उत्तराखंड चुनावी रण: भाजपा का कमजोर और मजबूत सीटों को छांटने का होमवर्क पूरा

संगठन में चेहरा बदलने की संभावना तलाशने के साथ जोड़तोड़ शुरू हो गया

पार्टी प्रत्याशी चयन को लेकर मंथन करेगा प्रदेश नेतृत्व
 4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
देहरादून। विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने कमजोर और मजबूत विधानसभा सीटों को छांटने के लिए अपना होमवर्क पूरा कर लिया है। जिन सीटों पर पार्टी को खतरे की आहट हो रही है, वहां चेहरा बदलने की संभावना तलाशने के साथ जोड़तोड़ और पार्टी कैडर की सक्रियता के जरिए स्थिति सुधारने के प्रयास तेजी से शुरू हो गए हैं।
70 विधानसभा क्षेत्रों में तैनात संयोजक और विधानसभा प्रभारी इस अभियान की अहम कड़ी हैं। इस बीच केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी के नेतृत्व में चुनाव प्रभारी व सह प्रभारियों की टीम भी विधायकों और संभावित दावेदारों के दमखम को टटोलने में जुट गई है। संगठन के स्तर पर कराए गए अभी तक के सर्वे की जो रिपोर्ट केंद्रीय और प्रांतीय नेतृत्व को प्राप्त हुई, उसमें 30 विधानसभा सीटों पर पार्टी को माथापच्ची करनी पड़ रही है। इनमें 20 विधानसभा सीटें भाजपा के कब्जे वाली हैं, जबकि 11 कांग्रेस वर्चस्व वाली हैं।

चुनाव प्रभारी ने सांसदों से लिया फीडबैक

उत्तराखंड भाजपा के चुनाव प्रभारी प्रहलाद जोशी ने पिछले दिनों में पूर्व केंद्रीय मंत्री व हरिद्वार के सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट, पूर्व केंद्रीय मंत्री व अल्मोड़ा के सांसद अजय टम्टा, टिहरी सांसद माला राज्यलक्ष्मी और राज्य सभा सांसद नरेश बंसल से चर्चा कर चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, चर्चा के दौरान कमजोर सीटों पर संभावित दावेदारों के नामों पर भी विचार किया गया। पूर्व में विधानसभा चुनाव लड़े प्रत्याशियों से भी चुनाव प्रभारी फीडबैक ले रहे हैं। पार्टी के उन दावेदारों से भी चर्चा हो रही है, जो पार्टी के टिकट पर पिछला चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे। पार्टी नेतृत्व और चुनाव प्रभारी को अभी तक जो फीडबैक मिला है, उसमें तकरीबन विधायकों के चुनाव क्षेत्रों में सत्तारोधी रुझान का प्रभाव है।

कुछ सीटों पर प्रत्याशी बदलने का दबाव

 

पार्टी पर 57 में से कुछ सीटों पर प्रत्याशी बदलने का भारी दबाव है। कुछ सीटों पर पार्टी विधायक की सीट बदलकर सत्तारोधी रुझान के प्रभाव को खत्म करने के विकल्प पर गंभीरता विचार कर रही है। 20 से अधिक सीटों पर तो यह रुझान बेहद गंभीर स्थिति में है, जबकि अन्य सीटों पर इसका उससे थोड़ा कम प्रभाव है। इस लिहाज से यदि पार्टी सभी 57 विधायकों को उम्मीदवार बनाती है तो उसे सत्तारोधी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।

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