सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होगा संसद का पहला सत्र, विपक्ष के सवाल बढ़ाएंगे मोदी की परेशानी !
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की नई ‘खिचड़ी’ सरकार बनते ही चौतरफा घिर गई है.. जनता से लेकर पूरा विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है और उसे घेर रहा है..
4PM न्यूज़ नेटवर्क: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की नई ‘खिचड़ी’ सरकार बनते ही चौतरफा घिर गई है.. जनता से लेकर पूरा विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है और उसे घेर रहा है.. दरअसल, नई सरकार का गठन होते ही एक ओर जहां रेल हादसों ने रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव समेत पूरी मोदी सरकार को सवालों के घेरे में ला दिया.. तो वहीं दूसरी ओर पहले नीट-यूजी की परीक्षा में हुई धांधली को लेकर पूरी सरकार और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की काफी बेइज्जती हुई.. उसके बाद अभी ये मामला चल ही रहा था कि नेट 2024 का पेपर भी लीक हो गया.. अब सरकार बनने के 12-15 दिन के अंदर ही ये सबकुछ हो जाने से मोदी के नेतृत्व वाली खिचड़ी सरकार लगातार निशाने पर बनी हुई है और मुश्किलों में घिरी हुई है.. लगातार दो बड़ी परीक्षाओं में धांधली और पेपर लीक होने के चलते एक ओर जहां छात्र व युवा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं..
तो वहीं इन घटनाओं ने विपक्ष को भी बैठे-बिठाए नई-नवेली सरकार को घेरने का मौका दे दिया.. लगातार हो रहे पेपर लीक को लेकर विपक्ष पूरी तरह से आक्रामक है और सरकार को चौतरफा घेर रहा है.. विपक्षी दलों के द्वारा पेपर लीक को लेकर केंद्र सरकार के विरुद्ध लगातार विरोध प्रदर्शन भी किया जा रहा है.. वहीं इस पूरे मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं.. विपक्ष इस मामले को लेकर लगातार पीएम मोदी पर सवाल उठा रहा है और एनडीए सरकार को शिक्षा विरोधी बता रहा है..
पूरे देश में इस समय नीट और नेट की परीक्षा को लेकर हल्ला मचा हुआ है और नई नवेली सरकार पूरी तरह से घिरी हुई है.. ऐसे में अब सबकी निगाहें लगी हुई हैं 24 जून से शुरू होने वाले 18वीं लोकसभा के पहले संसद सत्र पर.. 24 जून से शुरू होना वाला ये पहला संसद सत्र 3 जुलाई तक चलेगा.. संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, संसद के सत्र में 24 और 25 जून को लोकसभा में नए सदस्यों का शपथ ग्रहण होगा.. 26 जून को बचे हुए सदस्यों का शपथ ग्रहण और नए स्पीकर का चुनाव होगा.. इसके बाद 27 जून को सुबह 11 बजे राष्ट्रपति दोनों सदनों को संबोधित करेंगी.. उम्मीद है कि संसद का पहला सत्र काफी हंगामेदार और मुद्दों पर बहस करने वाला रह सकता है..
इस बार के संसद सत्र पर सभी की निगाहें इसलिए भी लगी हुई हैं, क्योंकि 10 साल बाद इस बार लोकसभा में एक मजबूत विपक्ष होगा.. जिसके पास अपनी एक ताकत होगी.. ऐसे में उम्मीद है कि आने वाले सत्र में विपक्ष मजबूती के साथ मुद्दों को उठाएगा और सरकार से सवाल करेगा.. तो वहीं इस बार पिछले 10 सालों की तरह सरकार की ओर से भी विपक्षी सांसदों को उतनी आसानी से सदन से बाहर नहीं किया जा सकेगा और न ही उनके माइक बंद किए जा सकेंगे..
क्योंकि इस बार विपक्षी की हालत और सूरत दोनों काफी बदली हुई हैं.. तो 18वीं लोकसभा के पहले सत्र से पहले विपक्ष को कई ऐसे मुद्दे भी मिल चुके हैं जिन पर वो मोदी की खिचड़ी सरकार को आसानी घेर सकता है.. विपक्ष सरकार से ऐसे सवाल कर सकता है जिनके जवाब देना भी सरकार को मुश्किल हो जाएगा.. इस बार विपक्ष पिछली बार के तुलना में काफी मजबूत है और ऐसे में विपक्षी पार्टियां सरकार से विभिन्न मुद्दों पर जवाब मांग सकती हैं.. 27 जून से 3 जुलाई तक राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है..
वैसे तो दावा ये भी है की विपक्ष संसद के पहले दिन से ही सरकार को घेरेगा.. यदि मुद्दों की बात करें तो ईवीएम हैक करने के अलावा सबसे बड़ा मुद्दा पेपर लीक का है, जिसे इस सत्र में विपक्ष सरकार के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने जा रहा है.. जिस तरह से पेपर लीक का मुद्दा लगातार उठ रहा है और चर्चा का विषय बना हुआ है.. जाहिर है कि संसद में भी इस मुद्दे पर विपक्ष सरकार को पूरी तरह से पस्त करने का प्लान बनाकर आएगा..
विपक्ष ने नीट परीक्षा 2024 में कथित रूप से धांधली और भ्रष्टाचार को लेकर भारी हंगामा करने के लिए कमर कस ली है.. वहीं नेट परीक्षा का पेपर लीक होना उस पर विपक्ष को मोदी सरकार को शिक्षा विरोधी बताकर चौतरफा घेरने का मौका मिल गया है.. प्रधानमंत्री मोदी 27 जून को राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद संसद में अपनी मंत्रिपरिषद के सदस्यों का परिचय देंगे.. सूत्रों के मुताबिक, इस दौरान पीएम से विपक्ष जवाब मांगेगा.. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान आक्रामक विपक्ष राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने की कोशिश कर सकती है..
वैसे तो इस सत्र में बहुत ज्यादा विधायी कार्य नहीं हैं.. इसके बावजूद ये सत्र हंगामेदार होने की संभावना हैं.. क्योंकि विपक्ष पहले सत्र से ही इस बार वॉकआउट नही बल्कि अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए हंगामे को हथियार बनाने की तैयारी कर रहा है.. कुल मिलाकर देखा जाए तो 18वीं लोकसभा का ये सत्र कई मामलों में सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है..वहीं नीट पेपर और UGC-NET के पेपर लीक मामले ने तूल पकड़ लिया है.. जिसको लेकर गुरुवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा.. उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान में जो पेपर लीक हो रहे हैं उन्हें नरेंद्र मोदी नहीं रोक पा रहे, या फिर रोकना नहीं चाहते.. राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि, वे संसद में इस मुद्दे को उठाएंगे’..
वहीं कांग्रेस-समाजवादी पार्टी समेत कई विपक्षी दल पेपर लीक मामले को लेकर लगातार सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं.. विपक्ष के पास इतने मुद्दे होने के कारण ही अब सभी का ध्यान संसद सत्र पर है.. क्योंकि नेताओं के साथ-साथ आम मतदाताओं की भी रुचि यह देखने में है कि 10 साल बाद एक मजबूत विपक्ष की उपस्थिति में पीएम नरेंद्र मोदी किस तरह का प्रदर्शन करते हैं.. वैसे पहले परंपरा के अनुसार 8 दिनों का विशेष संसदीय सत्र आहूत होगा, जिसमें लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के साथ नए सांसदों को शपथ दिलाया जाएगा.. 26 जून को लोकसभा के स्पीकर का चुनाव होगा और यहीं से सत्ता और विपक्ष के बीच शह मात का खेल भी शुरू हो जाएगा.. इसके बाद पूर्ण बजट सत्र बुलाया जाएगा,
जिसकी तारीख अभी सामने नहीं आई है.. यह 18वीं लोकसभा मोदी सरकार और विपक्ष दोनों के लिए अग्नि परीक्षा वाली होगी.. सरकार के लिए पहली चुनौती ही सफलतापूर्वक पूर्ण बजट पेश करने की होगी.. सिर्फ विपक्ष का दवाब नहीं होगा, बल्कि अपने सहयोगी दलों को भी संतुष्ट करना पड़ेगा.. भले ही एनडीए के बैनर तले सभी सहयोगी दलों ने चुनाव लड़े हों, लेकिन सबकी विचारधारा अलग है और उनके आर्थिक व सामाजिक सरोकार भी एक जैसे नहीं हैं..
खासकर जेडीयू और टीडीपी को लेकर भाजपा व पीएम मोदी को पूरे पांच साल काफी सतर्क रहना पड़ेगा.. क्योंकि इनकी विचारधारा बीजेपी से काफी अलग है और ये कभी भी कोई एक्शन ले सकते हैं.. इसलिए यह बजट सिर्फ केंद्र सरकार की योजनाओं, प्राप्तियों और व्ययों का विस्तार नहीं होगा, बल्कि एनडीए के घटक अपने-अपने आर्थिक एजेंडे को भी इसमें देखना चाहेंगे.. ऐसे में पीएम मोदी और बीजेपी के सामने सबको खुश करने की एक बड़ी चुनौती होगी..
इस बजट सत्र पर जनता की भी निगाहें लगी हुई हैं.. क्योंकि चुनाव में बीजेपी और पीएम मोदी को किसानों की दयनीय हालत, रोजगार सृजन में कमी और पूंजीगत व्यय की गति गिरने पर काफी कुछ सुनना पड़ा था.. और इसी बजट में इन मुद्दों पर सुधार करना आवश्यक होगा.. खास कर तब, जब महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार जैसे राज्यों में अगले कुछ महीनों में ही चुनाव होने वाले हैं.. इसलिए इस बजट में राजद की नौकरी के नारे के बराबर कोई स्कीम लाने का दवाब नीतीश कुमार जरूर डालेंगे.. पर वित्त मंत्रालय की यह बात भी जरूर सुनी जाएगी कि कोई चुनावी वायदा इस तरह न पूरा किया जाए कि राजकोषीय घाटा लक्ष्य के बाहर चला जाए.. राजस्व वृद्धि के अनुपात में व्यय का समायोजन करने की पूरी कोशिश की जाएगी.. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी इस तीसरी सरकार के गठन से पहले ही 100-दिवसीय एजेंडे बना लिए थे..
अब उनको लागू करने के लिए बजट में प्रावधान जरूर किये जाएंगे.. करों में सुधार, बुनियादी ढांचे का विकास, डिजिटल नवाचार और बेहतर शासन व्यवस्था के लिए केंद्रीय बजट में आवश्यक धन का इंतजाम जरूर किया जाएगा.. बात केवल कुछ योजनाओं में बदल या कुछ अतिरिक्त संसाधनों के आवंटन तक सीमित नहीं है.. एनडीए के घटक दल कुछ बड़ा करने की भी अपेक्षा रखते हैं, जिसका राष्ट्रीय फलक पर महत्व है और ऐसा हुआ तो उनका नाम हमेशा के लिए उससे जुड़ सकता है.. नई सरकार के गठन के पहले ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वन नेशन वन टैरिफ की बड़ी मांग कर दी है.. यानी नीतीश कुमार चाहते हैं कि पूरे देश में बिजली दर एक हो जाए.. क्योंकि इस पर बड़ी राजनीति होती रही है और कुछ छोटे राज्यों की सरकारें बिजली दर पर सब्सिडी देकर राजनीतिक वाहवाही लूटती रही हैं..
इस समय बिजली शुल्क राज्यों में अलग-अलग हैं, क्योंकि राज्यों को केंद्रीय फीडर से उपभोग के अनुसार महंगी बिजली खरीदनी पड़ती है और उपभोक्ताओं को कम दर पर देनी पड़ती है.. इस कारण राज्य के खजाने पर बड़ा बोझ पड़ रहा है.. फिर इसी बजट में पीएम मोदी के सामने यह भी मांग रखी गई है कि बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा देते हुए बजट से अधिक व्यय आवंटन किया जाए.. यही नहीं बिहार को औद्योगिक राज्य बनाने के लिए भी पीएम मोदी पर दवाब होगा, चुनाव के दौरान चीनी मिल चालू करने, किसी खास उत्पाद के लिए बिहार में विशेष औद्योगिक क्षेत्र बनाने और ढांचागत परियोजनाओं का विस्तार करने की भी मांग है..
दूसरी ओर आंध्रप्रदेश इस समय कर्ज में डूबा हुआ है.. 2019 से 2023 तक इसका कर्ज 80 प्रतिशत बढ़ा है.. पिछले 3 वर्षों में आंध्र की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ढह गई है.. कई कंपनियां पिछली सरकार से परेशान होकर आंध्रप्रदेश से भाग गईं.. अब चंद्रबाबू नायडू सत्ता संभाल चुके हैं और बीजेपी के बाद एनडीए के सबसे बड़े घटक हैं.. उनकी जिम्मेदारी है कि आंध्र प्रदेश को वित्तीय संकट से उबारें और इसके लिए उन्हें पीएम मोदी का साथ चाहिए.. यह आंध्र और चंद्रबाबू नायडू के लिए सुखद संयोग है कि उन्हें केंद्र से चिरौरी नहीं करनी पड़ेगी.. क्योंकि वह जानते हैं कि एनडीए को समर्थन देने की कीमत उन्हें आसानी से मिल सकती है.. जाहिर है कि चंद्रबाबू नायडू को केंद्र सरकार से बहुत सी उम्मीदें होंगी.. वह भी पीएम मोदी से आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जा मांग सकते हैं..
नायडू निजी निवेशकों को वापस आंध्र प्रदेश लाने के लिए कई प्रकार की छूट देना चाहते हैं, ऐसा वह विशेष राज्य के नाते ही कर सकते हैं.. वह फिर से आंध्र को तकनीकी केंद्र के रूप में विकसित करना चाहते हैं.. इतनी सारी सहयोगी दलों की उम्मीदों और विपक्ष के आरोपों के दबाव के बाद पीएम मोदी के नेतृत्व वाली इस सरकार का पहला बजट किस तरह का होगा, इसका इंतजार पूरी दुनिया कर रही है..फिलहाल सभी की निगाहें लगी हुई हैं 18वीं लोकसभा के पहले संसद सत्र पर, जिसके हंगामेदार होने की संभावना है, क्योंकि विपक्ष के पास कई मुद्दे हैं.. ऐसे में संभव है कि इस बार संसद में मौजूद एक मजबूत विपक्ष इस बार मोदी की खिचड़ी सरकार को जमकर घेरेगी..