कहाँ पलते हैं रेप पीड़िताओं के बच्चे ? क्या है इसके नियम ?

कई केस ऐसे होते हैं जिसमें पीड़िता के पास अबॉर्शन का ऑप्शन नहीं होता. तो फिर उन बच्चों की परवरिश कैसे होती है?

4PM न्यूज़ नेटवर्क : नवंबर 2015 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि नाबालिग से रेप के बाद जन्में बच्चे का रेपिस्ट पिता की संपत्ति पर हक होगा. वहीं दिसंबर 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप के कारण जन्में बच्चे को मां से अलग मुआवजा देने का आदेश दिया था.

वहीं अप्रैल 2017 में एक रेपकेस की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि रेप पीड़िताओं को मुआवजा देना पर्याप्त नहीं है. उनसे जन्में बच्चों के लिए पॉलिसी बने. वहीं फरवरी 2022 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने रेपिस्ट को रेप से जन्में बच्चे को 2 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया था.

बच्चे के जन्म के बाद चाइल्ड वेलफेयर कमेटी तय करती है कि उसकी परवरिश और देखभाल कैसे की जाएगी. ऐसे बच्चे एक्सिडेंटली जन्म लेते हैं, पीड़िता अपनी मर्जी से प्रेग्नेंट नहीं होती. उसकी प्रेग्नेंसी एक बुरे हादसे का नतीजा होती है, जिसे समाज की भाषा में रेप कहा जाता है. इस स्थिति में यदि मां-बाप और परिवार बच्चे को पालने के लिए तैयार नहीं हैं,

तो कमेटी उसे ‘चाइल्ड नीड एंड केयर प्रोटेक्शन’ के तहत लाती है. इसके बाद राज्य सरकार बच्चे को कस्टडी में ले लेती है और उसे शेल्टर होम पहुंचा दिया जाता है. शुरुआत में बच्चे को ब्रेस्टमिल्क की जरूरत होती है. ऐसी स्थिति में यदि पीड़िता अनुमति देती है, तभी उसे मां का दूध मिल पाता है. इसके बाद कारा की मदद से बच्चे को गोद देने की कोशिश की जाती है.

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