डिप्टी स्पीकर पर फंस गया पेंच, राहुल गांधी ने खेल कर दिया, अब तख्तापलट होगा?
लोकसभा चुनावों के बाद होने वाले महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, जम्मू कश्मीर दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों में भी अगर संविधान का मुद्दा चल गया...
4पीएम न्यूज नेटवर्कः आम चुनावों के बाद भारत में 18वीं लोकसभा गठित हो गई… नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले दूसरे नेता हो गए… आपको बता दें कि बीजेपी को भले ही अपने बलबूते पूरा बहुमत नहीं मिला… लेकिन सहयोगी दलों के साथ एनडीए गठबंधन को बहुमत से इक्कीस सीटें ज्यादा मिलीं… और मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बन गई… बता दे कि आम चुनावों मोदी को उनकी ध्रुवीकरण की राजनीति से तगड़ा झटका लगा… और जनका ने मोदी को पूरी तरह से नकार दिया… और बीजेपी महज दो सौ चालीस सीटों पर आ गई… लेकिन कहावत है कि रस्सी जल गई लेकिन ऐठन नहीं गई… यह कहावत नरेंद्र मोदी पर सटीक बैठती है… आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी परीक्षा पर चर्चा तो करते हैं लेकिन नीट मामले पर चुप हैं… मन की बात करते हैं.. लेकिन जनता के मन की बात जानने का प्रयास नहीं करते हैं… सिर्फ अपने मन की बात करते है… देश में हुए भ्रष्टाचार एक के बाद एक सामने आ रहे है… किसान आज भी सड़कों पर हैं… लेकिन मोदी की तानाशाही कम होने का नाम नहीं ले रही है… बैसाखी पर आने के बाद भी मोदी को जनता की समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है…
वहीं तमाम आशंकाओं को दरकिनार करते हुए सरकार ने बीजेपी सांसद ओम बिरला को दूसरी बार भी स्पीकर बनवा लिया…. इसके साथ ही सत्ता पक्ष और विपक्ष ने भावी राजनीति की नई इबारत भी लिख दी है…. जो भारतीय संविधान को लेकर आरोपों प्रत्यारोपों की लड़ाई बन कर सामने आ रही है…. लोकसभा चुनावों में विपक्षी इंडिया गठबंधन… और खासकर कांग्रेस ने बीजेपी के चार सौ पार के नारे को संविधान बदलने के खतरे से जोड़कर संविधान की हिफाजत करने को जबर्दस्त चुनावी मुद्दा बनाया… वहीं चुनावों में बीजेपी को तिरसठ सीटें गंवानी पड़ीं…. और चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूरी बीजेपी राहुल गांधी… और कांग्रेस के इस हमले का कारगर जवाब नहीं दे सकी…. नई लोकसभा में सांसदों के शपथग्रहण के दौरान कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के ज़्यादातर सांसदों ने संविधान की छोटी प्रति हाथ में लेकर जय संविधान का नारा लगाकर यह साफ़ कर दिया…. कि संविधान का मुद्दा सिर्फ चुनावों तक नहीं था… ये आगे भी रहेगा…
आपको बता दें कि लोकसभा चुनावों के बाद होने वाले महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, जम्मू कश्मीर दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों में भी अगर संविधान का मुद्दा चल गया… और दलितों आदिवासियों, अति पिछड़ों ने इंडिया गठबंधन की तरफ रुख कर दिया… तो बीजेपी को इन सभी राज्यों में जबर्दस्त नुकसान हो सकता है…. वहीं विपक्ष के संविधान मुद्दे की काट के लिए बीजेपी ने आपातकाल के उन दिनों की यादें आगे कर दी हैं… जब उन्नीस महीनों के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश में लोकतंत्र पर ताला लगा दिया था… और राजनीतिक बंदियों से देश की जेलें भर गईं थीं…. वहीं सदन में आपातकाल का मुद्दा इस सत्र में तब उठा…. जब स्पीकर ओम बिरला ने सदन में आपातकाल की निंदा की…. बता दें कि सदन में लाए निंदा प्रस्ताव को बिरला ने पढ़ा… और प्रस्ताव के जरिए कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए आपातकाल की ज्यादतियों… और जुल्मों का जिक्र विस्तार से किया… वहीं पचास साल बाद आपातकाल का जिक्र कर-करके मोदी अपनी कमी को छुपाने की कोशिश कर रहें है…फिर अपनी विकास के बारे में क्यों नहीं बता रहें है… सदन में भी अनर्गल मुद्दों पर बात करके अपनी कमी को मोदी के द्वारा छुपाने की कोशिश जारी है… लेकिन विपक्ष भी मजबूत स्थिति में हैं… और सरकार को आईना दिखाने का काम कर रहें है….
वहीं इस तरह बीजेपी ने कांग्रेस और उसके संविधान बचाओ नारे का जवाब देते हुए यह कहा गया कि संविधान अब नहीं तब खतरे में था… जब देश पर आपातकाल थोपा गया था… और ऐसा करने वाली कांग्रेस को संविधान बचाने का नारा लगाने का कोई अधिकार नहीं है…. बता दें कि बीजेपी के इस तीर ने कांग्रेस को भी परेशान किया…. क्योंकि इस मुद्दे पर इंडिया गठबंधन के वो घटक दल जिनके नेता… और कार्यकर्ता आपातकाल के शिकार हुए थे…. कांग्रेस के साथ नहीं खड़े हो सकते हैं…. वहीं इसकी एक झलक सदन में तब देखने को मिली जब ओम बिरला के प्रस्ताव के विरोध में कांग्रेस सांसद लगातार नारेबाजी करते रहे… लेकिन समाजवादी पार्टी, डीएमके और राजद जैसी पार्टियों के सदस्य चुप रहे…. वहीं सत्र के दूसरे दिन कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने जब शपथ लेने के बाद जय संविधान का नारा लगाया तो स्पीकर ने उन्हें टोकते हुए कहा कि… संविधान की शपथ तो आप ले ही रहे हैं… आपको बता दें कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी आपातकाल का जिक्र आने पर भी कांग्रेस ने ऐतराज जताया…. और कांग्रेस संगठन महासचिव के.सी.वेणुगोपाल ने लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर अपना विरोध प्रकट किया…. वहीं नेता विपक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के साथ शिष्टाचार मुलाकात में भी कहा कि आपातकाल पर प्रस्ताव अनावश्यक था… क्योंकि इस मुद्दे पर कई बार बहस हो चुकी है… वहीं कांग्रेस नेताओं का यह भी कहना है कि उन्चास साल पुराने मामले को उठाकर बीजेपी सिर्फ अपनी खीज और डर जता रही है….
आपको बता दें कि कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया सुले ने एक वीडियो जारी करते हुए मोदी सरकार के दस साल पर अनेक आरोप लगाते हुए उन्हें अघोषित आपातकाल की संज्ञा दी है… वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी प्रधानमंत्री मोदी पर अघोषित आपातकाल का आरोप लगाया है… जिसको लेकर कांग्रेस नेता ओंकारनाथ सिंह ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि जिस जनता ने उन्नीस सौ सतहत्तर में इंदिरा गांधी… और कांग्रेस को चुनाव हराकर उन्हें आपातकाल की सजा दी थी…. उसी जनता ने महज ढाई साल बाद इंदिरा गांधी को दो क्षेत्रों रायबरेली… और मेडक से जिताया…. और कांग्रेस को तीन सौ पचास से अधिक सांसदों का विशाल बहुमत भी दिया था…. इन सबके बीच समाजवादी पार्टी ने संविधान के मुद्दे को एक नई धार देकर नई बहस शुरू कर दी है…. सपा सांसद और दलित नेता आरके चौधरी ने संसद के नए भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से स्थापित सेंगोल को हटाकर वहां संविधान को स्थापित करने की मांग की है…. वहीं सेंगोल को लेकर आरके चौधरी कहते हैं कि सेंगोल राजतंत्र और राजशाही के राजदंड का प्रतीक है… जिसकी भारत के संवैधानिक लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है… उसकी जगह संविधान को स्थापित किया जाना चाहिए… आरके चौधरी के इस बयान का विपक्षी इंडिया गठबंधन ने पुरजोर समर्थन किया है… जबकि बीजेपी इसे भारतीय संस्कृति… और तमिल जनभावना का प्रतीक बताते हुए सेंगोल का बचाव कर रही है….
उधर बीजेपी आपातकाल के मुद्दे को जनता तक ले जाने की तैयारी कर रही है…. इसके लिए देश के हर जिले और… चुनाव क्षेत्र में जन सभाएं आयोजित की जाएंगी… जिनमें बताया जाएगा कि कैसे कांग्रेस ने आपातकाल लगाकर संविधान का गला घोंटा था…. बता दें कि बीजेपी की कोशिश है कि दलितों आदिवासियों पिछड़ों अति पिछड़ों के बीच संविधान बदलने का भ्रम जिस तरह कांग्रेस ने फैलाया है…. उसकी काट आपातकाल के तीर से ही की जा सकती है… क्योंकि कांग्रेस के पास इसका कोई जवाब नहीं है…. वहीं कांग्रेस मानती है कि आपातकाल के बाद उन्नीस सौ अस्सी, उन्नीस सौ चौरासी, उन्नीस सौ इक्यानवे, दो हजार चार और दो हजार नौ के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को जनता अपना जनादेश दे चुकी है…. इसलिए यह मुद्दा अब नहीं चलेगा… यह आरोप प्रत्यारोप बताता है कि लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद संवाद… और सहयोग की जो संभावना जताई जा रही थी…. उसको पहले दिन ही नष्ट कर दिया गया है…. ऐसा माना जा रहा था कि अब बीजेपी के बहुमत से काफी दूर रह जाने… और सहयोगी दलों के समर्थन से चलने वाली एनडीए सरकार का रुख अब विपक्ष के प्रति बदलेगा…. वहीं उम्मीद ये भी थी कि राहुल गांधी की अगुवाई में पहले से ज्यादा मजबूत विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष का संवाद…. और सहयोग का दौर शुरू होगा…. क्योंकि विपक्ष की उपेक्षा अब संभव नहीं होगी….
लेकिन जिस तरह के तेवर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने दिखाए हैं…. उससे यह आशंका मजबूत हो गई है कि अट्ठारहवीं लोकसभा में सहयोग… और संवाद नहीं बल्कि एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ ज्यादा रहने वाली है…. वहीं सरकार का साफ संदेश है कि भले ही मीडिया राजनीतिक विश्लेषक उसे पहले की तुलना में कमजोर आंकें…. लेकिन वह अब भी उतनी ही मजबूत और ताकतवर है… जितनी पहले थी… दूसरी तरफ विपक्ष ने यह संदेश सरकार और देश को दिया है कि… दस साल तक जो मनमानी सत्ता पक्ष ने की है…. वह अब नहीं चलेगी क्योंकि अब विपक्ष भी मजबूत है….विपक्ष का कहना है कि भले ही सदन में संख्या बल सरकार के पास ज्यादा है…. लेकिन मनोबल उसके पास ज्यादा है… क्योंकि सत्ता पक्ष की सीटें कम हुई हैं… और विपक्ष के सांसदों की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हुई है… बता दें कि एक दूसरे को कमजोर साबित करने…. और खुद को दूसरे से ज्यादा मजबूत दिखाने की यह होड़ आने वाले दिनों में… और तेज होगी और संसद में सत्ता पक्ष व प्रति पक्ष का टकराव लगातार बढ़ता हुआ दिखाई देगा…. आपको बता दे कि नई लोकसभा में राहुल गांधी का नेता प्रतिपक्ष बनकर आना भी बड़ी राजनीतिक घटना है…. पिछले करीब दो सालों में राहुल गांधी ख़ुद में जिस तरह के बदलाव लाए हैं…. वो एक आक्रामक विपक्षी नेता के रूप में उभर कर आए हैं…. राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को हर मुद्दे पर निशाने पर ले रहे हैं…. लोकसभा चुनाव में जिस तरह राहुल गांधी ने इंडिया गठबंधन के दूसरे नेताओं के साथ अपनी समझदारी बनाई है…. उसने भी उन्हें स्वीकार्य बनाया है…. अब वह लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी के सामने होंगे…. वो कई समितियों में शामिल होंगे…. वहीं सीबीआई, सीवीसी, चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की चयन समितियों के सदस्य के रूप में प्रधानमंत्री के साथ बैठेंगे…. और महत्वपूर्ण सरकारी कार्यक्रमों में उन्हें बतौर नेता विपक्ष आमंत्रित किया जाएगा…. आपको बता दें कि राहुल और मोदी के बीच जिस तरह खट्टे मीठे रिश्ते हैं…. उनसे भी लोकसभा के भीतर खासी गरमा गरमी रहने की संभावना है….
आपको बता दें कि आने वाले दिनों में राहुल गांधी और निखर कर सामने आएंगे… और सदन में जनता के मुद्दों को लेकर सरकार से जबाब मांगेंगे… लेकिन अभी तक सरकार जनता के मुद्दों से भागती ही रही है… वहीं आने वाले समय में विपक्ष अपनी बातों को मजबूती के साथ रखेगा और मोदी को अब अपने दस सालों के कामों का हिसाब देना पड़ेगा…