नीतीश कुमार वक्फ बिल पर अचानक साइलेंट क्यों हो गए हैं?

पटना। वक्फ बिल पर पूरे देश में मचे सियासी घमासान के बीच नीतीश कुमार की चुप्पी चर्चा में है. वक्फ बिल पर नीतीश के साइलेंट होने का मुद्दा बिहार विधानसभा में भी गूंज चुका है. नीतीश की चुप्पी पर सवाल इसलिए भी उठ रहा है, क्योंकि 3 महीने पहले अपने मुस्लिम नेताओं से वक्फ बिल का उन्होंने विरोध करने की बात कही थी.
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर नीतीश कुमार 3 महीने बाद ही इस बिल को लेकर साइलेंट क्यों हो गए हैं?
मानसून सत्र में जब वक्फ बिल का जेडीयू ने समर्थन कर दिया, तब पार्टी के भीतर सियासी खलबली मच गई. पार्टी के अल्पसंख्यक नेता नीतीश कुमार के पास पहुंच गए. अल्पसंख्यक नेताओं के अगुवा अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान थे.
बैठक में मुस्लिम नेताओं ने नीतीश कुमार को जब पूरी बात बताई, तो नीतीश ने किसी भी अल्पसंख्यक के अहित न होने देने की बात कही. नीतीश कुमार ने सभी नेताओं को आश्वासन दिया कि वे इस मुद्दे को खुद देखेंगे.
नीतीश कुमार की राजनीति जनता पार्टी के जरिए शुरू हुई है. नीतीश गांधी को अपना आदर्श मानते हैं और सेक्युलर राजनीति को तरजीह देते रहे हैं. ऐसे में वक्फ बिल पर नीतीश का साइलेंट हो जाना सवालों में है.
जेडीयू की तरफ से केंद्र में मंत्री ललन सिंह ने हाल ही में एक बयान दिया है. सिंह ने एक कार्यक्रम में कहा कि मुसलमान जेडीयू को वोट नहीं करते हैं. यह जानकारी नीतीश कुमार को भी है, लेकिन फिर भी हम लोग मुसलमानों के लिए लगातार काम कर रहे हैं.
ललन के इस बयान पर मुजफ्फरपुर में शिकायत भी दर्ज कराया गया है. कहा जा रहा है कि ललन का यह बयान 2020 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के संदर्भ में आया है.
2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार जैसी सीटों पर जेडीयू को हार का सामना करना पड़ा. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में तो जेडीयू के एक भी मुस्लिम विधायक जीतकर सदन नहीं पहुंचे, जबकि नीतीश कुमार ने इस चुनाव में 11 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था.
बिहार में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. नीतीश कुमार की पार्टी एनडीए में शामिल है. 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को भले ही बहुमत नहीं मिली, लेकिन नीतीश कुमार से उसे ज्यादा खतरा नहीं है.
हालिया हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में जिस तरीके से बीजेपी ने मजबूत वापसी की है, उससे गठबंधन के भीतर उसका रुतबा और ज्यादा बढ़ गया है. महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद बीजेपी की नजर बिहार पर ही है.
ऐसी स्थिति में नीतीश कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. वो भी तब, जब बीजेपी ने नीतीश को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर रखा है.
नीतीश जब सेक्युलर पॉलिटिक्स करते थे, तब उनके पास अली अनवर अंसारी, गुलाम गौस, मंजर आलम, मोनाजिर हसन और शाहिद अली खान जैसे कद्दावर नेता हुआ करते थे, लेकिन अब नीतीश के पास मुस्लिम नेताओं का अकाल है.
जेडीयू में एक-दो मुस्लिम नेता जरूर हैं, लेकिन वे डिसिजन मेकिंग से बाहर चल रहे हैं. नीतीश के चुप्पी के पीछे ये भी एक बड़ी वजह है.
वक्फ बिल वर्तमान में संयुक्त संसदीय कमेटी (जेपीसी) के अधीन है. कमेटी में इस पर समीक्षा की जा रही है. सुपौल के एक सांसद दिलेश्वर कामत इस कमेटी में जेडीयू की तरफ से सदस्य हैं.
जेपीसी की सिफारिश पर ही सरकार वक्फ संशोधन बिल संसद में पेश करेगी. इसके बाद वक्फ को लेकर पूरे देश में एक कानून बन जाएगा.

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