गांजा शांति सम्मेलन में भारत की भूमिका पर शशि थरूर ने उठाए सवाल, बोले- क्या यह रणनीतिक दूरी या कूटनीतिक मौका गंवाया है?

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने सोशल साइट एक्स पर लिखा कि जब दर्जनों देशों ने अपने राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री स्तर के प्रतिनिधि भेजे हैं,

4पीएम न्यूज नेटवर्कः मिस्र में गाजा शांति सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश राज्य मंत्री द्वारा होने पर शशि थरूर ने सवाल उठाए हैं. उन्होंने इसे ‘रणनीतिक दूरी’ या ‘कूटनीतिक मौका गंवाने’ वाला कदम बताया. थरूर का कहना है कि उच्च-स्तरीय भागीदारी न होने से भारत की आवाज सीमित हो सकती है.

मिस्र के शार्म एल-शेख में सोमवार से शुरू हुए गाजा शांति सम्मेलन (Gaza Peace Summit) में भारत की ओर से विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह के शामिल होने पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने सवाल उठाया है. शशि थरूर ने सवाल किया है कि यह रणनीतिक दूरी या भारत ने कूटनीतिक मौका गंवाया है.

गाजा शांति सम्मेलन में दुनिया के बड़े नेता एक साथ जुटे हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी, संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुटेरेश और ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, तुर्की, कतर, जॉर्डन जैसे देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस उच्च-स्तरीय शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं. सम्मेलन का मकसद गाजा में युद्धविराम की रूपरेखा, मानवीय सहायता का समन्वय और पुनर्निर्माण के रोडमैप पर वैश्विक सहमति बनाना है. भारत की ओर से इस सम्मेलन में विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह हिस्सा ले रहे हैं, लेकिन यह उपस्थिति चर्चा का विषय बन गई है.

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने सोशल साइट एक्स पर लिखा कि जब दर्जनों देशों ने अपने राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री स्तर के प्रतिनिधि भेजे हैं, तो भारत की ओर से इतने निचले स्तर का प्रतिनिधित्व हमारी आवाज और पहुच को सीमित कर सकता है. उन्होंने कहा, यह किसी व्यक्ति विशेष की योग्यता का सवाल नहीं, बल्कि संदेश का सवाल है. जब इतने राष्ट्राध्यक्ष और प्रधानमंत्री मौजूद हैं, तो भारत की ओर से इतने निचले स्तर का प्रतिनिधित्व हमारी आवाज और पहुंच को सीमित कर सकता है.

कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने इस निर्णय पर सवाल उठाते हुए कहा, यह कदम रणनीतिक दूरी जैसा दिख सकता है, जबकि भारत के आधिकारिक बयानों में ऐसा कोई संकेत नहीं है. उन्होंने कहा कि इस स्तर की उपस्थिति से भारत को पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे अहम मुद्दों पर अपनी बात प्रभावी ढंग से रखने का अवसर कम मिल सकता है. हालांकि, इस निर्णय ने कूटनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है कि क्या भारत इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में रणनीतिक दूरी बनाए हुए है या फिर यह केवल प्रोटोकॉल से जुड़ा एक व्यावहारिक फैसला है.

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