…तो क्या गठबंधन के लिए तैयार हो गई है बसपा, रखी है बड़ी शर्त

लखनऊ। लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लडऩे की बात करने वाली बसपा प्रमुख मायावती का गठबंधन के लिए दिल पिघलने लगा है। विपक्षी दल भी बसपा को अपने साथ लेने की कवायद में हैं। सूत्रों की मानें तो विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल लोगों ने मायावती से संपर्क साधा है। ऐसे में मायावती ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल होने के लिए एक बड़ी शर्त रख दी है, जिसे लेकर मुंबई में होने वाली बैठक में बातचीत की जाएगी। ऐसे में बसपा की शर्तों पर सहमति बनती है तो फिर मायावती विपक्षी गठबंधन का हिस्सा होंगी। सूत्रों की मानें तो विपक्षी गठबंधन ने बसपा प्रमुख से इंडिया में शामिल होने के लिए संपर्क साधा है, लेकिन मायावती ने यूपी की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 40 सीटों की डिमांड रखी है। सूबे की आधी सीटें बसपा मांग रही है, जिसे लेकर विचार-विमर्श के बाद ही उसे लेकर फैसला किया जाएगा। विपक्षी गठबंधन की मुंबई में होने वाली 31 अगस्त और एक सितंबर की बैठक में मायावती के साथ गठबंधन और उनकी सीटों की शर्तों को रखा जाएगा। इसके बाद विपक्षी गठबंधन के बीच सहमति बनती है तो बसपा का हिस्सा बन सकती है।
दरअसल, मायावती लगातार यह बात कह रही हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी। बसपा न ही एनडीए का और न ही इंडिया का हिस्सा होगी बल्कि अकेले चुनावी मैदान में उतरेगी। मायावती भले ही गठबंधन से इंकार कर रही हों, लेकिन उनकी पार्टी के नेता और कई मौजूदा सांसद दबी जुबान से गठबंधन के पक्ष में बयानबाजी कर चुके हैं। इसकी वजह यह है कि बसपा के अकेले चुनाव लडऩे का हश्र सभी सांसद, विधायक 2014 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव में देख चुके हैं।
बसपा को गठबंधन की सियासत में हमेशा ही राजनीतिक लाभ मिला है। 2019 में गठबंधन के चलते बसपा जीरो से 10 सांसदों पर पहुंच गई। 2022 में अकेले चुनाव लडऩे के चलते बसपा यूपी में एक सीट पर सिमट गई थी। 2014 में बसपा का खाता भी नहीं खुला था। इसके चलते ही बसपा के नेता भी गठबंधन के पक्ष में खड़े हैं। पिछले दिनों बसपा सांसद मलूक नागर ने भी गठबंधन के संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था कि बसपा के पास यूपी में 13 फीसदी वोट है, जो किसी भी दल के साथ जुडऩे पर हार जीत में बदल सकता है।
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर मायावती ने बुधवार लखनऊ में बड़ी बैठक की थी, जिसमें उन्होंने गठबंधन से इंकार किया था। बसपा प्रमुख मायावती ने साफ शब्दों में कहा था कि गठबंधन करने पर उनका वोट ट्रांसफर हो जाता है, लेकिन सहयोगी दल के वोट उन्हें नहीं मिलते हैं। इसी बात को लेकर बार-बार कहती रही हैं कि बसपा अकेले चुनाव लड़ेगी, लेकिन पिछले दिनों उन्होंने यह बात जरूर कही थी कि चुनाव के बाद गठबंधन कर सकती हैं।
विपक्षी गठबंधन को देखें तो यूपी में सपा, आरएलडी और कांग्रेस शामिल है। ऐसे में कांग्रेस का एक धड़ा शुरू से ही बसपा के साथ गठबंधन करने की पैरवी करता रहा है। सूत्रों की मानें तो दलित वोटों को जोडऩे के लिए कांग्रेस के कुछ नेता पर्दे के पीछे से बसपा प्रमुख मायावती से गठबंधन के लिए बातचीत भी तैयार कर रहे थे, क्योंकि बसपा के साथ आने का सियासी फायदा सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भी हो सकता है। मायावती भी इस बात को बाखूबी तरीके से समझ रही हैं, जिसके चलते ही उन्होंने यूपी की आधी संसदीय सीटों पर चुनाव लडऩे का अपना दावा कर दिया है। विपक्षी गठबंधन में सपा भी शामिल है। अखिलेश यादव इसके पक्ष में नहीं है कि मायावती का गठबंधन में शामिल हों, लेकिन कांग्रेस नेता बसपा को लेने के पक्ष में है। मुंबई में होने वाले विपक्षी दलों की बैठक में कांग्रेस यह बात रखेगी ताकि अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की राय ली जा सके। सपा और आरएलडी तैयार हो जाती है तो फिर बसपा विपक्षी गठबंधन का हिस्सा होगी, लेकिन सीट शेयरिंग का फॉर्मूला फंस सकता है।
बता दें कि मायावती अकेले चुनाव लडऩे की बात इसीलिए कर रही हैं, क्योंकि बसपा की सियासी हैसियत फिलहाल ऐसी नहीं है, जिसे दम पर गठबंधन में बार्गेनिंग कर सकें। बसपा के पास यूपी में एक विधायक है, इस आधार पर कैसे सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर बात कर सकेंगी। मायावती दूसरे दलों के नेता की तरह नहीं है कि वो गठबंधन में शामिल होकर सिर्फ सीट लेकर चुनाव लड़ जाएं।
मायावती किसी भी गठबंधन का हिस्सा तभी बनेंगी, जब उन्हें अहम रोल में रखा जाए। विपक्षी गठबंधन ढ्ढहृष्ठढ्ढ्र का समाजवादी पार्टी हिस्सा है। यूपी में विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व अखिलेश यादव के हाथों में है। ऐसे में मुंबई बैठक से बसपा को लेकर क्या सहमति बनती है, इस पर सभी की निगाहें होगी?

 

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