सोनिया गांधी का बीजेपी पर वार, कहा- मोदी ने डेथ वारंट पर हस्ताक्षर किए
अरावली की पहाड़ियां, जो गुजरात से राजस्थान और हरियाणा तक फैली हुई हैं... सदियों से भारत के भूगोल, इतिहास और सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा रही हैं...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः भारत एक ऐसा देश है जो प्राकृतिक सुंदरता, विविध संस्कृति और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए जाना जाता है.. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण संबंधी मुद्दे यहां एक गंभीर चुनौती बन चुके हैं… वायु प्रदूषण, जल संकट, वनों की कटाई.. और अवैध खनन जैसी समस्याएं न केवल हमारी सेहत को प्रभावित कर रही हैं.. बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी खतरे में डाल रही हैं.. 2025 में ये मुद्दे और भी तेज हो गए हैं..
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने 3 दिसंबर को द हिन्दू अखबार में प्रकाशित अपने लेख द डिस्मल स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट में इन मुद्दों पर गहराई से चर्चा की है.. और उन्होंने लिखा है कि गुजरात से राजस्थान और हरियाणा तक फैली अरावली की पहाड़ियां लंबे समय से भारत के भूगोल.. और इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई हैं.. ये पहाड़ियां थार के रेगिस्तान को गंगा के मैदानी इलाकों तक बढ़ने से रोकती हैं.. राजस्थान में चित्तौड़गढ़ और रणथंभौर जैसे गौरवशाली किलों की रक्षा करती हैं.. और भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में रहने वाले लोगों के लिए आध्यात्मिकता का केंद्र हैं.. मोदी सरकार का फैसला इन पहाड़ियों को पूरी तरह से खत्म कर देगा.. जो पहले ही अवैध खनन के कारण नष्ट होती जा रही हैं..
बता दें कि सोनिया गांधी का यह लेख पर्यावरण की दयनीय स्थिति पर एक चेतावनी है.. इसमें सोनिया गांधी ने मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना की है.. जो पर्यावरण संरक्षण के बजाय विकास को प्राथमिकता दे रही हैं.. आपको बता दें कि अरावली पहाड़ियां भारत की सबसे प्राचीन पर्वत कतारों में से एक हैं.. ये लगभग 692 किलोमीटर लंबी कतार गुजरात के दक्षिण-पश्चिम से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली हुई हैं.. वैज्ञानिकों के अनुसार ये पहाड़ियां 25 अरब वर्ष पुरानी हैं.. और दुनिया की सबसे पुरानी फोल्ड माउंटेन सिस्टम मानी जाती हैं.. भूगोलिक रूप से ये थार रेगिस्तान को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती हैं.. अगर ये पहाड़ियां न होतीं.. तो रेगिस्तान गंगा के मैदानी इलाकों तक फैल जाता.. जिससे कृषि और जल संसाधन बुरी तरह प्रभावित होते..
वहीं ऐतिहासिक दृष्टि से अरावली ने राजपूत राज्यों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.. चित्तौड़गढ़, रणथंभौर और कुम्भलगढ़ जैसे किले इन्हीं पहाड़ियों पर बने हैं.. जो आक्रमणकारियों के खिलाफ प्राकृतिक किले का काम करते थे.. रामायण में भी अरावली का उल्लेख है.. जहां हनुमान जी के कारनामों से इन्हें जोड़ा जाता है.. आध्यात्मिक रूप से ये जैन, हिंदू और आदिवासी समुदायों के लिए पवित्र हैं.. माउंट आबू जैन तीर्थ स्थल है.. जबकि सरिस्का और रणथंभौर वन्यजीव अभयारण्य जैव विविधता के केंद्र हैं..
पर्यावरणीय महत्व की बात करें तो अरावली एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है.. यहां 800 से अधिक पेड़-पौधों की प्रजातियां.. 200 से ज्यादा पक्षी और दुर्लभ जानवर जैसे तेंदुआ.. चीतल और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पाए जाते हैं.. ये पहाड़ियां जल संरक्षण में भी मदद करती हैं.. लूनी, बनास और साबरमती जैसी नदियां इन्हीं से निकलती हैं.. जो राजस्थान और गुजरात के शुष्क इलाकों में सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण हैं.. दिल्ली के लिए ये ग्रीन लंग्स की तरह काम करती हैं.. जो प्रदूषण को कम करने और तापमान नियंत्रित रखने में सहायक हैं..
लेकिन आज ये पहाड़ियां खतरे में हैं.. अवैध खनन और शहरीकरण ने इन्हें क्षत-विक्षत कर दिया है.. 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गांव और नूह जिलों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था.. लेकिन अवैध गतिविधियां जारी हैं.. अरावली में अवैध खनन एक पुरानी समस्या है.. जो 2025 में और भी चिंताजनक हो गई है.. खनन माफिया चूना पत्थर, संगमरमर और अन्य खनिजों के लालच में पहाड़ियों को चट्टान-चट्टान काट रहे हैं.. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की एक आंतरिक रिपोर्ट के अनुसार.. राजस्थान के 15 जिलों में 12,081 पहाड़ियों में से अधिकांश 20 मीटर से ऊंची हैं.. लेकिन खनन ने इन्हें नष्ट कर दिया है..
इसके पर्यावरणीय प्रभाव गंभीर हैं.. सबसे पहले, खनन से मिट्टी का कटाव बढ़ता है. जिससे रेगिस्तान तेजी से बढ़ता है.. थार रेगिस्तान पहले ही पूर्व की ओर बढ़ रहा है.. और अरावली का कमजोर होना इसे और बढ़ावा देगा.. मथुरा और आगरा में पाई जाने वाली लॉस मिट्टी (रेगिस्तानी हवा से उड़कर आने वाली) इसका प्रमाण है.. दूसरा, जल स्तर गिर रहा है.. अरावली के नीचे जलभृतियां जुड़ी हुई हैं.. और खनन से भूजल 1,000-2,000 फीट तक नीचे चला गया है.. इससे सतह के जल स्रोत सूख रहे हैं.. जो उत्तर-पश्चिम भारत के लिए जल संकट पैदा कर रहा है..
वहीं खनन से जैव विविधता पर असर पड़ा है.. हरियाणा के चरखी दादरी और भिवानी जिलों में लाइसेंस प्राप्त खनन ने अधिकांश पारिस्थितिकी को नष्ट कर दिया.. गुरुग्राम, नूह और फरीदाबाद में 2009 के प्रतिबंध से पहले खनन ने हजारों हेक्टेयर जंगल मिटा दिए.. पक्षियों और जानवरों का आवास नष्ट हो रहा है.. जिससे प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं.. वायु प्रदूषण भी बढ़ा है.. खनन से उड़ने वाली धूल दिल्ली-एनसीआर की स्मॉग समस्या को.. और बदतर बना रही है.. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है.. और अरावली का क्षय इसमें योगदान दे रहा है..
सोनिया गांधी ने अपने लेख में कहा कि ये पहाड़ियां पहले ही अवैध खनन से नंगी हो चुकी हैं.. 2025 में ‘पीपल फॉर अरावलीज’ की रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा के सात जिलों में से अधिकांश अरावली विरासत नष्ट हो चुकी है.. यह न केवल पर्यावरण, बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवन को भी प्रभावित कर रहा है.. आदिवासी और ग्रामीण खनन से विस्थापित हो रहे हैं.. और स्वास्थ्य समस्याएं जैसे सांस की बीमारियां बढ़ रही हैं.. 2025 का सबसे विवादास्पद फैसला अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा है.. 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश स्वीकार की.. जिसमें केवल 100 मीटर ऊंचाई वाली भूमि को ही अरावली पहाड़ी माना जाएगा.. इससे 90% से अधिक पहाड़ियां संरक्षण से बाहर हो गईं.. जो खनन और निर्माण के लिए खुली हैं..
FSI की रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में केवल 8.7% पहाड़ियां 100 मीटर से ऊंची हैं.. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह परिभाषा खनन रोकने के नाम पर 90% अरावली को खोल देगी.. जिससे एनसीआर की हवा की गुणवत्ता बिगड़ेगी.. सोनिया गांधी ने इसे डेथ वारंट कहा.. क्योंकि यह अवैध खनन माफिया को आमंत्रण है.. जिसको लेकर सरकार का तर्क है कि यह सतत खनन के लिए है.. लेकिन विशेषज्ञ असहमत हैं.. पर्यावरण वकील रित्विक दत्ता कहते हैं कि 10-30 मीटर की छोटी पहाड़ियां भी हवा के रेगिस्तानी कणों को रोकती हैं.. सुप्रीम कोर्ट ने सतत खनन योजना बनाने का आदेश दिया.. लेकिन यह नई परिभाषा के तहत होगा.. इससे गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में खनन बढ़ेगा.. जो रेगिस्तानीकरण और जल संकट को तेज करेगा..
आपको बता दें कि अरावली का संकट भारत के व्यापक पर्यावरणीय संकट का हिस्सा है.. 2025 में वायु प्रदूषण चरम पर है.. आईक्यूएअर की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 54 शहर दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में हैं.. जिसमें दिल्ली सबसे ऊपर है.. स्मॉग से सालाना 34,000 मौतें हो रही हैं… वहीं जल संकट भी गंभीर है.. नीति आयोग की 2019 रिपोर्ट कहती है कि 21 शहरों में भूजल 2030 तक खत्म हो सकता है.. 70% सतह जल पीने योग्य नहीं है.. वनों की कटाई से जैव विविधता नष्ट हो रही है.. हसदेव अरण्य (छत्तीसगढ़), ग्रेट निकोबार और धीरौली (मध्य प्रदेश) में बड़े पैमाने पर विनाश हो रहा है..
वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के संशोधन.. और 2022 नियम आदिवासी विरोधी हैं.. जो बिना सलाह के जंगल काटने की अनुमति देते हैं.. पश्चिमी घाट और हिमालय में भी खनन और निर्माण से तबाही हो रही है.. जलवायु परिवर्तन से बाढ़ और सूखा बढ़ा है.. सोनिया गांधी ने न्यू डील फॉर एनवायरनमेंट की मांग की.. जिससे कोई और नुकसान न हो.. अवैध खनन रोका जाए.. और पुरानी नीतियों की समीक्षा हो.. अरावली को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाना जरूरी हैं.. ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ अरावली योजना 1,600 किमी लंबी ग्रीन कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव है.. जिसमें 135 करोड़ पेड़ लगाए जाएंगे.. हरियाणा में अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क जैसे प्रोजेक्ट सफल हैं..



