बिहार के राज्यपाल का बड़ा बयान, बोले- प्रक्रिया में नहीं रही व्यक्तिगत पसंद-नापसंद

राज्यपाल ने कहा, "हमने एक ऐसी प्रणाली अपनाई है जिसमें प्राचार्य की नियुक्ति व्यक्तिगत पसंद और नापसंद से निर्देशित नहीं होती..."

4पीएम न्यूज नेटवर्कः पटना विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले पाँच प्रमुख कॅालेजों को बुधवार को ने प्राचार्य मिल गए हैं। यह नियुक्तियाँ बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) की अनुशंसा पर की गई हैं। विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण पारदर्शिता और नियमों के तहत पूरी की गई है।

पटना विश्वविद्यालय के पांच कॉलेजों में एक अभूतपूर्व कदम के तहत लॉटरी के जरिए प्राचार्यों की नियुक्ति की गई है. इस पर विवाद भी हो रहा है. इस बीच बचाव करते हुए बिहार के राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय के कुलाधिपति आरिफ मोहम्मद खान ने गुरुवार (03 जुलाई, 2025) को कहा कि एक ऐसी प्रणाली अपनाई गई है जिसमें प्राचार्य की नियुक्ति व्यक्तिगत पसंद-नापसंद से निर्देशित नहीं होती.

विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार की अधिसूचना के अनुसार, नए प्राचार्यों की नियुक्तियां बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (बीएसयूएससी) की अनुशंसा पर की गई है. बुधवार (02 जुलाई, 2025) को विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले कॉलेजों में प्राचार्य के रूप में नियुक्त किए गए लोगों में नागेंद्र प्रसाद वर्मा (मगध महिला कॉलेज), अनिल कुमार (पटना कॉलेज), अलका (पटना साइंस कॉलेज), सुहेली मेहता (वाणिज्य महाविद्यालय) और योगेंद्र कुमार वर्मा (पटना लॉ कॉलेज) शामिल हैं. राज्यपाल ने कहा, “हमने एक ऐसी प्रणाली अपनाई है जिसमें प्राचार्य की नियुक्ति व्यक्तिगत पसंद और नापसंद से निर्देशित नहीं होती…”

तीन सदस्यीय समिति की देखरेख में हुई प्रक्रिया

राजभवन के सूत्रों ने पुष्टि की कि राज्यपाल-सह-कुलाधिपति ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्राचार्यों की नियुक्ति में अनियमितताओं की पिछली शिकायतों के मद्देनजर लॉटरी प्रणाली के उपयोग का निर्देश दिया. यह प्रक्रिया तीन सदस्यीय समिति की देखरेख में आयोजित की गई, जिसमें विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलाधिपति कार्यालय का एक प्रतिनिधि शामिल था.

हालांकि, राजनीतिक दलों ने इस कदम पर आपत्ति जताई. माकपा विधायक अजय कुमार ने कहा, “गृह विज्ञान या मानविकी का प्रोफेसर विज्ञान और वाणिज्य के लिए विशेष कॉलेज का संचालन कैसे संभाल सकता है? इससे उच्च शिक्षा संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का उद्देश्य विफल हो जाता है. यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा राज्य सरकार की प्राथमिकता नहीं है.”

इस कदम का बचाव करते हुए जेडीयू के वरिष्ठ नेता नीरज कुमार ने कहा, “इस मुद्दे का बिलकुल भी राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए. यह निर्णय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति द्वारा लिया गया है और राज्य सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं है.”

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