नीति के आधार पर मिलते हैं वोट : कोर्ट

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने जाति, धार्मिक, जातीय और भाषाई अर्थ वाले राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने के लिए दायर जनहित याचिका आपत्ति जताई है। अदालत ने कहा लोग सिर्फ राजनीतिक दलों के नाम पर वोट नहीं करते बल्कि उनकी नीतियों को भी देखते हैं। कार्यवाहक प्रमुख मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की खंडपीठ ने कहा कि ये मुद्दे नीतिगत क्षेत्र में हैं और संसद ऐसे मामलों के लिए उचित मंच है।
पीठ ने जोर देकर कहा कि अदालत इसमें प्रवेश नहीं कर सकती और कानून नहीं बना सकती। पीठ ने याची से कहा आप केवल इन पार्टियों के नामों के बारे में बात कर रहे हैं। नाम निर्णायक नहीं है। आपको राजनीतिक दलों की नीतियों को देखना होगा। आपको यह देखना होगा कि वे कैसे काम कर रहे हैं। लेकिन इन सभी मुद्दों पर ध्यान देना होगा संसद। यह उनका क्षेत्र है। वे कानून बनाते हैं। उपाध्याय ने वर्ष 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर धार्मिक, जातीय, जातीय या भाषाई अर्थ वाले राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की थी। कानून मंत्रालय ने आज कोर्ट को बताया कि इस मामले में उसकी कोई भूमिका नहीं है। भारत के चुनाव आयोग ने कहा कि उसने 2005 में एक नीतिगत निर्णय लिया था कि धार्मिक या जातिगत नाम वाली किसी भी पार्टी को अनुमति नहीं दी जाएगी। हालांकि 2005 से पहले बनी पार्टियाँ काम करना जारी रख सकती हैं।

सत्येंद्र जैन की अंतरिम जमानत आठ जनवरी तक बढ़ी

दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आप नेता सत्येन्द्र जैन की अंतरिम जमानत आठ जनवरी, 2024 तक बढ़ा दी है। सत्येंद्र कुमार जैन फिलहाल चिकित्सकीय आधार पर अंतरिम जमानत पर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 26 मई को छह सप्ताह के लिए उन्हें जमानत दी थी। बाद में इसे समय-समय पर बढ़ा दिया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 24 अगस्त 2017 को सीबीआई की तरफ से दर्ज की गई एफआईआर को आधार बनाकर जैन के खिलाफ मनी-लॉन्ड्रिंग मामले में जांच शुरू की थी। सत्येंद्र जैन ने 14 फरवरी 2015 से 31 मई 2017 तक कई लोगों के नाम पर चल संपत्तियां खरीदी थीं। जिसका वे संतोषजनक हिसाब नहीं दे सके थे। उनके साथ पूनम जैन, अजित प्रसाद जैन, सनील कुमार जैन, वैभव जैन और अंकुश जैन के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली सरकार को अगले साल 31 जनवरी तक एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें राष्टï्रीय राजधानी में न्यायिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निविदाएं जारी करने सहित उठाए गए कदमों का विवरण दिया गया हो। 11 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय और जिला न्यायपालिका को धन उपलब्ध कराने के प्रति अपने ढुलमुल रवैये पर दिल्ली सरकार की खिंचाई की थी।

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