अखिलेश की उपेक्षा के बाद भी आखिर क्यों शिवपाल गठबंधन चाहते हैं सपा से

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में ताकतवर यादव परिवार की अंदरूनी कलह सतह पर आने के बाद जिस तरह के नए राजनीतिक समीकरण बनें हैं उन्होंने रिश्तों की डोर को और भी उलझा दिया है। चाचा शिवपाल जहां एक ओर अब हर कीमत पर भतीजे और अपनी पुरानी पार्टी सपा के साथ गठबंधन चाहते हैं तो वहीं दूसरी अखिलेश अपने चाचा किसी तरह का भाव नहीं दे रहे हैं। गाहेबगाहे शिवपाल का दर्द सार्वजनिक रूप से सामने आ भी रहा है लेेकिन अखिलेश अपने फैसले से पलटने को तैयार नहीं हैं। लेकिन यादव परिवार की इस वॉर का फायदा सीधे रूप से भाजपा को मिल रहा है। बात चाहे विधानसभा चुनाव की हो या लोकसभा चुनाव की सपा और प्रसपा दोनों ही चुनाव दर चुनाव कमजोर साबित हो रही हैं। लेकिन फिलहाल बदले हालातों में प्रदेश में मौजूदा वक्त में जिस तरह से अखिलेश कमबैक का प्रयास कर रहे हैं वो कोई दूसरी विपक्षी पार्टी करती हुई नजर नहीं आ रही है। बसपा और कांग्रेस की हालत किसी से छुपी नहीं है और छोटे-छोटे दल बिना किसी बड़े चेहरे और ताकतवर संगठन के बिना भाजपा को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं, ऐसे में आखिलेश का उभार उनके चाचा दिख रहा है। वो अच्छी तरह से समझ गए हैं कि बिना अखिलेश के वो यूपी की सियासत में कुछ खास नहीं कर सकते हैं।
राजनीति के जानकारों की मानें तो कभी समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के बाद नंबर दो की स्थिति में रहे शिवपाल यादव राजनीति के ऐसे रास्ते पर आ गए हैं, जहां अखिलेश यादव के साथ उनके रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलती नहीं दिख रही है। शिवपाल खुलकर अखिलेश को सीएम बनाने और सपा से हाथ मिलाने के लिए बेकरार हैं, लेकिन अखिलेश यादव न तो उन्हें राजनीतिक तवज्जो दे रहे हैं और न ही मिलने का समय। ऐसी स्थिति में शिवपाल अखिलेश यादव के सामने राजनीतिक रूप से इतने मजबूर क्यों नजर आ रहे हैं?
एक कार्यक्रम के दौरान शिवपाल यादव का दर्द आखिरकार बाहर आ ही गया। उन्होंने कहा, नेताजी (मुलायम सिंह यादव) हमेशा परिवार को साथ लेकर चलते थे। वह दुश्मनों को भी गले लगाते रहे और आगे बढ़ते रहे। अगर मेरा भतीजा (अखिलेश) भी इसी रास्ते पर चलता है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है। हमने कई बार अखिलेश से मिलने का समय मांगा है, लेकिन अभी तक नहीं मिला है।
शिवपाल यादव ने 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए भतीजे अखिलेश यादव को आशीर्वाद देने के सवाल पर कहा कि चाचा शब्द में आत्मीयता है। हम चाहते हैं कि समान विचारधारा वाले सभी धर्मनिरपेक्ष दल एक साथ आएं और 2022 में विजयी होकर उभरें । मेरी पहली और सबसे बड़ी प्राथमिकता समाजवादी पार्टी है। इससे साफ है कि शिवपाल यादव सपा के साथ गठबंधन बनाना चाहते हैं।
जब इस मुदï्दे पर आखिलेश से बात की गई तो उन्होंने कहा कि फोन पर बात होगी, अभी मिलना ठीक नहीं है क्योंकि वह मुख्यमंत्री की तारीफ करते हैं। हालांकि अखिलेश ने यह भी कहा कि शिवपाल यादव के लिए जसवंत नगर सीट छोड़ी गई है। इसके अलावा उनके साथी भी हैं, अगर समीकरणों और परिस्थितियों के लिहाज से सब फिट रहा तो फिर उन पर भी विचार किया जाएगा।
अखिलेश यादव की बातों से साफ है कि वह न तो पहले की तरह शिवपाल को राजनीतिक तवज्जो देना चाहते हैं और न ही वह उनके लिए बहुत ज्यादा सीटें देना चाहते हैं। जसवंतनगर सीट को छोडक़र कोई दूसरी सीट देने का मूड नहीं है। इसके साथ ही जब अखिलेश से पूछा गया कि क्या शिवपाल संगठन और रणनीतिक रूप से अहम भूमिका निभा सकते हैं तो उन्होंने कहा कि सपा का संगठन मजबूत है और कार्यकर्ता कड़ी मेहनत कर रहे हैं। अखिलेश सपा के लिए शिवपाल की उपयोगिता के सवाल को गोल कर गए, जबकि शिवपाल लगातार सपा के साथ चुनाव लडऩे और अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने की बात कर रहे हैं।
बता दें कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह के परिवार में वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई थी। इसके बाद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी पर अपना एकमात्र शासन स्थापित कर लिया था। अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच गहरी खाई थी। हालांकि मुलायम सिंह यादव समेत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दोनों नेताओं के बीच सुलह के लिए कई प्रयास किए, लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो सके।
2017 के विधानसभा चुनाव में मुलायम परिवार में कलह का खामियाजा सपा को भुगतना पड़ा था। अखिलेश को सत्ता गंवानी पड़ी और पार्टी भी टूट गई और मुलायम की पार्टी और परिवार दोनों का बंटवारा हो गया। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल यादव ने अपने समर्थकों के साथ समाजवादी मोर्चा का गठन किया और फिर कुछ दिनों बाद उन्होंने अपने मोर्चे को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) में बदल दिया। लोकसभा चुनाव 2019 में शिवपाल यादव ने फिरोजाबाद सीट से भाई रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा था और चाचा-भतीजे दोनों को चुनावी हार का सामना करना पड़ा था।
सपा में रहते हुए शिवपाल यादव राजनीतिक रूप से काफी ताकतवर माने जाते थे और प्रदेश के सभी जिलों में उनके समर्थकों की बड़ी फौज थी। लेकिन, एसपी से अलग होने के बाद वह बड़ा करिश्मा नहीं दिखा सके। फीरोजाबाद संसदीय सीट पर मात्र एक लाख वोट ही हासिल हो सके और शेष सीटों पर उनके प्रत्याशी 5 से 20 हजार वोट तक ही सिमट गए। पिछले साल हुए उत्तर प्रदेश सहकारी ग्रामीण विकास बैंक चुनाव में शिवपाल के समर्थकों को भाजपा के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था।
हालांकि, 1991 से अब तक सहकारिता के क्षेत्र पर सपा और विशेष रूप से यादव परिवार का एकाधिकार रहा है। मायावती के जमाने में भी सहकारी ग्रामीण विकास बैंक यादव परिवार के नियंत्रण में पूरी तरह से बना रहा, लेकिन भाजपा ने शिवपाल यादव का जादू तोडक़र कब्जा जमा लिया। शिवपाल सिंह यादव ग्रामीण विकास बैंक के अध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन अब भाजपा के कब्जे में यह पद है।
2017 के विधानसभा, 2019 के लोकसभा और सहकारिता चुनाव के बाद शिवपाल के सामने अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती है। ऐसी स्थिति में शिवपाल सपा से हाथ मिलाकर अपनी खोई हुई राजनीतिक सत्ता हासिल करना चाहते हैं, जिसके लिए शिवपाल सार्वजनिक तौर पर कई बार सपा से हाथ मिलाने और अखिलेश को सीएम बनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन अखिलेश यादव उनको कोई भाव नहीं दे रहे हैं।

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