पीरियड्स लीव की मांग को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर 24 फरवरी को होगी सुनवाई

नई दिल्ली। महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान दर्द में आराम के लिए छुट्टी सुनिश्चित करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। जिसके संबंध में सुप्रीम कोर्ट मासिक धर्म अवकाश का नियम बनाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया है। इस जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 24 फरवरी को सुनवाई करेगा।
पीरियड्स के समय में छुट्टी वाली याचिका के तहत सभी राज्य सरकारों को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे छात्राओं और कामकाजी वर्ग की महिलाओं को उनके संबंधित कार्यस्थलों पर पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द के लिए नियम बनाएं और अवकाश भी प्रदान करें। साथ ही मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 का अनुपालन करें। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अधिवक्ता शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा मामले का उल्लेख करने और मामले की जल्द सुनवाई की मांग के बाद मामले को 24 फरवरी को सुनवाई के लिए पोस्ट किया है।
मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत यह अनिवार्य कर दिया है सभी संस्थान अपनी महिला कर्मचारियों को गर्भावस्था के दौरान, गर्भपात के मामले में, नसबंदी ऑपरेशन के लिए और बीमारी के साथ-साथ उत्पन्न होने वाली चिकित्सीय समस्याओं के मामले में निश्चित दिनों के लिए ग्रांट पैड लीव दें।
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया है कि मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत कानून के ये प्रावधान कामकाजी महिलाओं के मातृत्व और मातृत्व को पहचानने और सम्मान देने के लिए संसद या देश के लोगों द्वारा उठाए गए सबसे बड़े कदमों में से एक हैं। लेकिन फिर भी कानून होने के बाद भी इन का सख्ती से पालन नहीं होता है।
बिहार भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जो 1992 से महिलाओं को दो दिन का विशेष मासिक धर्म दर्द अवकाश प्रदान कर रहा है। 1912 में, कोचीन (वर्तमान एर्नाकुलम जिला) की तत्कालीन रियासत में स्थित त्रिपुनिथुरा में सरकारी गल्र्स स्कूल ने छात्रों को उनकी वार्षिक परीक्षा के समय पीरियड लीव लेने की अनुमति दी थी।
याचिकाकर्ता ने सभी राज्यों को निर्देश देने की मांग की है कि वे अपने संबंधित कार्यस्थलों पर छात्राओं और कामकाजी वर्ग की महिलाओं के लिए मासिक धर्म के दर्द की छुट्टी के लिए नियम बनाएं। याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम की धारा 14 के अनुपालन के लिए सभी राज्यों और भारत सरकार को निर्देश जारी करने की भी मांग की गई है।

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