राहुल इन हरियाणा, मृतक पूरन के परिजनों के सिर पर रखा हाथ

  • पूरे देश में पिछड़े-दलितों में आक्रोश
  • पश्चिम से पूरब तक सरकार बेचैन
  • आरोपी अधिकारी को भेजा लंबी छुट्टी पर
  • हाई एलर्ट पर सुरक्षा व्यवस्था
  • बिहार के पिछड़े वोट बैंक की चाबी हरियाणा से भर गये नेता प्रतिपक्ष?
  • राहुल गांधी का हरियाणा जाना एक पॉलिटिकल रिसेट बटन की तरह

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
चंडीगढ़। हरियाणा जल रहा है बाहर से नहीं बल्कि भीतर से और इस आग की तपिश अब दिल्ली तक पहुंचने लगी है। राज्य के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या ने उस सच को उजागर कर दिया है जिसे वर्षों से फाइलों और सामाजिक सद्भाव के नाम पर दबाया जाता रहा अब जब राहुल गांधी मृतक परिजानों से मिलने हरियाणा पहुंच रहे हैं तो यह सिर्फ एक शोक यात्रा नहीं बल्कि राजनीतिक पुनर्जागरण की यात्रा बनती दिखाई दे रही है। और यह सवाल हवा में तैर रहा है कि क्या राहुल गांधी बिहार के पिछड़े वोट बैंक की चाबी हरियाणा की धरती से भरने जा रहे हैं। लगता बिल्कुल ऐसा ही है। राहुल गांधी दलित उत्पीडऩ की बात लंबे समय से कर रहे हैं। और हरियाणा की घटना ने बैठे बिठाये उनके हाथ में ऐसी गुगली थमा थी जिससे वह एनडीए गठबंधन को क्लीन बोल्ड कर सकते हैं।

ये सिर्फ एक परिवार की बात नहीं है, पूरे दलित समाज से जुड़ा मुद्दा है : राहुल

लोकसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा, मैं केंद्र और हरियाणा सरकार से कहना चाहता हूं कि एक्शन लीजिए, अफसर पर कार्रवाई कीजिए और परिवार पर जो दबाव है, उसे हटाइए क्या कार्रवाई होनी चाहिए, इस सवाल पर राहुल गांधी ने कहा, ऐसे आरोपी अफसरों को गिरफ्तारी होनी चाहिए। पीडि़त परिवार से हुईं बातों और उनकी मांगों पर राहुल गांधी ने कहा, उनका अपमान किया गया। उनका करियर खत्म किया गया और अब उनके परिवार का सम्मान जल्द से जल्द वापस किया जाए। परिवार की ये मांगें एकदम जायज हैं। ये सिर्फ एक परिवार की बात नहीं है, पूरे दलित समाज से जुड़ा मुद्दा है।

अन्य राज्यों में भी फैल रहा है तनाव

हरियाणा की घटना के बाद महाराष्ट्र में भी तनाव तेजी से फैल रहा है। वहां की सरकार ने चिट्ठी लिखकर एलर्ट जारी किया है। महाराष्ट्र सरकार के पत्र में कहा गया है कि वाई पूरन कुमार आईपीएस के दुर्भाग्यपूर्ण निधन के बाद हालिया घटनाएं सामने आयी हैं। इस संदर्भ में सभी जिलों और संभागों में कड़ी निगरानी रखने और सांप्रदायिक सद्भाव सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है।

राहुल की एंट्री संवेदना या रणनीति?

राहुल गांधी का हरियाणा जाना महज संवेदना नहीं है बल्कि यह एक राजनीतिक मोर्चा खोलने की रणनीति है। राहुल गांधी लंबे समय से इस विषय पर मेहनत कर रहे हैं। वह जाति जनगणना, समाजिक न्याय और संवेदनशील शासन की नयी राजनीति बुन रहे हैं। हरियाणा की यह यात्रा उस ताने-बाने की नई डोर है। राहुल जानते हैं कि पिछड़े वर्ग, दलित और वंचित समुदाय ही भविष्य के लोकतंत्र की धुरी हैं। और बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में यह साइलेंट वोट बैंक 2024 की हार के बाद अब 2029 की तैयारी का मूल बन सकता है। इसलिए राहुल गांधी का हरियाणा जाना एक पॉलिटिकल रिसेट बटन है जहां वह कह रहे हैं कि लड़ाई अब अडानी-अंबानी बनाम आम जनता से आगे बढ़कर सत्ता बनाम सामाजिक न्याय की हो गई है।

एक मौत नहीं, व्यवस्था की शर्मनाक हकीकत

वाई पूरन कुमार, एक ईमानदार आईपीएस अधिकारी थे। उनकी पत्नी भी एक आईएएस अधिकारी हैं। उनकी आत्महत्या ने न केवल हरियाणा पुलिस को बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे को सवालों के घेरे में ला दिया है। पत्रों और संवादों से जो तस्वीर उभर रही है वह सिस्टम के भीतर की सड़ांध का बताने के लिए काफी है। जहां जाति अब भी पहचान से पहले दी जाती है और सम्मान बाद में। एक सीनियर अफसर जो खुद कानून व्यवस्था का जिम्मेदार था अगर जातिगत भेदभाव से टूट जाए तो सोचिए उस क्लर्क, शिक्षक या किसान का क्या हाल होगा जिसके पास लडऩे के लिए न तो मंच है न माइक।

भीमराव अंबेडकर की आत्मा और जवाहरलाल नेहरू का दृष्टिकोण

यह घटना राहुल गांधी के लिए एक मौका है जाति को सिर्फ वोट की गिनती से आगे ले जाकर उसे न्याय की पुकार में बदलने का। यह वही फार्मूला है जिससे लालू प्रसाद यादव ने 90 के दशक में बिहार बदला था। अब राहुल उसी पथ पर 21वीं सदी का समाजिक न्याय आंदोलन खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। वह जय भीम, जय भारत जोड़ो की मिलीजुली भाषा बोल रहे हैं जहां भीमराव अंबेडकर की आत्मा और जवाहरलाल नेहरू का दृष्टिकोण एक मंच पर दिखाई दे रहा है। राहुल गांधी की यह हरियाणा यात्रा प्रतीकात्मक नहीं है यह एक राजनीतिक संकेत है। क्योंकि बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की हवा पहले से गर्म है। और कांग्रेस यह भांप चुकी है कि पिछड़े-पसमांदा वोट बैंक का मूड अब सिर्फ विकास से नहीं सम्मान से जुड़ गया है। यदि हरियाणा का जातिगत संघर्ष बिहार की गलियों तक पहुंचता है तो वहां यादव, कुशवाहा, माली, पासवान और मुसलमानों की साझा बेचैनी एक नई एकता में बदल सकती है।

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