पंच केदार की करें यात्रा

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
अगर आप उत्तराखंड जा रहे हैं तो केदारनाथ मंदिर के दर्शन तक सीमित न रहकर पंच केदार की यात्रा भी कर सकते हैं। हालांकि इन पांचों मंदिरों की यात्रा कठिन होती है। पंच केदार भगवान शिव को समर्पित उत्तराखंड के पांच मंदिरों का एक समूह है। पंच केदार के महत्व को इस मान्यता से समझ सकते हैं कि यहां भगवान शिव के शरीर के अलग-अलग अंग प्रकट हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पांडव महाभारत के युद्ध के बाद अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव से क्षमा मांगने के लिए उनकी तलाश में निकले तो महादेव पांडवों से बचने के लिए बैल का रूप धारण करके हिमालय की ओर चले गए और वहीं अंतर्धान हो गए। लेकिन भीम ने उन्हें पहचान लिया और बैल रूपी शिव जी का कूबड़ पकड़ लिया। तब जाकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए। उनका बैल स्वरूप शरीर पांच अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुआ। आज इन पांच स्थानों को पंच केदार के नाम से जाना जाता है। हर मंदिर शिव के शरीर के एक अंग को समर्पित है और हर स्थल की अपनी रहस्यमयी शक्ति और सौंदर्य है।
तुंगनाथ मंदिर
तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। मान्यता है कि यहां भगवान शिव की भुजाएं प्रकट हुई थीं। यहां शिव जी के हाथों की पूजा की जाती है। पंच केदार मंदिरों में से एक तुंगनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में है। यहां तक पहुंचने के लिए चोपता से 4 किमी की चढ़ाई करनी होती है। इस रास्ते में बर्फ से ढकी चोटियों और फूलों से सजे अल्पाइन मीडोज के बीच शांति और अध्यात्म का अनोखा संगम देखने को मिलता है। केदारनाथ मंदिर की तरह ही तुंगनाथ भी मई से नवंबर की शुरुआत तक यात्रियों के लिए खुला रहता है। इसके बाद बर्फबारी के कारण मंदिर का मार्ग बंद हो जाता है।
केदारनाथ मंदिर
उत्तराखंड का केदारनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। वहीं यह चार धामों में भी शामिल है। लेकिन क्या आपको पता है कि ज्योतिर्लिंग होने के साथ ही यहां बैल की पीठ की पूजा होती है? दरअसल, बैल रूपी भगवान भोलेनाथ का कूबड़ यहां प्रकट हुआ था। साल 2013 में आई बाढ़ में भी जब सब कुछ बह गया ता तो यह मंदिर चमत्कारिक रूप से बचा हुआ था। केदारनाथ की यात्रा मई से नवंबर तक की जा सकती है। बर्फीली घाटियों, गूंजती हुई घंटियों और मंत्रों से भरपूर यह यात्रा शरीर के साथ आत्मा को भी पिघला देती है।
रुद्रनाथ मंदिर
रुद्रनाथ में भगवान शिव का मुख प्रकट हुआ था, जिसे नीलकंठ महादेव के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर में एक प्राकृतिक शिवलिंग है, जो स्वयंभू मानी जाती है। श्रावण मास की पूर्णिमा को रुद्रनाथ मंदिर में वार्षिक मेला लगता है, जिसमें स्थानीय लोग भाग लेते हैं। यह मंदिर एक शांत घाटी पर स्थित है। दुर्गम मार्ग पर होने के कारण यहां अधिक भीड़भाड़ नहीं होती है। अकेले में शिव का ध्यान लगाने के लिए रुद्रनाथ मंदिर आदर्श स्थान है।
मध्यमहेश्वर मंदिर
पांडवों को इस स्थान पर भगवान शिव की नाभि के दर्शन हुए थे। यह स्थान हरी-भरी घाटियों के बीच शिव की ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। इस मंदिर के आसपास एकांत, सरलता और आध्यात्मिक गहराई का अनुभव होता है। मन और मस्तिष्क दोनों को सुकून देने वाली यात्रा के लिए यहां पहुंच सकते हैं। मध्यमहेश्वर मंदिर भी रुद्रप्रयाग जिले में ही स्थित है।
कल्पेश्वर मंदिर
कल्पेश्वर मंदिर चमोली जिले में स्थित है। यह प्राचीन मंदिर भी पंच केदार में से एक है और यहां भगवान शिव की जटाओं के रूप की पूजा होती है। कल्पेश्वर नाम कल्प से लिया गया है जिसका अर्थ अनंत काल से है। पंच केदार मंदिरों में यह एकमात्र मंदिर है, जो पूरे वर्ष खुला रहता है। मंदिर घने जंगलों और गुफाओं से घिरा है। यह भीड़भाड़ से दूर, लेकिन ऊर्जा से भरपूर स्थान है।


