गोंडा के विपिन यादव के परिवार का चौंका देने वाला खुलासा, SCबोला जवाब दो नहीं तो रद कर देंगे SIR

दोस्तों, बिहार में एसआईआर और बीजेपी को मिली अप्रत्याशित जीत के बाद से विपक्ष लगाातार ये सवाल उठा रहा है कि एसआईआर में बड़ा खेल है, राहुल गांधी ने इलेक्शन कमीशन को पीएम साहब की बी तक कह डाला है

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों, इलेक्शन चीफ ज्ञानेश कुमार जी चिल्ला चिल्ला कर पूरे देश से बता रहे हैं कि देश के लोग ही वोटर बने इसलिए एसआईआर जरुरी है लेकिन जमीन पर इसकी हकीकत कुछ उलट नजर आ रही है, आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश से एक बहुत बड़ी खबर आई है,

जिसमें दावा किया जा रहा है कि एसआईआर दलितों और पिछड़ों का वोट काटने के लिए हो रहा है। जैसे ही ये खबर आई है पूरे देश में हड़कंप मच गय है, एक ओर जहां ज्ञानेश जी के चुनाव आयोग की सिट्टी पिट्टी गुम है तो वहीं दूसरी ओर सबूत सामने आते ही पीएम साहब और उनके चाणक्य जी से सवालों का दौर शुरु हो गया है। उत्तर प्रदेश से एसआईआर में कौन सा बड़ा सबूत सामने आया है और कैसे ज्ञानेश जी और उनका चुनाव आयोग पूरे मामले को लेकर बुरा फंसा गया है, ये हम आपको आगे अपनी इस आठ मिनट की रिपोर्ट में बताएंगे।

दोस्तों, बिहार में एसआईआर और बीजेपी को मिली अप्रत्याशित जीत के बाद से विपक्ष लगाातार ये सवाल उठा रहा है कि एसआईआर में बड़ा खेल है, राहुल गांधी ने इलेक्शन कमीशन को पीएम साहब की बी तक कह डाला है और अब यही बातें ममता बनर्जी भी दोहरा रही है लेकिन इसके बाद भी 12 राज्यों में ज्ञानेश जी बहुत ही धूम से घुसपैठियों को निकालने के नाम पर एसआईआर करा रहे हैं लेकिन एक ओर जहां बीएलओ लगातार परेशान होने और भयंकर दवाब के चलते आत्महत्या करने की खबरें आ रही है। तो वहीं यूपी से एक बहुत ही चौंका देने वाला खुलासा सामने आया है। आपको बात दें कि यूपी के गोंडा जिले में दो दिन पहले विपिन यादव नाम के एक बीएलओ ने आत्महत्या कर ली थी। परिवार का दावा था कि चुनाव आधिकारियों के दबाव की वजह से विपिन यादव ने जहर खाया है

आपको बता दें कि विपिन यादव का हॉस्पिटल में एडमिट कराने का वीडियो भी वायरल हुआ था और इस वीडियों पर उनको प्रशासिनक अफसर घेरे थे लेकिन मौत के बाद जो खुलासा उसके परिवार वालों ने किया है वो बहुत ही चौंका देने वाला है। परिवार के लोगों का दावा है कि एसआईआर कराने के दवाब की वजह से विपिन यादव ने आत्महत्या नहीं बल्कि उस पर प्रेशर एसआईआार के दौरान वोटों को काटने को लेकर था। परिजनों को दावा है कि विपिन यादव को 700 लोगों का एसआईआर करना था और उसने 350 लोागों का लगभग कर लिया था लेकिन अफसर दबाव डाल रहे थे कि ओबीसी वोटों को काट दिया जाए लेकिन विपिन यादव यह बात किसी भी कीमत पर मानने को तैयार नहीं था और जैसे जैसे समय बीत रहा था, उस पर अफसरों का प्रेशर बढ़ रहा था और परिजनो का दावा है कि आखिर में आत्महत्या कर ली …

सुना आपने कि विपिन यादव के परिजन का साफ-साफ कहना है कि ओबीसी और दलित वोटों को काटने के प्रेशर की वजह से विपिन यादव ने आत्महत्या की है। ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा हुआ है कि एक तरफ सरकारी विज्ञापनों की भरमार है कि एसआईआर असली वोटर को पहचाने का एक जरिया और देश के असली नागरिक ही देश के वोटर हों, इसलिए एसआईआर जरुर है लेकिन जो विपिन यादव का परिवार कह रहा है, कहानी इसके बिल्कुल अलग है। असल में विपिन यादव के परिवार के आरोप के बाद ये दिख रहा है कि एसआईआर देश के दबे कुचले लोगों के वोट काटने का एक जरिया है। वैसे भी देश के अशिक्षित लोगों के लिए एसआईआर फार्म भरने से लेकर वोटर बनने तक की प्रक्रिया बहुत ही कठिन है और ऐसे में सबसे ज्यादा दलित, पिछडे, अनपढ़ लोगों को एसआईआर में वोट कटने की संभावना देखी जा रही है।

हालांकि जिस तरीके का दावा मृतक विपिन यादव का परिवार कर रहा है वो पूरी एसआईआर की प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर राहा है। सवाल ये भी खड़ा हो रहा है कि क्या सिर्फ विपिन यादव के साथ ऐसा हुआ है, या फिर हर बीएलओ के साथ इस तरह का काम हो रहा है, क्या पूरे एसआईआर में यह खेल चल रहा है। अगर ऐसा है तो एसआईआर में वोटर लिस्ट जो बन रही है वो क्या वो बीजेपी वोटर के लिए बन रही है और सच में ऐसा है तो फिर कहीं न कहीं राहुल गांधी और विपक्ष के नेताओं की इस बात में दम है कि इलेक्शन कमीशन बीजेपी की बी टीम ही है। लेकिन अभी क्योंकि ये बात जांच में दायरे में है और अभी आरोप की श्रेणी में है लेकिन एसआईआर को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हुआ है।

आपको बता दें कि जिस तरह से विपिन यादव की हत्या को लेकर राहुल गांधी ने एक बार फिर से इलेक्शन कमीशन के खिलाफ मोर्चा खोला है तो पूरा मामला फिर से सुर्खियों में आ गया है क्योंकि देश में चल रहे एसआईआर को लेकर भयंकर बवाल मचा हुआ है और पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुूका है। यहां तक कि जो देश में बीएलओ की 23 मौतों के बारे में सोशल मीडिया पर लिस्ट तैर रही है, उसको लेकर भी सुप्रीम कोर्ट एक्शन मे ंआया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह बात साफ तौर पर कह दी है कि हम एसआईआर पर कोई रोक नहीं लगाएंगे , क्योंकि बिहार में एसआईआर हुआ और वहां पर कोई गड़बडी नहीं पाई है।

आपको बता दें कि चीफ जस्टिस ने साफ कहा है कि ये संवैधानिक और वैधानिक प्रक्रिया है, इसलिए रोक लगाना संभव नहीं है, हां इतना जरुर है कि जहां हम गड़बड़ियों देखेंगे, वहां सुधारात्मक कार्रवाई करेंगे। आपको बता दें चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि तमिलनाडु एसआईआर मामले की सुनवाई सोमवार को होगी। केरल याचिका में स्थानीय निकाय चुनावों के कारण एसआईआर को स्थगित करने की मांग की गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बताया कि यह याचिका पहले ही मद्रास हाईकोर्ट में दाखिल है। कोर्ट ने केरल के लिए अलग से स्थिति रिपोर्ट मांगी है। वहीं, पश्चिम बंगाल याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि एसआईआर के दौरान 23 बीएलओ की मौत हो चुकी है।

कोर्ट ने इस गंभीर आरोप पर पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव कार्यालय से भी 1 दिसंबर तक जवाब तलब किया है। हालांकि मौतों के आकंड़ों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त है और हिदायत दी है कि चुनाव आयोग ठोस सबूत लेकर आए नहीं तो अगर कोई चूक होती है तो एसआईआर को रद किया जा सकता है। ऐसे में एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला फंसा हुआ है लेकिन इस बात की उम्मीद बहुत ही कम है कि एसआईआर की प्रक्रिया को रोका जाएगा, हां सुधारात्मक काम जरुर होंगे लेकिन जिस तरह के आरोप विपिन यादव के परिवार के हैं, इस तरह के आरोपों का क्या होगा। क्योंकि अभी तक कोई इस तरह की खबरें नहीं आई है कि विपिन यादव के साथ हुई घटना और उनके परिजनों के आरोपों की जांच होगी और शायद ऐसे में पूरे मामले को दबा दिया जाएगा।

आपको बता दें कि होना तो यह चाहिये कि इस मामले की सुप्रीम कोर्ट की अंडर कस्टडी में न्यायिक जांच हो। क्योंकि जिन अफसरों पर आरोप लगा है कि वो एसआईआर और यूपी सरकार के हैं, ऐसे में न्यायिक जांच की सबसे अच्छा विकल्प साबित होगा लेकिन शायद अभी तक इस ओर किसी के कोई कदम बढ़ते नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में आरोप और बयानों के बाद पूरा खेल ठंडे बस्ते में चला जाएगा। हालांकि इस बात से कोई इंकार नहीं कि विपिन यादव के परिवार के आरोप न सिर्फ गंभीर है बल्कि पूरी एसआईआर प्रक्रिया को लेकर तीखा सवाल भी । पूरे मामले में आपका क्या मानना है, क्या विपिन यादव के परिवार ने जिस तरह का आरोप लगाया है क्या ये सभी है। क्या सच में यूपी में दलित ओबीसी के वोटों को काटने का खेल हो रहा है। क्या इस मामले को सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर न्यायिक जांच के आदेश नहीं दिए जाने चाहिए।

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