विश्व गुरु या भूखा गुजरात? | चैतर वसावा का BJP सरकार पर तीखा हमला

गुजरात में कुपोषण और बदहाल आंगनबाड़ियों को लेकर AAP नेता चैतर वसावा ने सरकार पर गंभीर सवाल उठाए हैं...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः आज भारत को विकसित बनाने और विश्व गुरु बनाने की बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं.. लेकिन क्या हम वाकई उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.. गुजरात जैसे विकसित राज्य में भी लाखों बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.. संसद में सरकार ने खुद माना है कि गुजरात में 1 से 5 साल के उम्र के बच्चों में कुपोषण की समस्या गंभीर है.. दाहोद, पंचमहल, छोटा उदयपुर, नर्मदा और डांग जैसे आदिवासी बहुल जिलों में स्थिति और भी खराब है.. यहां आंगनवाड़ी केंद्रों की हालत खस्ता है.. जहां बच्चों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिलती है.. सरकार आदिवासी विकास के लिए करोड़ों रुपये की ग्रांट देती है.. लेकिन आरोप हैं कि ये पैसे सही जगह पहुंचने की बजाय भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक कार्यक्रम में करोड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं.. जबकि बच्चों के पोषण पर ध्यान नहीं दिया जाता है.. आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दल इस मुद्दे पर आंदोलन की बात कर रहे हैं..

गुजरात को अक्सर विकास का मॉडल कहा जाता है.. लेकिन बच्चों के स्वास्थ्य के मामले में यह राज्य अभी भी पिछड़ा हुआ है.. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार.. गुजरात में 5 साल से कम उम्र के 39% बच्चे स्टंटेड (कम ऊंचाई वाले) हैं.. जो राष्ट्रीय औसत 35.5% से ज्यादा है.. इसी सर्वे में बताया गया है कि 21% बच्चे अंडरवेट हैं.. और 7.8% वेस्टेड (कम वजन वाले) हैं.. अक्टूबर 2024 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि.. राज्य में 40.8% बच्चे स्टंटेड हैं.. पोषण ट्रैकर के जून 2025 के डेटा से पता चलता है कि.. पूरे देश में कुपोषण की समस्या बनी हुई है.. और गुजरात इसमें पीछे नहीं है..

संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने माना कि गुजरात में 1 से 5 साल के 3 लाख 21 हजार बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं.. यह आंकड़ा चौंकाने वाला है.. क्योंकि राज्य की कुल आबादी में आदिवासी समुदाय की हिस्सेदारी 14.8% है.. लेकिन कुपोषण के मामले में वे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.. एक अध्ययन के मुताबिक गुजरात में लगभग 38% बच्चे कुपोषित हैं.. और यह दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर है.. अप्रैल 2025 में इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात में 40% से ज्यादा बच्चे अंडरवेट या स्टंटेड हैं.. और 38% से ज्यादा आबादी कुपोषित है..

वहीं ये आंकड़े बताते हैं कि विकास के दावों के बावजूद, ग्रामीण.. और आदिवासी इलाकों में बच्चों का पोषण एक बड़ी चुनौती है.. कुपोषण न सिर्फ बच्चों की शारीरिक वृद्धि रोकता है.. बल्कि उनकी पढ़ाई और भविष्य पर भी असर डालता है.. अगर बच्चे कमजोर रहेंगे.. तो वे स्कूल में कैसे ध्यान देंगे और आगे कैसे बढ़ेंगे.. गुजरात के आदिवासी बहुल जिलों में कुपोषण की दर सबसे ऊंची है.. दाहोद, पंचमहल, छोटा उदयपुर, नर्मदा और डांग जिले पूरे देश में सबसे ज्यादा कुपोषित जिलों में शुमार हैं.. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार.. दाहोद में 44.4% बच्चे स्टंटेड हैं.. और 50.8% अंडरवेट हैं.. पंचमहल में 40.4% बच्चे स्टंटेड हैं.. टापी, आरावली और महिसागर जैसे जिलों में भी स्थिति खराब है..

ये जिले मुख्य रूप से आदिवासी आबादी वाले हैं.. जहां गरीबी, शिक्षा की कमी और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है.. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में 89.12 लाख आदिवासी हैं.. और इनमें से कम से कम 9 लाख सिकल सेल ट्रेट वाले हैं.. कुपोषण यहां की महिलाओं और बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है.. सरकार आदिवासी विकास के लिए TAIFA जैसी ग्रांट देती है.. लेकिन आरोप हैं कि ये पैसे सही इस्तेमाल नहीं हो रहे..

आंगनवाड़ी केंद्र बच्चों के पोषण और शुरुआती शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं.. लेकिन गुजरात में इनकी स्थिति दयनीय है.. CAG की रिपोर्ट के अनुसार, 1,299 आंगनवाड़ी केंद्रों में टॉयलेट नहीं हैं.. 1,032 में पीने का पानी नहीं है.. और 3,384 केंद्र किराए के घरों में चल रहे हैं.. 2024 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि 1,500 से ज्यादा केंद्रों में टॉयलेट नहीं.. 2,300 में सुरक्षित पानी नहीं.. और 4,000 किराए के भवनों में हैं..

कई केंद्रों में बच्चे खुले में बैठते हैं.. और पोषण सामग्री समय पर नहीं पहुंचती है.. मार्च 2025 तक के पोषण ट्रैकर डेटा से पता चलता है.. कि देश भर में 12.48 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों में पानी और टॉयलेट हैं.. लेकिन गुजरात में कमी बनी हुई है.. अगर ये केंद्र ठीक से काम नहीं करेंगे.. तो कुपोषण कैसे खत्म होगा? आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को सरकारी कार्यक्रमों में लगाया जाता है.. जिससे बच्चों का ध्यान हट जाता है.. बिल जमा करने पर भी ग्रांट के अभाव में पांच महीने तक पेमेंट नहीं होता है..

भाजपा सरकार ने कुपोषण खत्म करने के लिए 10 से ज्यादा योजनाएं शुरू की हैं.. और करोड़ों रुपये खर्च किए हैं.. इनमें मुख्यमंत्री पौष्टिक अल्पाहार योजना शामिल है.. जिसके तहत 40 लाख से ज्यादा प्राइमरी स्कूल के छात्रों को पौष्टिक भोजन मिलता है.. मुख्यमंत्री मातृशक्ति योजना मां और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए है.. नेशनल न्यूट्रिशन मिशन 2018 से चल रहा है.. जो बच्चों, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं के पोषण पर फोकस करता है.. 2025 में न्यूट्रिशन मिशन के लिए 75 करोड़ रुपये का विकसित गुजरात फंड बनाया गया..

पोषण माह 2024 में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने राष्ट्रीय पोषण माह का उद्घाटन किया.. जहां टेक होम राशन, पोषण सुधा और मुख्यमंत्री मातृशक्ति योजना का जिक्र हुआ.. जननी सुरक्षा योजना, कस्तूरबा पोषण सहाय योजना जैसी स्कीम्स भी हैं.. लेकिन आलोचना है कि ये योजनाएं कागज पर अच्छी लगती हैं.. लेकिन जमीनी स्तर पर असर नहीं दिखता है.. ठेकेदार, नेता और NGO वाले ग्रांट की मलाई खा रहे हैं.. लेकिन आखिरी बच्चे तक पौष्टिक खाना नहीं पहुंचता है..

नवंबर 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डेडियापाडा (नर्मदा जिला) आए थे.. जहां उन्होंने 9,700 करोड़ रुपये के विकास प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया.. यह कार्यक्रम जनजातीय गौरव दिवस पर था.. जहां बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मनाई गई.. लेकिन AAP ने आरोप लगाया कि आदिवासी विकास की ग्रांट से 50 करोड़ रुपये इस कार्यक्रम पर खर्च किए गए.. इसमें 2.4 करोड़ रुपये मोबाइल टॉयलेट पर.. 2 करोड़ चाय-पानी पर.. 2 करोड़ समोसे पर.. 5.83 करोड़ स्टेज पर.. 7.87 करोड़ मंडप पर.. 2 करोड़ डोम पर.. 16 लाख डीजल पर.. और 50 लाख पानी पर खर्च हुए..

 

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