उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दिया इस्तीफा, राजनीतिक हलचल तेज, कुछ बड़ा होने वाला है!
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित अपने त्यागपत्र में धनखड़ ने कहा कि वह “स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता” देने के लिए तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया है।
इस अप्रत्याशित फैसले से राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है ऐसे में अटकलों का दौर शुरू हो गया है। धनखड़ ने अपने त्यागपत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग और नेतृत्व की सराहना की है। उन्होंने लिखा कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों में से एक पर कार्य करते हुए उन्हें पीएम मोदी का निरंतर मार्गदर्शन और समर्थन मिला।
हालांकि, इस इस्तीफे के समय सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि करीब सात महीने पहले विपक्ष ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। उस समय भी यह मुद्दा राजनीतिक बहस का केंद्र बना था। अब जब उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, तो इस पर राजनीतिक विशलेषकों और विपक्षी दलों की नजरें टिकी हैं। सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन निकट भविष्य में नए उपराष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया. राजनीति से जुड़े लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्या हुआ, जिसके चलते धनखड़ ने इस्तीफा दिया है. हालांकि उन्होंने साफ कर दिया कि ये इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों की वजह से देना पड़ रहा है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित अपने त्यागपत्र में धनखड़ ने कहा कि वह “स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता” देने के लिए तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं.
धनखड़ का 2027 तक कार्यकाल था. उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा कि देश की प्रगति का हिस्सा बनना सौभाग्य की बात है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सहयोग और समर्थन अमूल्य रहा है. धनखड़ उपराष्ट्रपति पद पर करीब तीन साल तक रहे हैं. इस दौरान उनके साथ उस समय एक अनोखा रिकॉर्ड दर्ज हो गया, जब विपक्षी सांसद उनके खिलाफ साल 2024 में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे.
जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे में क्या कहा?
सबसे पहले बात करते हैं कि जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे में क्या-क्या कहा? उन्होंने त्यागपत्र देते हुए कहा, ‘स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देने और मेडिकल सलाह का पालन करने के लिए मैं संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अनुसार तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं. मैं भारत की राष्ट्रपति के प्रति उनके अटूट सपोर्ट और मेरे कार्यकाल के दौरान हमारे बीच बने सुखद और अद्भुत कार्य संबंधों के लिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं. प्रधानमंत्री का सहयोग और सपोर्ट अमूल्य रहा है और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान उनसे बहुत कुछ सीखा है.’
उन्होंने आगे लिखा, ‘सभी संसद सदस्यों से मुझे जो गर्मजोशी, विश्वास और स्नेह मिला है, वह सदैव मेरी स्मृति में बना रहेगा. हमारे महान लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में मिले अमूल्य अनुभवों और अंतर्दृष्टि के लिए मैं हृदय से आभारी हूं. इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान भारत की उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति और अभूतपूर्व विकास को देखना और उसमें भाग लेना मेरे लिए सौभाग्य व संतुष्टि की बात रही है. हमारे राष्ट्र के इतिहास के इस परिवर्तनकारी युग में सेवा करना मेरे लिए एक सच्चा सम्मान रहा है. इस प्रतिष्ठित पद से विदा लेते हुए मैं भारत के वैश्विक उत्थान और अभूतपूर्व उपलब्धियों पर गर्व महसूस कर रहा हूं और इसके उज्ज्वल भविष्य में अटूट विश्वास रखता हूं.’
उपराष्ट्रपति कार्यालय को भी नहीं थी जानकारी
वहीं, सोमवार को संसद का मॉनसून सत्र शुरू हुआ और धनखड़ ने मंगलवार के लिए बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक बुलाई थी. वे न्यायपालिका से जुड़े कुछ बड़े ऐलान भी करने वाले थे. इसके साथ 23 जुलाई को उपराष्ट्रपति का जयपुर में कार्यक्रम तय था. वे रियल एस्टेट डेवलपर्स संघ (CREDAI) राजस्थान की नव-निर्वाचित समिति से संवाद करने वाले थे. साथ ही साथ उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की जानकारी उनके कार्यालय को नहीं थी.
60 सांसदों ने किए थे अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर
अब बात करते हैं जगदीप धनखड़ के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की. दरअसल, 1952 के बाद से देश के संसदीय इतिहास में पहली बार उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए 10 दिसंबर 2024 को विपक्षी दलों यानी इंडिया गठबंधन की ओर से एक नोटिस दिया गया, जिसमें जगदीप धनखड़ पर उच्च सदन के अध्यक्ष के रूप में पक्षपातपूर्ण आचरण का आरोप लगाया गया है.
विपक्षी दलों की ओर से कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और नसीर हुसैन ने 60 सांसदों के हस्ताक्षर वाला नोटिस राज्यसभा महासचिव पी सी मोदी को सौंपा. इन सांसदों में कांग्रेस, टीएमसी, सपा, राजद, सीपीआई, सीपीएम, झामुमो, आप, डीएमके के सांसद शामिल थे. ये ऐसा कदम था जोकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार उठाया गया. जैसे ही ये नोटिस दिया गया वैसे ही धनखड़ के खिलाफ अनोखा रिकॉर्ड दर्ज हो गया. इससे पहले किसी भी उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया था.
जयराम रमेश ने कहा था कि इंडिया गठबंधन से संबंधित सभी दलों के पास राज्यसभा के सभापति के खिलाफ औपचारिक रूप से अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है क्योंकि वे राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन पक्षपातपूर्ण तरीके से कर रहे हैं. इंडिया गठबंधन के दलों के लिए यह एक अधिक कष्टकारी
फैसला है, लेकिन संसदीय लोकतंत्र के हित में उन्हें यह कदम उठाना पड़ा है.
उपराष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था अविश्वास प्रस्ताव
सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को 19 दिसंबर 2024 को तकनीकी कारणों के चलते खारिज कर दिया गया था. इसके पीछे तर्क दिया गया था कि नोटिस को पेश करने के लिए निर्धारित 14 दिनों का पालन नहीं किया गया, जोकि प्रस्ताव के लिए जरूरी होता है. उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने अपने फैसले में कहा था कि यह नोटिस विपक्ष का गलत कदम है, जिसमें बहुत खामियां हैं. महाभियोग का यह नोटिस देश के संवैधानिक संस्थानों को बदनाम करने और मौजूदा उपराष्ट्रपति की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से लाया गया.
इस्तीफे के बाद क्या बोले जयराम रमेश?
अब जब राष्ट्रपति ने लगभग सात महीने बाद अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया तो जयराम रमेश ने कहा कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति का अचानक इस्तीफा जितना चौंकाने वाला है, उतना ही अकल्पनीय भी. वे सोमवार शाम लगभग 5 बजे तक कई अन्य सांसदों के साथ उनके साथ थे और शाम साढ़े सात बजे उनसे फोन पर बात भी की थी. इसमें कोई संदेह नहीं कि धनखड़ को अपने स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी, लेकिन उनके अप्रत्याशित इस्तीफे के पीछे जो दिख रहा है उससे कहीं ज़्यादा कुछ है. हालांकि, यह अटकलों का समय नहीं है.
उन्होंने कहा कि धनखड़ ने सरकार और विपक्ष, दोनों को समान रूप से आड़े हाथों लिया. उन्होंने मंगलवार दोपहर 1 बजे कार्य मंत्रणा समिति की बैठक तय की थी. उन्हें न्यायपालिका से जुड़ी कुछ बड़ी घोषणाएं भी करनी थीं. हम उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करते हैं, लेकिन उनसे अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का भी अनुरोध करते हैं. हम यह भी उम्मीद करते हैं कि प्रधानमंत्री धनखड़ को अपना मन बदलने के लिए राजी करेंगे. यह देशहित में होगा. खासकर किसान समुदाय को इससे बहुत राहत मिलेगी.



