नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल…

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
हिंदू धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार बहुत खास होता है। जन्माष्टमी का त्योहार सिर्फ भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था इसलिए इस शुभ तिथि को भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में इस त्योहार को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान व ध्यान आदि करने के बाद घर के बाल गोपाल को नई पोशाक पहनाएं, भोग लगाएं और गोपी चंदन से श्रृंगार करें।

जन्माष्टमी का महत्व

इस पावन दिन देश के सभी मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है। भगवान् श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियां सजाई जाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजाया जाता है फिर उन्हें झूला झुलाया जाता है। स्त्री व पुरुष दोनों ही रात के बारह बजे तक व्रत रखते हैं। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की सुचना चारों दिशाओं में गूंज उठती है। भगवान श्री कृष्ण जी की आरती उतारी जाती है और भोग लगा कर प्रसाद का वितरण किया जाता है।

शुभ मुहूर्त

जन्माष्टमी तिथि पर पूजा करने के लिए सबसे शुभ मुहूर्त 6 सितंबर की मध्यरात्रि 12:02 बजे से 12:48 बजे तक 46 मिनट का ही रहेगा। इस दौरान रोहिणी नक्षत्र भी रहेगा। भगवान कृष्ण का जन्म भी रोहिणी नक्षत्र में ही होगा। वहीं व्रत पारण का समय 7 सिंतंबर 2023 की सुबह 06.09 बजे के बाद रहेगा। इस कारण स्मार्त संप्रदाय और वैष्णव संप्रदाय के लोग अलग-अलग दिन जन्माष्टमी मनाएंगे। स्मार्त जन अष्टमी तिथि अर्धरात्रि को पड़ रही हो तो उसी दिन जन्माष्टमी मनाते हैं, जबकि वैष्णव सन्यासी उदया तिथि के अनुसार जन्माष्टमी मनाते हैं। इसलिए साल 2023 में स्मार्त जन यानी कि गृहस्थ लोगों को 6 सितंबर 2023 और वैष्णव संप्रदाय के लोगों को 7 सितंबर 2023 को जन्माष्टमी मनाना शुभ रहेगा।

पूजन विधि व व्रत

इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारणा से व्रत की पूर्ति होती है। उपवास वाले दिन प्रात: स्नानादि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें। हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएं। अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें। साथ ही देवकी जी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना
करें।

भाग्य को मजबूत बनाने का उपाय

जन्माष्टमी के दिन बाल गोपाल को केसर-मेवा मिश्री साबूदाने या खीर का तुलसी दल डालकर भोग लगाएं लेकिन ध्यान रखें कि खीर में चीन की जगह मिश्री की डली डालें। साथ ही सफेद मिठाई भी अर्पित करें। ऐसा करने से कान्हा की कृपा मिलती है और भाग्य भी मजबूत होता है।

व्यवसाय में उन्नति के लिए उपाय

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह-शाम 11 बार तुलसी की परिक्रमा करें और घी का दीपक जलाएं। इसके बाद 108 बार ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप’ करें। साथ ही कपूर जलाकर उस पर थोड़ी मिसरी डाल दें और कपूर और मिश्री का दान भी करें।

आर्थिक तंगी होगी दूर करने का उपाय

कर्ज की समस्या से परेशान हैं तो जन्माष्टमी के दिन दक्षिणावर्ती शंख से भगवान कृष्ण का अभिषेक करें। दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है और लक्ष्मी पूजा में इस शंख के बिना पूजा पूरी नहीं होती। ऐसा करने से आर्थिक तंगी दूर होती है और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

जन्माष्टमी की कथा

द्वापर युग के अंत में कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने सोचा न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा। वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए मैं इसकी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूंगा। कंस ने वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया। कंस ने देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को एक-एक करके निर्दयतापूर्वक मार डाला। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, अब में बालक का रूप धारण करता हूं। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया।
कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल पहुंच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।

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