हेडगेवार पर महायुति में मचा सियासी घमासान, बागी हुए अजित पवार!
महाराष्ट्र महायुति सरकार में सबकुछ सही नहीं चल रहा है। गठबंधन में शामिल नेताओं में से एक के बाद एक नेता नाराज होते नजर आ रहे हैं।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: महाराष्ट्र महायुति सरकार में सबकुछ सही नहीं चल रहा है। गठबंधन में शामिल नेताओं में से एक के बाद एक नेता नाराज होते नजर आ रहे हैं। कभी एकनाथ शिंदे बेरुखी दिखाते हैं तो कभी अजित पवार सीएम फडणवीस से नाराज नजर आते हैं। फिर चाहे वो BMC चुनाव का मौका हो या फिर कोई सामाजिक कार्यक्रम किसी न किसी नेता के नाराजगी की खबरें आ ही जाती हैं।
वहीं इसी बीच एक बार फिर एक ऐसी ही खबरें आ रही हैं जिससे सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। वहीं इसी क्रम में एक बार फिर बयानबाजी तब तेज हो गई जब महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार नागपुर में आरएसएस संस्थापक केबी हेडगेवार के स्मारक नहीं पहुंचे। इस बात को आधार पर बनाकर चर्चा इस बात की भी तेज हो गई कि क्या हेडगेवार को लेकर महायुति गठबंधन के दलों में रार चल रहा है?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और भारतीय जनता पार्टी एवं शिवसेना के अन्य विधायक रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक के बी हेडगेवार के स्मारक गए। हालांकि, उपमुख्यमंत्री अजित पवार और महायुति गठबंधन में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अन्य विधायक इस दौरान उनके साथ नहीं थे।
मुख्यमंत्री फडणवीस और उपमुख्यमंत्री शिंदे ने रेशिमबाग स्थित स्मृति मंदिर में हेडगेवार और दूसरे संघचालक एम.एस. गोलवलकर के स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की। राज्य विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर, विधान परिषद के सभापति राम शिंदे और भाजपा एवं शिवसेना के कई अन्य विधायक भी स्मारक पहुंचे। फडणवीस और शिंदे समेत भाजपा और शिवसेना के विधायक पिछले साल भी स्मृति मंदिर गए थे लेकिन अजित पवार उनके साथ नहीं थे।
हालांकि इस बार राजनीतिक गलियारों में बढ़ती चर्चा को देखते हुए एनसीपी ने अजित पवार के नागपुर नहीं जाने के पीछे का कारण साफ किया। पार्टी ने बयान जारी अपना रुख साफ करते हुए कहा कि वह महायुति गठबंधन में राज्य के विकास के लिए शामिल हुई है, न कि किसी विचारधारा को अपनाने के लिए। वहीं इस मामले में एनसीपी के प्रवक्ता आनंद परांजपे ने कहा कि पार्टी की विचारधारा सामाजिक सुधारकों शाहू महाराज, ज्योतिबा फुले और डॉ. भीमराव आंबेडकर के प्रगतिशील विचारों पर आधारित है। उन्होंने यह भी कहा कि यह पहली बार नहीं है जब अजित पवार हेडगेवार स्मारक नहीं गए हैं।
अब उनकी पार्टी की तरफ से भले ही सफाई पेश की जा रही हो और बीजेपी की तरफ से इस बात पर मिट्टी डाली जा रही हो लेकिन इस बात को लेकर अब विपक्ष भाजपा और महायुति गठबंधन पर हमलावर है। वहीं इस बीच इस मुद्दे पर कांग्रेस ने भी एनसीपी पर निशाना साधा। कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा कि अगर एनसीपी आरएसएस की विचारधारा से सहमत नहीं है, तो सत्ता में बने रहना मुश्किल है।
उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस लोकतंत्र और संविधान को कमजोर करने वाली सोच को बढ़ावा देता है। सचिन सावंत ने यह भी कहा कि आरएसएस को अब तक यह साफ करना चाहिए कि हिंदुत्व का असली मतलब क्या है। उन्होंने दावा किया कि संघ की बैठकों में बौद्धिक चर्चा से ज्यादा समाज को बांटने वाली बातें होती हैं।
हालांकि वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय रेशीमबाग का दौरा किया। दौरे के दौरान डॉ. हेडगेवार स्मृति मंदिर में श्रद्धांजलि अर्पित की गई और संघ के ऐतिहासिक योगदान पर चर्चा हुई. इस अवसर का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि नागपुर संघ की जन्मभूमि है और यहां से प्रेरणा लेकर देशभर में सामाजिक कार्य संचालित होते हैं. भेंट के बाद उपमुख्यमंत्री ने संगठन की व्यापक पहुंच और निरंतर सेवा की सराहना की।
डिप्टी सीएम ने कहा कि रेशीमबाग आने पर प्रत्येक कार्यकर्ता को राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति की विशिष्ट अनुभूति होती है. उन्होंने कहा कि यहां से समाजसेवा और राष्ट्रसेवा की प्रेरणा लेकर कार्यकर्ता सक्रिय रूप से कार्य करते हैं. देशभर ही नहीं, बल्कि विश्वभर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाएं कार्यरत हैं और यह संगठनात्मक सामर्थ्य अत्यंत उल्लेखनीय है. शिंदे के अनुसार, संघ का कार्य मॉडल सेवा, अनुशासन और समर्पण पर आधारित है, जो कठिन परिस्थितियों में भी समाज को दिशा देता है.
उपमुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि डॉ. मोहन भागवत का मार्गदर्शन कार्यकर्ताओं को निरंतर प्रेरणा देता है और समाजसेवा व राष्ट्रसेवा की शक्ति प्रदान करता है. उन्होंने स्मरण कराया कि सौ वर्ष पूर्व परमपूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी. इसलिए नागपुर केवल उपराजधानी नहीं, बल्कि संघ की जन्मभूमि भी है. यहां आने वाला प्रत्येक स्वयंसेवक जाति, भाषा और प्रांत से ऊपर उठकर राष्ट्रप्रेम की सीख लेकर देशसेवा में सहभागी होता है. बिना किसी प्रसिद्धि या अपेक्षा के सौ वर्षों से निःस्वार्थ भाव से कार्य करना एक ऐतिहासिक तथ्य है.
हालांकि इस मौके पर भले ही एकनाथ शिंदे बीजेपी और आरएसएस की तारीफ कर रहे हों लेकिन बात जब उनपर आती है तो वो खुद भी बगावती तेवर अपना लेते हैं। अभी हाल ही में हुए BMC चुनाव से पहले कई बार ऐसा देखा गया जब, शिंदे बगावती रुख अपनाते हुए नजर आये। वहीं आपको बता दें कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मुंबई में महापौर चुनाव को लेकर एक्टिव हो गए हैं।
मुंबई मेयर चुनाव ऐतिहासिक रूप से शिवसेना की राजनीतिक पहचान का केंद्र रहा है। क्योंकि, विभाजित शिवसेना ने 25 वर्षों तक मुंबई महापौर पद पर अपना दबदबा बनाए रखा था। BMC चुनावों से पहले ठाकरे भाइयों के राजनीतिक पुनर्मिलन ने हिंदुत्व vs मराठी प्राथमिकता की जंग छेड़ दी है।
दरअसल,एक कार्यक्रम के दौरान जब पूछा गया कि क्या शिवसेना इस पद को बरकरार रख पाएगी, तो शिंदे ने कोई दावा पेश नहीं किया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि मुंबई के महापौर महायुति से ही होंगे और वह भी दो बार। सामने आई जानकारी के मुताबिक भाजपा ने मीरा-भयंदर और ठाणे में शिंदे की शिवसेना को महापौर पद संभालने देने की इच्छा जताई है, लेकिन मुंबई के मामले में कोई समझौता नहीं होगा। मुंबई महापौर चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे और ठाकरे परिवार के ‘मराठी प्रथम’ के सिद्धांत के बीच होने की संभावना है। शिंदे को शहर में शिवसेना के पारंपरिक वर्चस्व को कायम रखने के बजाय भाजपा के सहायक की भूमिका निभाते हुए देखा जा रहा है।
इतना ही नहीं वहीं, जब एकनाथ शिंदे से ठाकरे परिवार के पुनर्मिलन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि भी सभी दलों को गठबंधन बनाने का अधिकार है। हमारा एजेंडा स्पष्ट है – विकास और कल्याणकारी योजनाएं। इस दौरान उन्होंने अपनी वैचारिक विरासत पर जोर देते हुए कहा, ‘हम बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा का अनुसरण कर रहे हैं’। मुंबई महानगर क्षेत्र में महापौर चुनाव को लेकर शिंदे की शिवसेना और भाजपा के बीच तनाव पनप रहा है। शिंदे गुट के कार्यकर्ताओं ने अनियंत्रित खरीद-फरोख्त को लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र चव्हाण से तीखी बहस की है।
इधर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भाजपा के आत्मविश्वास किया है। उन्होंने गठबंधन को आगे ले जाने की अपनी इच्छा की पुष्टि भी की थी। उन्होंने कहा था कि हम भाजपा को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन गठबंधन 2029 तक बरकरार रहेगा। हम भाजपा को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन गठबंधन 2029 तक बरकरार रहेगा।
हालांकि जिस हिसाब से शिंदे और अजित पवार बारी-बारी से नाराज होते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में लगता नहीं है कि ये गठबंधन ज्यादा दिनों तक चल पाएगा। आपको याद दिलवा दें कि जब महाराष्ट्र में इस बार चुनाव सम्पन्न हुए थे और महायुति की सरकार बनी देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ली तो उस वक़्त भी महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ही थे।
ऐसे में उनके सीएम पद से हटाकर या यूँ कह लें कि
उनसे छीन कर देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाया गया है। ऐसे में वो कसक शिंदे के भीतर आज भी। ऐसे में एक बात तो तय है कि महाराष्ट्र की महायुति सरकार पर कहीं न कहीं ग्रहण लगने का खतरा आज भी बना हुआ है।


