आखिर विधानसभा में जाने पर क्यों प्रतिबंध लगाया गया मीडिया पर, पत्रकारों में रोष
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- विपक्ष ने कहा मीडिया की आवाज बंद करने की साजिश
- सपा ने सरकार के कदम को बताया लोकतंत्र की हत्या, कांग्रेस उठाएगी सदन में मुद्दा
- विपक्ष ने सरकार पर लगाया पत्रकारों के उत्पीड़न का आरोप, पूछा, क्या हो रही छिपाने की कोशिश
- देशभर के नामचीन पत्रकारों ने प्रतिबंध को बताया मीडिया के अधिकारों का हनन
- सत्ता पक्ष के विधायक ने भी मीडिया के प्रवेश पर रोक को बताया अनुचित
4पीएम न्यूज नेटवर्क. लखनऊ। मीडिया की स्वतंत्रता की बात करने वाली प्रदेश सरकार की पोल एक बार फिर खुल गई है। बजट सत्र के दौरान सरकार ने मीडिया के प्रवेश पर विधान सभा में प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार के इस कदम पर देश भर के मीडिया संस्थानों के नामचीन पत्रकारों ने न केवल रोष प्रकट किया है बल्कि इसे मीडिया के अधिकारों का हनन करार दिया है। वहीं विपक्ष ने सरकार पर जमकर हमला बोला है। सपा ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया है वहीं कांग्रेस ने इस मुद्दे को सदन में उठाने की बात कही है। विपक्ष ने योगी सरकार से पूछा है कि मीडिया पर प्रतिबंध लगाकर वह जनता से क्या छिपाना चाहती है। यही नहीं सरकार के इस कदम से सत्ता पक्ष के विधायक भी नाराज हैं और उन्होंने इसे अनुचित निर्णय बताया है। प्रदेश सरकार फिर विवादों में घिर गई है। पत्रकारों के उत्पीड़न का आरोप झेल रही सरकार ने अब बजट सत्र के दौरान विधान सभा में मीडिया के प्रवेश पर रोक लगा दी है। पत्रकारों को प्रेस दीर्घा के साथ-साथ सेंट्रल हाल तक जाने की भी सुविधा नहीं है। यहीं सत्ताधारी और विपक्षी दलों के विधायक पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हैं। मीडिया पर लगे प्रतिबंध के कारण सत्र की चर्चाओं और समाचार संकलन का काम बाधित हो गया है। सरकार के इस कदम से देश भर के पत्रकारों में आक्रोश है। सोशल मीडिया पर सरकार के इस निर्णय की तीखी आलोचना की जा रही है। पत्रकारों का कहना है कि यह मीडिया के अधिकारों का खुला उल्लंघन है। दरअसल,पत्रकार, निर्वाचित प्रतिनिधि सदन में कैसे अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं, इसकी सूचना जनता तक पहुंचाने का काम करते हैं लेकिन सरकार उन पर ही प्रतिबंध लगा रही है। इस मामले में विपक्ष ने सरकार पर जमकर हमला बोला है। विपक्ष का कहना है कि सरकार जनता से अपनी नाकामी छिपाने के लिए इस तरह की साजिश कर रही है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर कुठाराघात कर सरकार आखिर साबित क्या करना चाहती है। यह मीडिया के अधिकारों का हनन है।
सदन में क्या कहा था विधान सभा अध्यक्ष ने
विधान सभा में विरोधी दल के नेता राम गोविंद चौधरी ने बजट सत्र के पहले दिन पूछा था कि प्रेस दीर्घा खाली क्यों है, पत्रकार क्यों नहीं बैठे हैं? इसके जवाब में विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा था कि कोरोना काल के कारण पत्रकारों के लिए अलग व्यवस्था की गई थी और इस बारे में जल्द ही कोई फैसला लिया जाएगा।
क्या कहता है संविधान
भारतीय संविधान में नागरिकों को अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है, लेकिन प्रारंभ में प्रेस मीडिया अलग नहीं था। वर्ष 1956 में संसद ने क्कड्डह्म्द्यद्बड्डद्वद्गठ्ठह्लड्डह्म्4 क्कह्म्शष्द्गद्गस्रद्बठ्ठद्दह्य ( क्कह्म्शह्लद्गष्ह्लद्बशठ्ठ शद्घ क्कह्वड्ढद्यद्बष्ड्डह्लद्बशठ्ठ ) ्रष्ह्ल पास किया। यह विधेयक फीरोज गांधी ने पेश किया था, इसीलिए इसे फीरोज गांधी ऐक्ट के नाम से भी जाना जाता रहा है। इस कानून के बन जाने से संसद की कार्यवाही छापने पर पत्रकारों पर कोई मुकदमा नहीं हो सकता था लेकिन इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने यह कानून समाप्त कर दिया ताकि संसद में सरकार की आलोचना की खबरें मीडिया में न प्रकाशित हों। मोरार जी देसाई की जनता पार्टी सरकार ने 1978 में संविधान संशोधन कर अनुच्छेद 361ए जोड़ा। इससे पत्रकारों को यह अधिकार और दायित्व दिया गया कि वे संसद और विधान सभाओं की कार्यवाही की सही जानकारी दें और इसके लिए उन पर सिविल या आपराधिक कोई कार्यवाही नहीं हो सकती। इससे पहली बार पत्रकारों को विधान मंडलों और संसद में समाचार संकलन का अलग से संवैधानिक अधिकार मिला।
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इस पर प्रतिबंध लगाना लोकतंत्र की हत्या है। योगी सरकार पूरी तरह नाकाम हो चुकी है। सरकार बताए कि मीडिया पर प्रतिबंध लगाकर वह जनता से क्या छिपाना चाहती है।
सुनील सिंह साजन ,एमएलसी, सपा
यूपी विधान सभा में पत्रकारों के जाने पर प्रतिबंध लगाया जाना लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। छवि प्रबंधन के इस दौर में लक्ष्य गलतियां सुधारना नहीं है, लक्ष्य है विपक्ष की आवाज दबाना, मीडिया की कलम कमजोर करना, जनता से सच छिपाना पर जनता जनार्दन ऐसे ही नहीं कहलाती।
रोहनी सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
लोकतंत्र की ख़ूबसूरती आजाद विचारों से होती है। देश की किसी भी विधानसभा में मीडिया का प्रवेश प्रतिबंधित नहीं है तो यूपी में भी नहीं होना चाहिये। मुझे यकीन है कि तत्काल पत्रकारों को विधान सभा में जाने की अनुमति दी जायेगी। इस तरह की रोक किसी भी रूप में उचित नहीं है।
मनोज राजन त्रिपाठी, इनपुट एडिटर, जी मीडिया
मीडिया चौथा स्तंभ है। पत्रकारों को अगर सदन से बाहर रखेंगे तो जनता तक सही सूचनाएं कैसे पहुचेंगी। यह मीडिया के अधिकारों का हनन है। यह सरकार लगातार पत्रकारों का उत्पीड़न कर रही है। मैंने यह मुद्दा सदन में उठाया था। आगे भी उठाएंगे।
आराधना मिश्रा, विधायक, कांग्रेस
मीडिया पर रोक लगाना किसी भी तरह से उचित नहीं है। मीडिया को अनुमति मिलनी चाहिए। यह प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ है। इस मामले मैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जल्द ही बात करूंगा।
सुरेंद्र सिंह, विधायक, भाजपा
पत्रकारों को विधान सभा में जाने की अनुमित देनी चाहिए। प्रवेश न देना मीडिया के अधिकारों का हनन है। उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को प्रेस दीर्घा के साथ सेंट्रल हाल तक जाने की भी सुविधा नहीं है।
रामदत्त त्रिपाठी, पूर्व संवाददाता, बीबीसी
सदन में कोविड नियमों का पूरी तरह पालन करके पत्रकारों को विधान सभा में जाने की अनुमति देनी चाहिये। सदन जनता के प्रतिनिधियों का है। इस तरह मीडिया का प्रवेश रोकना लोकतंत्र के लिये ठीक नहीं है।
कमाल खान, एक्जीक्यूटिव एडिटर, एनडीटीवी