महाराष्ट्र में महिलाएं नाराज, भाजपा की विदाई तय!

लोकसभा चुनाव का तीसरे चरण का मतदान सिर पर हैं... इसी बीच महाराष्ट्र की महिलाओं की नाराजगी सामने आई है... और उन महिलाओं को बीजेपी के घोषणा पत्र पर भरोसा ही नहीं है... वहीं पहले से संकटों में घिरी बीजेपी की संकट और बढ़ गया है.. देखिए खास रिपोर्ट...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः देश में लोकसभा चुनाव को लेकर सियासत जोरों पर हैं… लोकसभा चुनाव को लेकर पूरे देश में चर्चा हो रही है… और हर जगह चौक-चौराहे पर रोज सरकार बन रही है… और रोज सरकार बिगड़ रही है… इस बीच देश के सबसे बड़े लोकतंत्र महाराष्ट्र को साधने के लिए सभी दल एक्टिव मोड में दिखाई दे रहें है… और दौरे पर दौरे कर रहे है… और महाराष्ट्र में एक के बाद एक चुनावी जनसभा कर रहे हैं… बता दें सभी पार्टियों ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है… और अपने चुनावी वादों को लेकर जनता के बीच पहुंच रहे है… वहीं बीजेपी के घोषणा पत्र में महाराष्ट्र की महिलाओं के लिए क्या योजनाएं है… उनके जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कौन-कौन सी मुहिम शुरू की है…की कोई जानकारी नहीं है… महाराष्ट्र राज्य की ग्रामीण महिलाओं और कामकाजी महिलाओं को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है… और उन महिलाओं को उनकी मेहनत का पैसा भी नहीं मिल रहा है… सरकार के वादों को लेकर महाराष्ट्र की महिलाओं का कहना है कि मोदी ने तमाम वादे किए लेकिन आज तक महिलाओं को लेकर कोई भी योजनाएं धरातल पर नहीं दिखाई दे रही है… बता दें कि सरकार देश में सभी जगह फेल हुई है… और अपने किसी भी वादे को पूरा नहीं कर पाई है… जिसको देखते हुए महिलाओं में खासी नाराजगी देखने को मिल रही है… वहीं इस लोक सभा चुनाव में महिलाओं ने विकास को लेकर मतदान करने की बात कर रही है… और कह रही हैं कि जो सरकार महिलाओं को लेकर उनका सम्मान नहीं कर पा रहा है… ऐसी सरकार का कोई मतलब ही नहीं है… आपको बता दें कि महिलाओं ने कहा कि सत्ता में आने से पहले नरेंद्र मोदी ने तमाम वादे किए थे… लेकिन महिलाओं के उत्थान के लिए कोई भी काम नहीं किया…

आपको बता दें कि महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले में बीड़ी बनाने का काम खूब होता है…. सोलापुर में कपड़े का काम कम होने के बाद बीड़ी बनाने का काम बढ़ गया है…. और यहां घर में एक से अधिक महिलाएं पूरे दिन बीड़ी बनाने का काम करती हैं.. बता दें कितेंदू पत्ते से सिगार और बीड़ी बनाए जाते हैं…. जिससे महिलाओं को टीबी और कैंसर होने का ख़तरा होता है….लेकिन महिलाओं के लिए सरकार के द्वारा कोई स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही है… इन महिलाओं के लिए सबसे मुश्किल मुद्दा यह है कि अगर बीड़ी बनाने की फैक्ट्री में कोई यौन उत्पीड़न या अन्याय होता है… तो शिकायत करने के लिए उनके पास कोई तरीक़ा नहीं है…. इतना ही नहीं, इन महिलाओं को कम भुगतान में काम करना होता है….इन महिलाओं ने अपान दर्द बयां करते हुए कहा कि हमें एक हजार बीड़ी बनाने पर एक सौ अस्सी रुपये मिलते हैं…. जबकि नियम के मुताबिक हमें तीन सौ पैंसठ रुपये मिलने चाहिए… लेकिन हमें कभी नियमानुसार भुगतान नहीं मिला है… फिर भी सरकार का हम महिलाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य को लेकर कोई ध्यान नही है… अगर हमारे साथ किसी भी प्रकार का कोई अन्याय होता है,,,, तो उसको सुनने वाला कोई नहीं है…. वहीं महिलाओं काम करते समय अपने बच्चों को भी साथ में लिए रहती हैं… जो कभी-कभी तंबाकू निगल जाते है… जिसके बाद उनकी हालात खराब हो जाती है… और बच्चे उल्टियां करने लगते हैं…

वहीं बीड़ी बनाने वाली महिलाओं को टीबी, कैंसर, सीने में दर्द, खांसी, उल्टी जैसी कई बीमारियां हो जाती हैं…. लेकिन इलाज का ख़र्च उठाने के लिए ना तो कोई स्वास्थ्य सुविधा है… और ना ही कोई योजना है…. वहीं इन महिलाओं के पास आजीविका चलाने का कोई दूसरा साधन भी नहीं है… जिसके कारण महिलाएं मजबूरी में बीड़ी बनाने का काम करती है… और आजीविका को चलाती है… सरकार बड़े-बड़े दावे  तो करती है… लेकिन कोई भी वादा इन महिलाओं के लिए लागू नहीं होता है… बता दें कि इन महिलाओं को शोषण किया जाता है… कारखानों के द्वारा इन महिलाओं को पूरा बेतन भी नहीं दिया जाता है… कंपनी के द्वारा इन महिलाओं को पूरी तरह से फायदा उठाया जा रहा है… जिसका कारण है कि वहां पर रोजगार के कोई दूसरे साधन नहीं है…. जिसका फायदा बीड़ी बनाने वाली कंपनी उठा रही है….

वहीं कोल्हापुर ज़िले के इचलकरंजी शहर को ‘महाराष्ट्र का मैनचेस्टर’ कहा जाता है…. देश में कपड़ा निर्माण और निर्यात का एक महत्वपूर्ण केंद्र है…. भारत विश्व में वस्त्रों का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है….इसमें इचलकरंजी के कपड़ा उद्योग की बड़ी हिस्सेदारी है…. लेकिन पावरलूम श्रमिक और मिल मालिकों की शिकायत यह है कि इचलकरंजी में कपड़ा उद्योग आज संकट में है….कई कपड़ा मिलें बंद हो गई हैं… और हैंडलूम ठप नज़र आ रहा है…. इचलकरंजी में कपड़ा मिलों में बड़ी संख्या में महिलाएं काम कर रही हैं….इनमें से कई महिलाएँ दस से पंद्रह वर्षों से भी अधिक समय से काम कर रही हैं…. सूत कताई मिल में काम करते समय महिलाओं को लगातार आठ से नौ घंटे तक खड़े होकर काम करना पड़ता है…. इन महिलाओं के मुताबिक इतने सालों तक काम करने और पूरे दिन कपास और सूत कातने से स्वास्थ्य संबंधी कई मुश्किलें आती हैं…. वहीं महिलाओं ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि महिलाओं पर घरेलू काम का बोझ होता है….. ये अपने लिए स्वास्थ्य सुविधाएं और सरकारी बीमा योजनाओं का लाभ मांग रही हैं…. वहीं सरकार का इन महिलाओं पर कोई भी ध्यान नही है… बीजेपी सिर्फ हवाहवाई बाते करती है… और महिलाओं को सिर्फ वोट का साधन मानती है… वहीं सत्ता में आने के बाद जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं करती है…

बता दें कि राज्य में भी बीजेपी सरकार है… और एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के सीएम पद पर आसीन है… लेकिन उनके काम से राज्य की जनता संतुष्ठ नहीं है… और सीएम शिंदे ने भी ग्रामीण और कामकाजी महिलाओं के विकास के लिए कोई काम नहीं किया है… सिर्फ बयानों में ही महिलाओं के कायापलट की बात करते हैं… जमीनी हकीकत कुछ अलग की ही बयां कर रही है… बता दें कि जनता पीएम मोदी और सीएम शिंदे की मानसिकता को भली भांति जान और समझ चुकी है… और जनता ने दो चरण के मतदान में बीजेपी को अपना पावर दिखा दिया है… वहीं अगले चुनावों में भी बीजेपी को जनता के पावर का पता चलेगा… राज्य में डबल इंजन की सरकार होने का बावजूद महिलाओं को लेकर किसी भी प्रकार की कोई योजना नहीं शुरू की गई है… न ही महिलाओं का कोई हाल जानने वाला है…  वहीं चुनाव के समय सभी नेता गांव-गांव घूमकर जनता को भरोसा दिलाते है… और वादा देते हैं कि सत्ता मे आते ही सभी गरीबों का कायापलट कर दूंगा… वहीं चुनाव जीत जाने के बाद मुड़कर फिर उधर कभी भी रूख नहीं करते हैं… जिससे जनता बहुत परेशान है… जनता की समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है…

वहीं महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित इलाक़ों में महिलाएं जल संरक्षण में अहम भूमिकाएं निभाती हैं…. ग्राम सभा और ग्राम विकास परिषदों में महिलाओं की संख्या बढ़ाने की वकालत भी की जा रही है…. क्योंकि महिलाओं का मानना है कि गांवों में पानी की कमी का खामियाज़ा सबसे ज़्यादा उन्हें ही भुगतना होता है… गांवों और समुदायों में नशामुक्ति, बाल विवाह को रोकने के लिए कार्रवाई, महिला मज़दूरों का पंजीकरण, ग्राम पंचायत में एकल महिलाओं का अलग पंजीकरण, घरेलू हिंसा और दहेज़ पर रोक लगाने वाले कानूनों के कार्यान्वयन के साथ-साथ एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए रोज़गार की गारंटी देने के उपायों की भी महिलाओं ने वकालत की है…. बता दें कि अब महिलाएं अपने हक के प्रति जागरूक हो रही है… और सरकार के समक्ष अपनी मांग रख रही है… ऐसे में कहा जा सकता है कि महिलाएं अपने अधिकार के प्रति जागरूक हुई है… जिसका असर दो चरण के चुनाव में देखने को मिला है… वहीं महिलाओं के जागरूकता का परिणाम आगे के चरणों में भी दिखाई देगा…. वहीं तालाबों और झीलों को पुनर्जीवित करने में जुटी महिलाएं…. सरकार से महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के अलावा स्वरोज़गार के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने का आग्रह कर रही हैं…. और इन महिलाओं का सरकार से मांग है कि स्वरोजगार के लिए सरकार द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम कराने की मांग की है… जिससे महिलाओं का जीवन स्तर ऊपर उठ सके और उनको भी समाज में एक सम्मान मिल सके…

वहीं दो हजार पांच में महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए कानून बनाए जाने के बावजूद, मुंबई की यास्मीन शेख इसे ठीक से लागू करने की आवश्यकता पर ज़ोर देती हैं…. और उन्होंने कहा कि पतियों को अपनी पत्नियों के साथ दुर्व्यवहार करने की अनुमति देने की पारंपरिक सोच को त्यागना चाहिए…. घरेलू हिंसा के दायरे को समझना… और उससे घरों को बचाना ज़रूरी है…. क़ानून के साथ-साथ जागरूकता भी ज़रूरी है…. बता दें कि कुछ महिलाएं यौन शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग करती हैं…. दरअसल महाराष्ट्र की महिलाओं का ये घोषणापत्र उन मुद्दों को भी प्राथमिकता देता है…..जिन्हें समाज में अक्सर नजरअंदाज़ कर दिया जाता है…. वहीं महाराष्ट्र की महिलाओं की मांगों को सरकार कब पूरा करती है… या फिर ये सभी मांगे बनकर ही रह जाएंगी… क्या सरकार महाराष्ट्र की इन महिलाओं के जीवन स्तर को सुधारने के लिए इनकी मांगो को पूरा करेगा.. यह तो आने वाला वक्त तय करेगा…..

 

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