पवार को मिला मन माकिफ वित्त मंत्रालय
सबसे बड़ी बात कि अजित गुट के लोगों को जो विभाग मिले हैं, उनमें से अधिकतर पहले भाजपा के खेमे में थे। यानी कि यहां पर भाजपा ने अपने हिस्से से अधिक विभाग दिए हैं अजित पवार के लोगों को। जबकि शिंदे गुट से कम। हालांकि, नुकसान शिंदे गुट का ये हुआ है कि शिंदे के लोग नहीं चाहते थे कि अजित खेमे को इतने अहम मंत्रालय दिए जाएं। लेकिन शिंदे को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। इसलिए शिंदे के पास अजित और भाजपा की हर बात को मानने के अलावा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था। विभाग बंटवारे में सबसे ज्यादा खींचतान वित्त और सहकारिता मंत्रालय को लेकर ही चल रही थी। इन दोनों मंत्रालयों को लेकर अजित गुट और शिंदे गुट में रस्साकशी चल रही थी। लेकिन अंत में जीत अजित पवार की हुई। वित्त मंत्रालय को लेकर इतनी खींचतान इसलिए भी मची थी क्योंकि दरअसल राज्यों में मुख्यमंत्री के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद वित्त मंत्री का ही माना जाता है। और सबसे महत्वपूर्ण विभाग भी वित्त मंत्रालय ही होता है। इसीलिए इससे पहले ये विभाग भाजपा कोटे से उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास था। और अब विभाग बंटवारे में ये वित्त विभाग उपमुख्यमंत्री की ही कुर्सी संभालने वाले अजित पवार के पास आ गया है। यह पूरी राजनीति शिवसेना के शिंदे गुट को पहले भी गवारा नहीं थी और आगे भी नहीं होगी। लेकिन मरता क्या न करता। क्योंकि शिंदे गुट के पास अब चुपचाप सब कुछ सहने और सहते जाने के सिवाय दूसरा कोई चारा भी नहीं है। क्योंकि आखिर जिस सत्ता की खातिर शिंदे गुट शिवसेना से टूटे थे। अब उस सत्ता को छोड़कर जाएंगे भी कहां? वो भी उस समय जब अजित पवार के आ जाने से पहले से ही एकनाथ शिंदे और उनके लोगों की लंका लगी पड़ी है। तो वहीं दूसरी ओर अजित पवार का वित्त और सहकारिता मंत्रालय के लिए खींचतान करने का भी काफी बड़ा कारण था। दरअसल, अजित पवार इसलिए इन दो मंत्रालयों के लिए काफी जद्दोजेहद कर रहे थे, क्योंकि यह अजित समेत उनकी पूरी एनसीपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। महत्वपूर्ण इस नजरिए से हैं क्योंकि दर्जन भर से अधिक एनसीपी नेता सहकारी या निजी चीनी कारखाने चला रहे हैं। साथ ही उनका सहकारी बैंकों पर भी नियंत्रण है। उन्हें दोनों क्षेत्रों में भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में अब उनके पास सहकारी मंत्रालय होगा तो उनकी समस्याओं का समाधान तेजी से हो सकेगा। इसीलिए अजित पवार वित्त और सहकारिता मंत्रालय एनसीपी के पास रखने को लेकर काफी आक्रामक थे।
सरकार में शामिल होते ही पाक साफ हुए एनसीपी के सभी दागी
बहरहाल, अजित पवार, छगन भुजबल, वसले पाटील, और धनंजय मुंडे को राज्य सरकार के सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मिल चुके हैं। साथ ही उनके बाकी साथी भी अब सत्ता से जुड़ गए हैं। ऐसे में ईडी और सीबीआई का जो डर इन्हें दिन को चैन और रात को नींद नहीं आने देता था वो भी अब लगभग समाप्त हो चुका है। क्योंकि सत्ता पक्ष से जुड़ते ही ये एकदम पाक साफ हो चुके हैं। क्योंकि भाजपा की वॉशिंग मशीन की धुलाई और चमक में कोई संदेह की बात नहीं रहती है। ऐसे में अब कम से कम उन्हें इन सरकारी एजेंसियों के पीछे पड़ने से तो छुटकारा मिल ही गया। यानी अजित पवार ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। क्योंकि एक तो सत्ता पक्ष से जुड़ जाने से उन पर से ईडी और सीबीआई का खतरा टल गया और अब वो पीएम मोदी के भ्रष्ट नेताओं व भ्रष्ट पार्टियों की लिस्ट से भी बाहर हो गए। और पूरी तरह से दूध के धुले बन गए हैं। साथ ही उनके वो सभी साथी भी पाक साफ हो गए जो कुछ दिन पहले तक बहुत बड़े भ्रष्टाचारी थे और जेल जाने तक की नौबत आ चुकी थी। अब वो सब नेता भी पूरी तरह से पाक साफ हो गए हैं।
अजित के बढ़ते कद से शिंदे गुट में मची बेचैनी
लेकिन हां, एनसीपी के सरकार में आने से और अब इतने महत्वपूर्ण विभागों पर कब्जा जमाने से अगर किसी को नुकसान होता दिख रहा है तो वो हैं सिर्फ एकनाथ शिंदे और उनके साथ आए विधायक। ये तो जगजाहिर है कि अजित पवार और उनके साथियों के सरकार में आते ही शिंदे गुट के कई विधायक व नेता नाराज चल रहे हैं। अब उनकी नाराजगी की वजहें अलग-अलग हो सकती हैं। कुछ का कहना है कि अभी तक हम जिस एनसीपी और अजित पवार को बुरा-भला कह रहे थे अब वो हमारे साथी बन बैठे हैं। तो वहीं कुछ अजित पवार और छगन भुजबल जैसे प्रदेश के बड़े चेहरों के सरकार में आ जाने से दिक्कत है। क्योंकि अब संभव है कि इन बड़े चेहरों के आगे उनकी अनदेखी होगी और वो अपने मनमुताबिक काम नहीं कर पाएंगे। और इसी दिक्कत और अनदेखी का सामना ही उन विधायकों को तब भी करना पड़ रहा था जब वो अजित पवार के साथ महाविकास अघाड़ी में सत्ता में थे। यानी ये दिक्कत भी बड़ी है। लेकिन जो सबसे बड़ी दिक्कत एकनाथ शिंदे और उनके गुट को अजित पवार के आने से हो रही है, वो ये है कि अब सरकार में उनकी वैल्यू कोई खास नहीं रह गई। क्योंकि अब अगर शिंदे गुट के 16 विधायक अयोग्य घोषित भी हो जाते हैं। फिर भी सरकार पर कोई दिक्कत नहीं आएगी। क्योंकि दावे के मुताबिक अजित के साथ 40-42 विधायक हैं। ऐसे में अगर शिंदे चले भी जाते हैं तो भी सरकार चलती रहेगी। उल्टा तब शिंदे गुट की वैल्यू और भी कम हो जाएगी। साथ ही अजित पवार के आने से एकनाथ शिंदे की सीएम कुर्सी को भी दीमक लगनी शुरू हो गई है। क्योंकि ये तो जगजाहिर है कि एकनाथ शिंदे को सीएम की कुर्सी भाजपा ने मजबूरी में दी थी। क्योंकि तब सरकार बनाने के लिए उसके पास दूसरा कोई चारा नहीं था। और शिंदे शिवसेना से आए भी मुख्यमंत्री बनने की शर्त पर ही थे। लेकिन अब जब अजित पवार अपने साथ 40-42 विधायक होने का दावा करने के साथ सरकार में शामिल हो गए हैं। तो जाहिर है कि भाजपा को अब शिंदे की शर्तों पर चलने की कोई जरूरत नहीं है। यहां तक की शिंदे की भी कोई खास जरूरत नहीं है। क्योंकि इस बात से तो भाजपा भी भलीभांति वाकिफ है कि एकनाथ शिंदे से बड़े नेता प्रदेश में अजित पवार हैं। और अजित पवार अब उनके साथ हैं। यानी साफ है कि अजित पवार के आने से एकनाथ शिंदे और उनके गुट के लोगों के असंतुष्ट होने की वजहें तो कई हैं। और नुकसान शिंदे गुट का ही है।
भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू
वहीं इस पूरे घटनाक्रम में चांदी सिर्फ भारतीय जनता पार्टी की है। क्योंकि पहले भाजपा ने शिवसेना से शिवसेना को लड़ाया। और उसका फायदा उठाकर राज्य में अपनी सत्ता बना ली। इसके बाद एनसीपी से एनसीपी को भिड़ाया और अपनी सरकार को और भी मजबूत कर लिया। तो वहीं इन दोनों पार्टियों में दो फाड़ कराने से व इनके आपसी वोट कटने पर आगे भी पूरा फायदा भाजपा ही उठाने वाली है। क्योंकि शरद पवार और उद्धव ठाकरे के पास अगले लोकसभा चुनाव तक इतना समय नहीं बचा है कि वे पार्टी को दोबारा उतनी ही ताकत के साथ खड़ा कर पाएं। हालांकि, शरद पवार का ये कहना है कि वो महाराष्ट्र में घूम-घूमकर फिर से एनसीपी को खड़ा करने का काम करेंगे। अब इसमें वो सफल कितना होंगे ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
महाराष्ट्र में फिर हो सकता है सियासी उलटफेर
वहीं संभावना ये भी है कि महाराष्ट्र में आगे कोई और बड़ा राजनीतिक उलटफेर हो। जिसमें इस बात की भी पूरी संभावना है कि एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री की कुर्सी भी छिन जाए। क्योंकि इस बात में भी कोई अचरज नहीं होगा कि महाराष्ट्र के अगले किसी विस्तार में अजित पवार या फडणवीस में से कोई एक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा नजर आए। क्योंकि अजित पवार तो अपनी पार्टी मीटिंग में कह भी चुके हैं कि उनका उद्देश्य मुख्यमंत्री बनना है और वो यह कर के भी दिखाएंगे। हालांकि भाजपा यह भी अच्छी तरह से जानती है कि जो अजित पवार अपने सगे चाचा और राजनीतिक गुरु जिन्होंने अजित पवार को राजनीति की एबीसीडी पढ़ाई उन शरद पवार के न हुए, वे भाजपा के कैसे होंगे। और वैसे भी राजनीति में कब कौन किसका हो जाए और किधर चला जाए। इसका कोई भरोसा नहीं रहता। वर्ना किसी ने सोचा भी न होगा कि एक भतीजा अपने चाचा को धोखा देगा। जिसने उसे राजनीति के ये दांव-पेच सिखाए हों। या फिर प्रफुल्ल पटेल जैसा शरद पवार का राजनीतिक दोस्त उन्हीं शरद पवार को इस तरह अकेला छोड़कर अजित पवार के साथ हो जाएगा। बता दें कि ये वही प्रफुल्ल पटेल हैं जिन्हें शरद पवार ने कुछ ही दिनों पहले पार्टी पुनर्गठन में अपनी बेटी सुप्रिया सुले के बराबर वाला यानी कार्यकारी अध्यक्ष का पद सौंपा था। लेकिन उसके बाद भी प्रफुल्ल पटेल ने शरद पवार के भरोसे का ये सिला दिया। संभावना तो इस बात की भी पूरी है कि एनसीपी के इस दो फाड़ में, बीच की धुरी प्रफुल्ल पटेल ही रहे हों। क्योंकि सब जानते हैं हर विधानसभा चुनाव के वक्त विपक्ष के वोट काटने की गरज से प्रफुल्ल पटेल गुजरात पहुंच जाया करते थे। आणंद इलाके में वे अपने कुछ प्रत्याशी खड़े करते थे और मदद किसे मिलती होगी। ये सब अच्छी तरह जानते ही हैं। खैर अब जब महाराष्ट्र में विभागों का बंटवारा भी हो चुका है और सभी मालदार विभाग अजित पवार गुट को मिल चुके हैं। तो अब बस सभी की नजरें इस पर टिकी हैं कि सीएम एकनाथ शिंदे और उनके विधायकों का भविष्य क्या होता है? तो वहीं आने वाले वक्त में क्या महाराष्ट्र में एक और सियासी उलटफेर देखने को मिलेगा, जब राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अजित पवार या देवेंद्र फडणवीस में से कोई एक नजर आएगा। यानी संभावना पूरी है कि लोकसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र की सियासत में कुछ और बड़े धमाके होने तय हैं। क्योंकि अजित गुट के आने से शिंदे गुट के कई विधायक एक बार फिर उद्धव ठाकरे को सलाम ठोकने लगे हैं। अब आगे क्या होता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।