RSS भाजपा के बीच ठनी तकरार, मोदी पर पड़ी भारी!

लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं... नई सरकार का गठन भी हो चुका है... और मंत्रियों ने अपने-अपने पदभार भी ग्रहण कर लिए हैं... इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बयान से बीजेपी की टेंशन बढ़ गई है... और बीजेपी की जमकर फजीहत हो रही है... देखिए वीडियो...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं… नई सरकार का गठन भी हो चुका है… और मंत्रियों ने अपने-अपने पदभार भी ग्रहण कर लिए हैं… इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता इंद्रेश कुमार का बयान आया… जिसमें उन्होंने सत्तारूढ़ बीजेपी को अहंकारी और विपक्षी इंडिया गठबंधन को राम विरोधी बताया है… बता दें कि आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने कहा कि दो हजार चौबीस में राम राज्य का विधान देखिए…. जिनमें राम की भक्ति थी… और धीरे-धीरे अहंकार आ गया…. उन्हें दो सौ चालीस सीटों पर रोक दिया… जिन्होंने राम का विरोध किया… उनमें से राम ने किसी को भी शक्ति नहीं दी…. और कहा- तुम्हारी अनास्था का यही दंड है कि तुम सफल नहीं हो सकते… जिसको लेकर जब सियासत शुरू हुई… और विपक्ष जमकर बीजेपी पर निशाना साध रही है…

आपको बता दें कि कुछ दिन पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी लोकसभा परिणाम के कारणों का विश्लेषण करते हुए एक बयान दिया था…. और उन्होंने कहा कि जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है…. गर्व करता है लेकिन अहंकार नहीं करता…. वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है…. इतना ही नहीं उन्होंने कई मुद्दों पर सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार को नसीहत भी दी… और वे यहीं नहीं रुके…. उन्होंने मणिपुर में हो रही हिंसा का भी जिक्र किया… और कहा कि कर्तव्य है कि इस हिंसा को अब रोका जाए…. आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं…. पिछले दो चुनावों की तरह बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला…. इस झटके को लेकर कई सहयोगी… समर्थक और विरोधी बीजेपी की आलोचना कर रहे हैं….

लेकिन इन सबके बीच बीजेपी के लिए सबसे बड़ा झटका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया के बयान को माना जा रहा है…. वहीं चुनाव नतीजों के बाद मोहन भागवत का भाषण कई मायनों में अहम था… इसकी चर्चा देश भर की मीडिया में हुई और अभी भी हो रही है…. लेकिन संघ की ओर से आलोचना का सिलसिला यहीं नहीं रुका…. आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र ने भी बीजेपी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की आलोचना की… ऑर्गनाइज़र ने लिखा कि लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के अति आत्मविश्वासी नेताओं और कार्यकर्ताओं को आईना हैं…. हर कोई भ्रम में था…. किसी ने लोगों की आवाज़ नहीं सुनी…. वहीं संघ के सदस्य रतन शारदा ने यह लेख लिखा है और बीजेपी और मोदी सरकार की आलोचना की है….

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव के शुरुआती कुछ चरणों के बाद प्रचार के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा था कि बीजेपी को अब संघ की ज़रूरत नहीं है…. सभी जानते हैं कि देश भर में फैला संघ का तंत्र, पारिवारिक संस्थाएं, उनसे जुड़े लोग किस कदर चुनाव में बीजेपी की मदद करते हैं…. फिर उन्होंने चुनाव में यह बयान क्यों दिया होगा…. वहीं चुनाव परिणाम घोषित होते ही मोहन भागवत ने मोदी सरकार की आलोचना की… और अगले ही दिन आरएसएस के मुखपत्र ने बीजेपी नेताओं की आलोचना कर दी….मोहन भागवत सार्वजनिक रूप से दो बार बोलते हैं…. एक विजयदशमी पर और दूसरे संघ के कार्यकर्ता विकास कक्षाओं के बाद…. हालांकि इन कक्षाओं में कभी राजनीतिक सलाह या बयान नहीं देते….

लेकिन, इस बार उन्होंने चुनाव नतीजों के तुरंत बाद कार्यकारी विकास वर्ग-2 के समापन भाषण में परोक्ष रूप से वरिष्ठ भाजपा नेताओं को नसीहत दी…. उनका भाषण थोड़ा आक्रामक था… इसमें उन्होंने चार प्रमुख बातें कही थीं…. मणिपुर को लेकर उनका कहना था कि विकास के लिए देश में शांति जरूरी है…. देश में अशांति है और काम नहीं हो रहा है…. देश का अहम हिस्सा मणिपुर एक साल से जल रहा है…. नफ़रत ने मणिपुर में अराजकता फैला दी है…. और उन्होंने मौजूदा एनडीए सरकार को सलाह दी… कि वहां हिंसा रोकना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए…. वहीं पीएम मोदी हमेशा खुद को प्रधान सेवक कहते हैं…. सरसंघ चालक ने अपने भाषण में इस सेवक शब्द का उल्लेख किया था….  जिसको लेकर भागवत ने कहा कि देश को निस्वार्थ एवं सच्ची सेवा की ज़रूरत है….. जो मर्यादा का पालन करता है… उसमें अहंकार नहीं होता और वह सेवक कहलाने का हक़दार होता है….

बता दें कि विपक्षी पार्टी को लेकर मोहन भागवत ने बयान दिया कि सत्ता पक्ष और विपक्ष की अलग-अलग राय है…. मूलतः हमें विपक्ष शब्द का प्रयोग करना चाहिए… विरोध का नहीं… वे संसद में अपनी बात रखते हैं…. इसका भी सम्मान किया जाना चाहिए…. चुनाव की एक सीमा होनी चाहिए. लेकिन, इस बार ऐसा देखने को नहीं मिला…. वहीं चुनाव प्रचार को लेकर बयान को लेकर उन्होंने कहा कि चुनाव युद्ध नहीं प्रतिस्पर्धा है…. इसकी सीमाएं होनी चाहिए…. झूठ का सहारा लेने से काम नहीं चलता… कैंपेन में आलोचना हुई और समाज में नफ़रत पैदा करने की कोशिश की गई…. बिना वजह संघ जैसे संगठनों को भी इसमें घसीटने की कोशिश की गई…. यह सही नहीं है कि टेक्नोलॉजी की मदद से झूठ फैलाया जाए…. केंद्र में भले ही एनडीए सरकार वापस आ गई है… लेकिन देश के सामने चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं…

जानकारी के लिए आपको बता दें कि मोहन भागवत ने यह भाषण दस जून की रात को दिया था… और अगले ही दिन ग्यारह जून को आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइज़र ने बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को आईना दिखाने का काम किया….  बता दें कि आर्गनाइज़र में छपे लेख में कहा गया कि बीजेपी ने आरएसएस का काम नहीं किया… लेकिन बीजेपी एक बड़ी पार्टी है और उनके अपने कार्यकर्ता हैं…. वे पार्टी की कार्यप्रणाली, उसकी विचारधारा को लोगों तक पहुंचा सकते हैं…. संघ चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए जनजागरण का काम कर रहा है… लेकिन बीजेपी कार्यकर्ताओं ने संघ तक अपनी बात नहीं पहुंचाई… और उन्होंने स्वयंसेवकों से चुनाव में सहयोग करने के लिए भी नहीं कहा… और उन्होंने ऐसा क्यों किया….

वहीं इस लेख में महाराष्ट्र में जोड़ तोड़ की राजनीति पर भी बीजेपी की आलोचना की गई है… और कहा गया कि महाराष्ट्र में जोड़-तोड़ की राजनीति से बचा जा सकता था…. साथ ही ये भी कहा गया कि बीजेपी कार्यकर्ता मोदी की गारंटी… अबकी बार 400 पार के अतिआत्मविश्वास में लिप्त हो गए…. वहीं लेख में सवाल उठाया गया कि जब बीजेपी और शिवसेना को बहुमत मिल रहा था…. तब भी अजित पवार को साथ क्यों लिया गया…. भाजपा समर्थक उन लोगों को अपने साथ लेने से आहत हैं… जिनके खिलाफ उन्होंने वर्षों तक लड़ाई लड़ी…. एक झटके में अपनी ब्रांड वैल्यू कम करने को लेकर बीजेपी की कड़ी आलोचना हो रही है… वहीं इन बयानों और लेखों से पहले, संघ की मशीनरी ने अपने स्वयंसेवकों, पदाधिकारियों से चुनाव परिणाम के बारे में फीडबैक इकट्ठा किया था….

हालांकि नतीजों के मद्देनजर भागवत के बयान की ज़्यादा चर्चा हो रही है…. लेकिन यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने इस तरह की आलोचना की है…. भागवत ने उन मुद्दों पर टिप्पणी की है जिन पर मोदी सरकार पहले भी चुप्पी साधे रही है…. न सिर्फ भागवत बल्कि उनके पूर्व सरसंघ नेता भी सार्वजनिक तौर पर अपनी बात रख चुके हैं….  वहीं मणिपुर का मुद्दा सुर्खियों में रहने के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर कुछ नहीं कहा…. विपक्ष ने प्रधानमंत्री से इस मुद्दे पर बोलने की मांग को लेकर संसद में हंगामा किया…. कुछ सांसदों को निलंबित भी किया गया था…. लेकिन, सरकार की ओर से कोई भी मणिपुर के बारे में बात करने को तैयार नहीं था…. उस समय मोहन भागवत ने दो हजार तेइस के अपने विजयादशमी भाषण में मणिपुर पर टिप्पणी की थी….और उन्होंने कहा था कि मणिपुर में हिंसा किसने भड़काई…. यह हिंसा अपने आप नहीं हुई या लाई गई… अब तक, मैतई और कुकी दोनों समुदाय अच्छे से रह रहे थे…. वहीं भागवत ने कहा था कि यह सीमावर्ती राज्य है… और अगर यहां हिंसा होती है… तो हमें सोचना चाहिए कि इससे किसे फायदा हो रहा है….

वहीं मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की ज़रूरत बताई थी… और उन्होंने यह तय करने के लिए एक समिति बनाने का प्रस्ताव रखा था… कि आरक्षण का लाभ किसे और कितने समय तक मिलेगा…. इसके बाद हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भी यही मुद्दा छाया रहा… प्रचार किया गया कि संघ आरक्षण ख़त्म करना चाहता है…. देखा गया कि इसका असर बीजेपी पर भी पड़ा…. फिर आरक्षण के समर्थन में मोहन भागवत का बयान आया…. जो उनके पहले के बयान और संघ के कुछ पदाधिकारियों के रुख़ से उलट था…. और उन्होंने कहा कि जब तक समाज में भेदभाव है…. तब तक आरक्षण बरकरार रहना चाहिए…. जो भी आरक्षण संविधान के मुताबिक रहना चाहिए…. संघ उसका समर्थन करता है….

आपको बता दें कि संघ और बीजेपी के बीच मतभेद पहले भी सामने आ चुके हैं… इनका एक महत्वपूर्ण उदाहरण संघ के तत्कालीन नेता केएस सुदर्शन का अटल बिहारी वाजपेयी से नाराजगी जताना है…. बता दें कि दो हजार के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे…. लेकिन दो हजार चार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी हार गई…. इस समय उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की खुलकर आलोचना की….वहीं प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी के कार्यकाल की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा था कि मुझे नहीं लगता कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान बहुत कुछ किया…. और उन्होंने कुछ अच्छे फैसले लिए… लेकिन उन्हें सभी के साथ जुड़ना चाहिए था… लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया… वहीं हमें यह पसंद नहीं आया कि उन्होंने वीएचपी, बजरंग दल, विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ से बातचीत बंद कर दी…. अब वाजपेयी और आडवाणी को संन्यास ले लेना चाहिए… और नए नेतृत्व को मौका देना चाहिए….

वहीं आरएसएस के द्वारा बीजेपी को लेकर दिए गए बयानों ने सियासी पारा बढ़ा दिया है… इस बीच उत्तर प्रदेश के लखनऊ में सपा नेता फखरुल हसन चांद ने बीजेपी पर हमला बोला…. फखरुल हसन चांद ने कहा कि बीजेपी और आरएसएस के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है… जिस तरह से बीजेपी और आरएसएस के बयान सामने आ रहे हैं… उससे पता चलता है कि सब कुछ ठीक नहीं है… वहीं आगे उन्होंने कहा कि NDA की सरकार बनाने के बाद भी खुश नहीं हैं…. सरकार बनने के बाद भी जिस तरह से बीजेपी के अन्दर तूफान आया हुआ है वो किसी से छुपा नहीं है…

आपको बता दें कि कांग्रेस नेता सुरेंद्र राजपूत ने आरएसएस द्वारा बीजेपी को लेकर दिए गए बयान को लेकर कहा कि ये लड़ाई सत्ता में बने रहने के लिए संघ… और भारतीय जनता पार्टी की लड़ाई है…. सत्ता के बंदर बांट की लड़ाई है…. केंद्र में बड़े पदों पर रहकर मलाई खाने की लड़ाई है…. इन्हे न तो प्रभू राम से कोई मतलब है…. न ही धर्म से कोई मतलब है…. न ही संविधान से कोई मतलब है… और न ही देश के लोकतंत्र से कोई मतलब है…. बस लूट कैसे करें उसी की ये लड़ाई है…

https://youtu.be/dm23aANg_zU

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