तालिबान सरकार में और गहराई मतभेद की खाईं

नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान सरकार पर गहरी पकड़ बनाने की कोशिश में पाकिस्तान ने अपना ही नुकसान किया है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का आतंकी हमला इसका उदाहरण है। सरकार और पाकिस्तान को लेकर पहले से ही तालिबान के विभिन्न गुटों में आम सहमति नहीं थी। इस मसले को सुलझाने के लिए पाकिस्तान ने अपने खुफिया संगठन के प्रमुख फैज हमीद को काबुल भेजा था। फैज ने हक्कानी गुट का आंख मूंदकर समर्थन कर तालिबान की समावेशी सरकार के समीकरण बिगाड़ दिए। गौरतलब है कि फैज के काबुल दौरे के दौरान मुल्ला अब्दुल गनी बरादर का एक हक्कानी सेनानी से विवाद हो गया था, जिसमें बरादर कथित तौर पर घायल हो गया था। इतना ही नहीं, बरादर को हक्कानी का पक्ष लेने की कीमत भी चुकानी पड़ी। अब खबरें हैं कि अंतरिम सरकार बनने के बाद तालिबान में गंभीर मतभेद सामने आ गए हैं। इसमें बरादर के आइसोलेशन के चर्चे भी आम हैं।
कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि बरादर को पाकिस्तान द्वारा वित्त पोषित आतंकवादी समूह हक्कानी के साथ अपने मतभेदों के लिए एक उच्च कीमत चुकानी पड़ी। तालिबान अंतरिम सरकार की घोषणा से पहले अमीर-उल-मुमनीन (मोमिन) कहे जाने वाले बरादर को मृदुभाषी नेता माना जाता है। अमीर-उल-मुमनीन का अर्थ है वफादारों का सेनापति। यह अलग बात है कि पाकिस्तान ने हस्तक्षेप किया और तालिबान की अंतरिम सरकार के समीकरण बदल दिए। मौलवी हसन अखुंद को तालिबान की अंतरिम सरकार की कमान सौंपी गई थी। अब स्थिति बदल गई है।
जानकारी के मुताबिक इस महीने की शुरुआत में सरकार बनाने को लेकर हुई बैठक में बरादर गुट और हक्कानी गुट के बीच तीखी नोकझोंक हुई थी. अपने नरम रुख को ध्यान में रखते हुए, बरादर ने बैठक में एक समावेशी सरकार के लिए दबाव डाला। इस बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि गैर तालिबानी नेताओं और देश के अल्पसंख्यक समुदाय को भी सरकार में शामिल किया जाए. बरादर गुट का मानना था कि एक समावेशी सरकार तालिबान को विश्व मान्यता प्राप्त करने में मदद करेगी। हालांकि हुआ इसका उल्टा और बैठक में ही यह प्रस्ताव सुनते ही खलील-उल-रहमान हक्कानी बरादर से झगडऩे लगा। इस हिंसा में स्थिति यहां तक आ गई कि फायरिंग हो गई, जिसमें बरादर घायल हो गया। फिर बरादर बैठक छोडक़र कंधार चले गए, जिसे तालिबान का गढ़ माना जाता है।
इस उग्र बैठक के बाद जब तालिबान ने अंतरिम सरकार के नामों की घोषणा की तो बरादर को डिप्टी पीएम का पद मिला। रणनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक इस पूरे समीकरण में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने बड़ी भूमिका निभाई। हक्कानी गुट को सरकार में गृह मंत्रालय समेत चार पद मिले हैं। मुल्ला अखुंद जैसे नेता को सरकार का मुखिया बनाया गया था। पश्तून समुदाय को सबसे ज्यादा हिस्सा मिला। समावेशी सरकार की बात बिल्कुल पीछे छूट गई। इस आलोक में माना जा रहा है कि तालिबान में आंतरिक विवाद और मतभेद और बढ़ेंगे। बरादर के मुखिया न बनने से पश्चिमी देशों को भी समस्या है क्योंकि बरादर शांति वार्ता का मुख्य चेहरा था। जाहिर है, तालिबान की अंतरिम सरकार में हक्कानी गुट की ताकत तालिबान के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है।

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