भाजपा के लिए आसान नहीं त्रिपुरा की राह

  • 2024 लोक सभा चुनाव पर नजर
  • नड्डा, मोदी व शाह ने तेज किए राज्य के दौरे

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी बीजेपी विधायकों का साथ छोड़ कर चले जाना पार्टी के शीर्ष नेताओं की नींद उड़ाने वाली खबर है। उधर पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब के घर पर हुआ हमला भी बताता है कि भाजपा के लिए 2024 का चुनाव पूर्वाेत्तर के इस राज्य के लिए आसान नहीं होगा। उससे भी बड़ी चिंता की बात है ये हमला चुनावी हिंसा की आशंका की तरफ इशारा कर रहा है। इन सबके बीच अमित शाह लोक सभा चुनाव 2024 की तैयारियों के लिए दौरे पर हैं, त्रिपुरा से शुरुआत करने का खास मतलब भी है।
जैसे हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के सीनियर नेता अमित शाह के दौरों ने तेलंगाना पर बीजेपी के फोकस का इशारा है, त्रिपुरा पहुंच कर बीजेपी की जन विश्वास यात्रा को रवाना करना और फिर रैली करना, आने वाले चुनावों को लेकर पार्टी की फिक्र दिखा रहा है । सबसे ज्यादा चिंता वाली बात इसलिए भी है क्योंकि बिप्लब देब के पुश्तैनी घर पर हुई हिंसा जिन परिस्थितियों में हुई है, वो पश्चिम बंगाल जैसे चुनावी माहौल की ही झलक दिखा रही है. बीजेपी और बिप्लब देब ने तो हिंसा का पूरा इल्जाम सीपीएम पर मढ़ दिया है, लेकिन वहां से जो खबर आ रही है, मालूम होता है कि ये हमला एकतरफा नहीं है बल्कि स्थानीय स्तर पर दोनों राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच टकराव का हिंसक नतीजा और नमूना है, अगर अभी से ऐसी चीजों पर ध्यान नहीं दिया गया तो मान कर चलना होगा कि आगे स्थिति और भी खराब हो सकती है। बंगाल ही नहीं बल्कि केरल को लेकर भी बीजेपी राजनीतिक विरोधियों की तरफ से हिंसा और बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमलों का मुद्दा उठाती रही है पर त्रिपुरा में पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब के घर पर जो हुआ है, वो खतरनाक इरादे की तरफ इशारे करता है। निश्चित तौर पर केंद्रीय गृह मंत्री होने के नाते भी अमित शाह ने अगरतला से भी रिपोर्ट वैसे ही तलब की होगी, जैसे दिल्ली में अंजलि केस को लेकर पुलिस से रिपोर्ट मांगी गयी है। त्रिपुरा में राजनीतिक चुनौती से सामना होने से पहले ही अमित शाह ने त्रिपुरा चुनाव में भी पश्चिम बंगाल की तरह ही मोर्चा संभाल लिया है। अब तो बिप्लब देब मुख्यमंत्री भी नहीं हैं और न ही आने वाले चुनाव में बीजेपी का चेहरा ही हैं, फिर भी उनको टारगेट किये जाने का क्या मतलब हो सकता है? त्रिपुरा के गोमती जिले में बिप्लब देब के पुश्तैनी घर के आस पास हुई हिंसा के बाद ये सवाल काफी महत्वपूर्ण हो गया है, हमले के वक्त वहां बीजेपी नेता के घर पर कोई नहीं था। त्रिपुरा बीजेपी के नेता का आरोप है, शाम को मेरे घर के सामने, जहां कार्यक्रम होना था, कम्युनिस्ट झंडा फहराना चाहते थे… जब वे झंडा फहराने की कोशिश कर रहे थे तो पुजारियों और बाकी लोगों ने ये कहकर रोकने की कोशिश की कि वहां हवन होगा, वे नहीं माने और हिंसा शुरू कर दी। तस्वीर का दूसरा पहलू भी दिखा रही है, एक रिपोर्ट से मालूम होता है कि जो कुछ हुआ उसका न्योता तो बीजेपी की तरफ से ही दिया गया था, सीपीएम का कार्यक्रम वहां पहले से तय था और उसके लिए आस पास झंडे लगाये गये थे और सजावट भी की गयी थी-लेकिन बीजेपी और वीएचपी के कार्यकर्ताओं ने सब तहस नहस कर दिया था।

गुजरात मॉडल का ही भरोसा

दिसंबर मध्य में हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के त्रिपुरा दौरे में ये तो समझ में आ ही गया कि आने वाले चुनावों में बीजेपी गुजरात मॉडल को ही आगे करके बढऩे की कोशिश करेगी, लेकिन ये 2014 के गुजरात मॉडल से थोड़ा अलग है। ऐसे भी समझ सकते हैं कि त्रिपुरा सहित इस साल होने जा रहे नौ राज्यों के चुनावों में बीजेपी मोदी के चेहरे के साथ साथ गुजरात मॉडल को भी लेकर ही आगे बढ़ेगी। मोदी के दौरे में भी ऐसी ही दो चीजें समझ में आयीं कि बीजेपी चुनावी कामयाबी के गुजरात मॉडल के साथ साथ आदिवासी वोटर पर भी ज्यादा ध्यान देने जा रही है, प्रधानमंत्री ने बीजेपी नेताओं से गुजरात चुनाव से सीखने की सीख दी थी। मोदी ने बीजेपी नेताओं को लोगों तक सीधे पहुंचने और सोशल मीडिया जरिये भी सरकार के कामकाज की हर छोटी से छोटी बात लोगों तक पहुंचाने को कहा है, एक और खास बात, जिस पर मोदी का काफी जोर दिखा वो है आदिवासी वोटर, मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से आदिवासी इलाकों में तैयारियों के बारे में पूछा और चुनावी तैयारियों में भी पूरी ताकत झोंक देने की सलाह दी, एक सार्वजनिक रैली में भी प्रधानमंत्री ने खास तौर पर जिक्र किया कि किस तरह गुजरात में बीजेपी ने एसटी कोटे की 27 में से 24 सीटों पर जीत सुनिश्चित की है , और बीजेपी ऐसा करने वाली है, इस बात का अंदाजा तो पिछले साल राष्टï्रपति चुनाव में ही पता चल गया था, ये तो है कि बीजेपी पहली आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचाने का श्रेय ले सकती है। बाकी बातें अपनी जगह है, लेकिन त्रिपुरा और गुजरात के राजनीतिक हालात बिलकुल अलग हैं, त्रिपुरा में माहौल पश्चिम बंगाल और केरल जैसा है, सिवा इस बात के कि वहां बीजेपी की सरकार है – ऐसे में गुजरात मॉडल पर पूरी तरह अमल हो पाएगा, पहले से मान कर चलना मुश्किल हो रहा है।

मोदी के बाद शाह का त्रिपुरा दौरा

त्रिपुरा में सत्ता में होने के बावजूद बीजेपी के सामने पश्चिम बंगाल जैसी ही चुनौतियां पैदा होने लगी हैं , और प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के बाद अमित शाह का मोर्चे पर डट जाना भी यही कहता है, मोदी और शाह के बाद अगरतला में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और ढेर सारे नेताओं का जमघट भी लगने वाला है. अमित शाह ने बीजेपी की जो जनविश्वास यात्रा शुरू की है, 12 जनवरी को जेपी नड्डा उसका समापन करने वाले हैं। बीजेपी की कोशिश सीपीएम के 25 साल बनाम बीजेपी के 5 साल वाली बहस शुरू करने की भी होगी। जनविश्वास यात्रा राज्य के सभी 60 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरने वाली है, करीब एक हजार किलोमीटर का सफल तय करने जा रही यात्रा के दौरान 100 रैलियां और रोड शो किये जाने हैं, यात्रा में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनवाल, किरण रिजिजु, अर्जुन मुंडा भी शामिल होंगे. पश्चिम बंगाल से विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी, मिथुन चक्रवर्ती और बीजेपी सांसद लॉकेट चटर्जी भी बारी-बारी यात्रा में शामिल होंगे।

 

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