स्टिंग ऑपरेशन: चेतन शर्मा के बयान से मचा भूचाल
नई दिल्ली। चेतन शर्मा…ये नाम इस वक्त भारतीय क्रिकेट में गूंज रहा है। वजह है उनका एक स्टिंग ऑपरेशन जो भारतीय क्रिकेट में बड़ा भूचाल ला सकता है। चेतन शर्मा ने सनसनीखेज दावा किया कि भारतीय क्रिकेटर्स इंजेक्शन लेते हैं और वो डोप टेस्ट में भी नहीं पकड़े जाते। स्टिंग ऑपरेशन में चेतन शर्मा ने आरोप लगाया कि खिलाड़ी 80 से 85 प्रतिशत फिट होने के बावजूद प्रोफेशनल क्रिकेट में जल्द वापसी के लिए इंजेक्शन लेते हैं। अब सवाल ये है कि आखिर इस दावे में कितना सच है? क्या सच में भारतीय क्रिकेटर फिटनेस हासिल करने के लिए ये सब करते हैं?
आपको बता दें स्पोर्ट्स और डोपिंग का बहुत पुराना और गहरा नाता है। अकसर चैंपियन बनने के लिए खिलाड़ी डोपिंग करते हैं और पकड़े जाने पर उनपर बैन भी लगता है। एथलेटिक्स, स्विमिंग, फुटबॉल जैसे खेलों के अलावा क्रिकेट में भी इसके कई उदाहरण हैं। अब आपको बताते हैं कि आखिर अपनी फिटनेस हासिल करने के क्रिकेटर्स कौन सा इंजेक्शन लेते हैं?
क्रिकेट के मैदान पर अकसर खिलाडिय़ों को चोट लगती है। चोट की वजह से खिलाड़ी टीम से बाहर होते हैं और इससे उनकी ब्रांड वैल्यू पर भी असर पड़ता है। चोट के बाद वापसी करना किसी खिलाड़ी के लिए आसान नहीं होता और अगर उनकी गैरमौजूदगी में उन्हें रिप्लेस करने वाले खिलाड़ी ने बेहतरीन प्रदर्शन कर दिया तो फिर टीम में दोबारा जगह बनाना मुश्किल होता है। यही वजह है कि जल्द से जल्द फिटनेस हासिल करने के लिए खिलाड़ी इस राह पर चलने से नहीं हिचकते।
बता दें क्रिकेट में अकसर खिलाडय़िों को हड्डियों से जुड़ी चोट लगती हैं। जिसमें हड्डियों के जोड़ सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इन चोटों से वापसी करना इतना आसान नहीं होता और इसीलिए खिलाड़ी इंजेक्शन की राह पर चलते हैं। दिल्ली में प्रैक्टिस करने वाले ऑर्थोपेडिस्ट डॉ। आशीष गुप्ता ने टीवी 9 से बातचीत में बताया कि खिलाड़ी चोट को जल्द ठीक करने के लिए अकसर स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल करते हैं। इन स्टेरॉयड्स में सबसे ऊपर नैंड्रोलोन है जो हड्डियों को मजबूत करने के लिए लिया जाता है। इससे पुरानी चोट भी जल्द ठीक होती हैं। डॉक्टर्स के मार्गदर्शन में ही इस इंजेक्शन को लिया जाता है क्योंकि इसके काफी साइड-इफेक्ट्स भी होते हैं। बता दें पाकिस्तान के दो तेज गेंदबाज शोएब अख्तर और मोहम्मद आसिफ इसी नैंड्रोलोन इंजेक्शन को लेने की वजह से बैन भी हुए थे।
अब सवाल ये है कि आखिर खिलाड़ी स्टेरॉयड्स लेने के बावजूद डोपिंग टेस्ट में कैसे बचते हैं। दरअसल खिलाड़ी खास तरीके से इन स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल करते हैं। इसकी बहुत कम डोज़ रोजाना ली जाती है जिसे माइक्रो डोजिंग भी कहा जाता है। फिर इस पदार्थ को शरीर से बाहर निकालने के लिए भी दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है। कथित तौर पर शायद चेतन शर्मा इन्हीं तरह के इंजेक्शंस की बात कर रहे थे। हालांकि इसका कोई सबूत नहीं है। सच्चाई क्या है ये फिलहाल कोई नहीं जानता।