इन दो चरणों में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती! जनता को राम का नाम नहीं, रोजगार चाहिए
देश में चल रहे लोकसभा चुनाव अब अपनी संपूर्णता की ओर हैं.. सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनावों के पांच चरणों का मतदान पूरा हो चुका है..
4PM न्यूज़ नेटवर्क: देश में चल रहे लोकसभा चुनाव अब अपनी संपूर्णता की ओर हैं.. सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनावों के पांच चरणों का मतदान पूरा हो चुका है.. अब सिर्फ दो चरणों का मतदान बाकी रह गया है.. ये दो चरण 25 मई और 1 जून को होने हैं.. इन बचे हुए दोनों चरणों में यूपी और राजधानी दिल्ली समेत हरियाणा, पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में वोटिंग होनी है.. 25 मई को छठे चरण में आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 58 लोकसभा सीटों पर मतदान किया जाएगा..
इस दौरान अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग सीटों पर मतदान होना है.. 25 मई को बिहार, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड, दिल्ली, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में वोटिंग की जाएगी.. इस दौरान हरियाणा की 10 सीटों पर, उत्तर प्रदेश की 14, बिहार की 8, दिल्ली की 7, झारखंड की 4, ओडिशा की 6 और पश्चिम बंगाल की 8 और जम्मू-कश्मीर की एक सीट पर मतदान होना है.. इस तरह से छठे चरण में कुल 58 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है.. इसके अलावा 1 जून को होने वाले सातवें चरण में देश की 57 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है.. सातवें चरण में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पंजाब, बिहार, हिमाचल प्रदेश, झारखंड ओडिशा और चंडीगढ़ में मतदान होना है..
ऐसे में अंतिम दो चरणों में देश की कुल 115 सीटों पर चुनाव होना है.. इन 115 सीटों के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर से जद्दोजेहद की जा रही है.. क्योंकि अब तक हुए पांच चरणों के बाद बीजेपी जहां 400 पार की बात छोड़कर अब सिर्फ फिर एक बार पूर्ण बहुमत की सरकार के नारे पर आकर टिक गई है.. तो वहीं दूसरी ओर एकजुट हुए विपक्ष के रूप में इंडिया गठबंधन है, जो हर बीतते चरण के बाद अपनी जीत के दावे को और भी मजबूत करता जा रहा है.. शुरूआती तीन चरणों के बाद ही इंडिया गठबंधन अपनी जीत के दावे करने लगा था.. जैसे-जैसे चरण आगे बढ़ते गए वैसे-वैसे इंडिया गठबंधन का दावा और भी बढ़ता जा रहा है.. यही कारण है कि अब पांच चरणों का मतदान पूरा होने के बाद इंडिया गठबंधन अपनी 300 सीटें जीतने का दंभ भरने लगा है.. हालांकि, ये दोनों दलों के अपने-अपने कयास हैं.. क्या होगा ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा.. लेकिन फिलहाल तो अब सभी की नजरें आगामी अंतिम दो चरणों के चुनावों पर टिकी हुई हैं.. जिसमें 115 लोकसभा सीटें दांव पर लगी हुई हैं..
अंतिम दो चरणों के ये 115 लोकसभा सीटें सत्ताधारी दल बीजेपी के लिए काफी अहम व महत्वपूर्ण हैं.. क्योंकि इन 115 सीटों में अधिकांश सीटें ऐसी हैं जिन पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपना भगवा लहराया था.. लेकिन अब जिस तरह से इस चुनाव में हालात बदले नजर आ रहे हैं.. उसको देखते हुए बीजेपी के सामने अपनी इन सीटों को बचाए रखने की एक बड़ी चुनौती होगी.. साथ ही पंजाब जैसे राज्य में भाजपा के लिए इस बार अपना खाता खोलना भी मुश्किल नजर आ रहा है.. क्योंकि पंजाब में बीजेपी का अपना कोई वजूद नहीं है और न ही पार्टी के पास अपनी कोई लीडरशिप है.. इस बार भी बीजेपी ने आप, कांग्रेस और अपने पुराने साथी अकाली दल के नेताओं को ही तोड़कर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल किया है.. लेकिन चंद नेताओं के पार्टी में आने से पार्टी मजबूत नहीं होती.. बीजेपी के सामने पंजाब में अभी भी एक मुश्किल चुनौती बनी हुई है.. इसी तरह अगर अंतिम दो चरणों की 115 सीटों के 8 राज्यों का हाल जानें तो भाजपा के लिए यहां चुनौती काफी बड़ी दिखाई पड़ती है..
इन 115 सीटों में शामिल दिल्ली की सभी 7, हरियाणा की सभी 10, हिमाचल प्रदेश की सभी 4 और पंजाब की सभी 13 सीटें भाजपा के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं.. हालांकि, इसके अलावा यूपी की जिन 27 लोकसभा सीटों पर भी इन दो चरणों में चुनाव होना है, वहां भी बीजेपी कमजोर ही नजर आ रही है.. क्योंकि ये सभी 27 सीटें पूर्वांचल के हिस्से में आती हैं.. और पूर्वांचल में बीजेपी पिछली बार ही काफी कमजोर रही थी.. ऐसे में इस बार भी पूर्वांचल में बीजेपी की हालत मजबूत नजर नहीं आ रही है.. तो वहीं हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और पंजाब की सीटें बीजेपी के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन राज्यों में बीजेपी ने पंजाब को छोड़कर हरियाणा, दिल्ली और हिमाचल की सभी सीटों पर जीत हासिल की थी और क्लीन स्वीप किया था.. सिर्फ पंजाब में शिरोमणि अकाली दल की उंगली पकड़कर चलने वाली बीजेपी 3 सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी, जिसमें से उसे दो सीटों पर जीत हासिल हुई थी.. ऐसे में इस बार जहां बीजेपी के सामने दिल्ली, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में अपने पिछले चुनाव को दोहराने की जिम्मेदारी होगी.. जो कि फिलहाल असंभव लग रही है.. तो वहीं पंजाब में पहली बार अकेले लड़ रही भाजपा के सामने अपना खाता खोलने की ही चुनौती होगी..
इस बार बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब में होगी.. क्योंकि ये पहली बार है जब बीजेपी पंजाब में अकेले लोकसभा चुनाव में उतरी है.. वर्ना अब तक भाजपा हमेशा ही शिरोमणि अकाली दल की उंगली पकड़कर ही आगे बढ़ी है.. माने अकाली दल के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ी है.. पिछले लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी अकाली दल के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी.. तब बीजेपी ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था.. जिनमें से उसे 2 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी.. लेकिन इस बार भाजपा बिना किसी साथी के अकेले ही पंजाब में ताल ठोंक रही है.. इस इस बार प्रदेश की सभी 13 सीटों पर भाजपा के अपने उम्मीदवार हैं.. क्योंकि तीन कृषि कानूनों के विरोध के समय शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़ लिया था और एनडीए से अलग हो गई थी.. इसके बाद से बीजेपी पंजाब में अकेली ही है.. बेशक इस लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने फिर से अकाली को अपने साथ मिलाने की काफी कोशिश की.. लेकिन अकाली दल की ओर से जवाब में सिर्फ न ही मिला..
इसकी प्रमुख वजह ये भी है कि पंजाब में किसान आंदोलन का सबसे अधिक असर है.. यहां का किसान भाजपा के खुला विरोध में है और पंजाब में किसानों का ही वर्चस्व है.. ऐसे में अगर शिरोमणि अकाली दल भाजपा के साथ फिर से हाथ मिला लेती है तो प्रदेश में उसके राजनीतिक भविष्य पर ही संकट बन जाएगा.. क्योंकि इससे किसानों में व पंजाब के अधिकतर मतदाताओं में अकाली से भी विरोध हो जाएगा.. तो अकाल दल कभी नहीं चाहेगा.. इसलिए बीजेपी के लाख प्रयास के बाद भी अकाली दल ने भाजपा से हाथ नहीं मिलाया और नतीजतन बीजेपी इस चुनाव में अकेले ही चुनाव मैदान में है..
बीजेपी पूरे देश की तरह पंजाब में भी पीएम मोदी के नाम के सहारे ही है.. लेकिन पंजाब में भाजपा को पीएम मोदी के नाम का कोई लाभ मिलता फिलहाल तो नहीं दिखाई पड़ रहा है.. कारण ये है कि लंबे समय तक गठबंधन में रहने से बीजेपी यहां अपना संगठन मजबूत करने पर ध्यान नहीं दे पाई.. न ही यहां बीजेपी का कोई संगठन वैसा है भी.. साथ ही भाजपा यहां अपने सिख नेता भी तैयार नहीं कर पाई है.. हालांकि, इसकी भरपाई के लिए बीजेपी ने दूसरी पार्टी के कई बड़े सिख नेताओं को पार्टी में शामिल किया है.. लेकिन उसका कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है.. क्योंकि लोगों में बीजेपी से नाराजगी है..
हालांकि, बीजेपी नेता यहां लगातार किसानों को भी मनाने की कोशिश कर रहे हैं.. किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर पंजाब में ही रहा.. हाल ही में पीएम मोदी गुरुद्वारे में लंगर खिलाते नजर आए थे.. कई बार उनकी पगड़ी पहने तस्वीर सामने आती रही है.. लेकिन ऐसा लगता है कि पीएम मोदी के इस चुनावी पंजाब प्रेम का असर पंजाब के मतदाताओं पर पड़ने वाला नहीं है.. क्योंकि वो भी ये जानते हैं कि मोदी का गुरुद्वारे जाना और पगड़ी पहनना या लंगर खिलाना सिर्फ एक चुनावी स्टंट है.. इससे अधिक कुछ नहीं.. इसलिए पंजाब में तो इस बार बीजेपी के लिए खाता खोलना भी मुश्किल दिखाई पड़ रहा है..
इसके अलावा पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हरियाणा की 10 की दसों सीटों पर अपना भगवा फहराया था और जीत हासिल की थी.. लेकिन इस बार हरियाणा में बीजेपी को भारी नुकसान होने की संभावना दिखाई पड़ रही है.. ऐसे में बीजेपी के सामने अपना पिछला प्रदर्शन बरकरार रखने की चुनौती है.. लेकिन यहां एंटी इनकंबेंसी से भी निपटना है.. बीजेपी ने इसी कोशिश के तहत चुनाव से ठीक पहले अपना मुख्यमंत्री बदला.. नायब सिंह सैनी को बीजेपी ने सीएम बनाया, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं..
हरियाणा से बड़ी संख्या में युवा सेना में जाते हैं और यहां हर मैदान में सेना की भर्ती की तैयारी करते युवा मिल जाएंगे.. विपक्षी दल अग्निवीर को मुद्दा बना रहे हैं और बीजेपी यहां इस कोशिश में है कि इससे उसे नुकसान ना हो.. लेकिन जिस तरह से कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष अग्निवीर योजना का विरोध कर रहा है और इंडिया गठबंधन के सत्ता में आने पर राहुल गांधी अग्निवीर योजना को कूड़े में फेंकने की बात कर रहे हैं.. उसका असर पूरे देश में दिखाई पड़ रहा है.. और हरियाणा में तो इस बात का युवाओं पर काफी प्रभाव दिखाई पड़ रहा है..
इसके अलावा भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों के आंदोलन का असर भी हरियाणा में बीजेपी के गेम को काफी हद तक प्रभावित करेगा.. क्योंकि हरियाणा से सबसे अधिक पहलवान निकलते हैं.. और आंदोलन में भी शामिल प्रमुख पहलवान हरियाणा से आते हैं.. इसके साथ ही जिस तरह से बीच चुनाव में प्रदेश की बीजेपी सरकार से निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस लिया और बीजेपी सरकार अल्पमत में आई, उसका असर भी चुनावों में दिखाई देगा.. साथ ही जिस तरह से कांग्रेस व इंडिया गठबंधन के प्रति लोगों में उत्साह नजर आ रहा है और भीड़ उमड़ रही है.. वो बेशक बीजेपी के दिल की धड़कनों को बढ़ा रही है.. इन सभी कारणों को देखते हुए ये साफ है कि हरियाणा में भाजपा को 6 से 7 सीटों का भारी नुकसान होने जा रहा है..
वहीं अगर बात करें राजधानी दिल्ली की तो 2014 और 2019 में भाजपा ने यहां क्लीन स्वीप करते हुए प्रदेश की सभी सात सीटों पर जीत हासिल की थी.. लेकिन इस बार दिल्ली की डगर बीजेपी के लिए उतनी आसान नजर नहीं आ रही है.. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के एकसाथ आ जाने से दिल्ली में इंडिया गठबंधन अच्छी टक्कर दे रहा है.. और यहां भी बीजेपी को लगभग 3 से 4 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है.. ऐसी संभावना जताई जा रही है कि 7 में से 3 से 4 सीटों पर इंडिया गठबंधन जीत हासिल कर सकता है.. क्योंकि भाजपा के स्थानीय नेताओं से लोगों में नाराजगी है.. तो वहीं चुनावी माहौल में सीएम अरविंद केजरीवाल को जेल भेजने का दांव भी बीजेपी को ही उल्टा पड़ता दिख रहा है.. क्योंकि इस दांव को जनता भांप गई और ये जान गई कि केजरीवाल की गिरफ्तारी एक राजनीतिक साजिश है.. बेशक कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी की भी लोकप्रियता में कमी आई है. लेकिन उसका असर लोकसभा चुनावों में कितना पड़ेगा ये कहना थोड़ा मुश्किल है..
पहाड़ों की धरती हिमाचल प्रदेश में भी भाजपा इस बार पिछले चुनाव के अपने प्रदर्शन को दोहरा पाएगी, ये कहना थोड़ा मुश्किल लगता है.. क्योंकि 2019 के हालातों से 2024 के हालात काफी ज्यादा बदले दिखाई पड़ रहे हैं.. 2019 में बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश की सभी 4 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी.. हालांकि, बाद में 2021 में हुए उपचुनाव में एक सीट गंवा दी.. लेकिन इस बार 2019 वाला प्रदर्शन तो मुश्किल लग रहा है.. क्योंकि इस बार प्रदेश में भी सत्ता कांग्रेस के हाथों में है.. ऐसे में कांग्रेस ने प्रदेश स्तर पर खुद को मजबूत भी किया है.. साथ ही प्रदेश में भाजपा के पास कोई नेता या फेम नहीं है.. अनुराग ठाकुर प्रदेश से ज्यादा अन्य राज्यों में अपना समय दे रहे हैं.. और जयराम ठाकुर अंदरखाने खुद अपनी पार्टी से नाराज चल रहे हैं..
क्योंकि जानकारी के मुताबिक, जयराम ठाकुर खुद मंडी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाह रहे थे.. लेकिन भाजपा ने हार के डर को देखते हुए कंगना रनौत को यहां से अपना प्रत्याशी बना दिया.. इसके बाद बेशक जयराम ठाकुर कंगना के साथ घूम रहे हैं और प्रचार कर रहे हैं.. लेकिन अंदरखाने वो पार्टी के फैसले से खुश नहीं हैं.. वहीं दूसरी ओर कंगना के खिलाफ विक्रमादित्य सिंह को उतारकर कांग्रेस ने मुकाबले को कांटे का बना दिया है.. ऐसे में ये संभव है कि मंडी सीट तो बीजेपी के लिए मजबूत नहीं ही बची है.. प्रदेश की बाकी सीटों पर भी बीजेपी उतनी मजबूत नहीं दिख रही है जितनी 2019 के लोकसभा चुनाव में थी.. ऐसे में साफ है कि भाजपा को हिमाचल प्रदेश में भी भारी नुकसान होने वाला है..
साफ है कि अंतिम दो चरणों में शामिल जिन राज्यों में पिछली बार भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था इस बार वहां पार्टी की हालत पतली दिखाई पड़ रही है.. इसके अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में भी भाजपा को इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले नुकसान ही होने वाला है.. फिलहाल अब सभी को इंताजर है 25 मई और 1 जून का जिस दिन इन दो चरणों का मतदान होना है.. जिसके बाद देश में लोकसभा चुनाव के सातों चरणों का मतदान संपूर्ण हो जाएगा.. सात चरणों के पूरा होने के बाद पूरे देश को इंतजार रहेगा चार जून का जब चुनाव परिणाम सामने आएंगे और देश को एक नई सरकार मिलेगी..