जानिए तालिबानी नेता अब्दुल गनी बरादर और मसूद अजहर का कनेक्शन, क्या होगा इस दोस्ती का असर

नई दिल्ली। आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद एक बार फिर तालिबान के राजनीतिक विंग के प्रमुख अब्दुल गनी बरादर के साथ अपने संबंधों को भुना रहा है। जैश सरगना मसूद अजहर और अब्दुल गनी बरादर दोनों देवबंदी हैं और दोनों ने मुसीबत के समय एक-दूसरे की मदद की है। मसूद अजहर की रिहाई हो या बरादर का फरार होना। अब मसूद और आईएसआई ने तालिबान के शीर्ष कमांडरों से मुलाकात की और उनके साथ भविष्य की साजिशों पर चर्चा की और इस दौरान आईएसआई ने तहरीक-ए-तालिबान का भी रोना रोया। माना जा रहा है कि तालिबान की सरकार बनने के बाद जैश तमाम आतंकी संगठनों में सबसे ताकतवर हो जाएगा, जो भारत के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
अब्दुल गनी बरादर, जो तालिबान के राजनीतिक प्रमुख भी हैं और कभी इसके आर्थिक मामलों के प्रभारी भी रहे हैं, सैन्य योजनाओं के प्रमुख भी रहे हैं, जो अफगानिस्तान के नए राष्ट्रपति के रूप में उभरे हैं। तालिबान में नंबर दो के रूप में जाने जाने वाले बरादर को आदिवासी रिवाज के तहत अपने कामों को अंजाम देने के लिए कहा जाता है और इसके तहत वह अपने लोगों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। कुख्यात आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर इस बरादार का प्रिय है। मसूद अजहर की रिहाई के लिए भारतीय जहाज आईसी 814 का अपहरण कर लिया गया था, जिसे भारत के कश्मीर में गिरफ्तार किया गया था। खुफिया सूत्रों की माने तो अब्दुल गनी बरादर और जैश प्रमुख मसूद अजहर के बीच कई समानताएं हैं। यही वजह है कि दोनों एक दूसरे को बेहद पसंद करते हैं और इसीलिए कहा जा रहा है कि जैश अब फिर से अपने रिश्ते को भुनाएगा।
खुफिया दस्तावेजों में दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक अब्दुल गनी बरादर और मसूद अजहर दोनों का जन्म 1968 में हुआ था। दोनों देवबंदी हैं। मसूद अजहर की रिहाई के समय कंधार में भारतीय जहाज आईसी 814 को उतारने में बरादर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2009 से जब बरादार को अमेरिकी एजेंसियों के डर से फरार होना पड़ा, तब मसूद अजहर ने उसे पाकिस्तान के नूरीबाद एस्टेट में स्थित मदरसा खुदामूल कुरान में शरण दी थी। गौरतलब है कि फरवरी 2010 में उसे भी यहीं से गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के बाद जैश ने आईएसआई पर दबाव डाला कि बरादर को अफगानिस्तान न भेजा जाए और न ही अमेरिका को सौंपा जाए। बरादर आठ साल तक आईएसआई की हिरासत में रहने के बाद साल 2018 में रिहा हुआ था।
खुफिया सूत्रों के मुताबिक, आईएसआई की एक शीर्ष टीम ने हाल ही में बरादर और उसके कमांडरों से मुलाकात की थी और इस टीम में सीआईए के साथ बरादर से पूछताछ करने वाले आईएसआई अधिकारी भी शामिल थे। आईएसआई ने बरादर पर आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान पर लगाम लगाने का दबाव बनाया है क्योंकि वह खुद को तालिबान का हिस्सा मानता है और अफगानिस्तान में उनकी सरकार बनने के बाद उनके हमले बढ़ सकते हैं।
सूत्रों की माने तो जैश सरगना मसूद अजहर ने भी बरादर के सामने आईएसआई का पक्ष लिया और उसे यह दिखाने की कोशिश की कि गिरफ्तारी के वक्त आईएसआई ने उसकी काफी मदद की थी यानी यहां भी जैश के संबंधों को नकदी से जोड़ा है. खेल जारी है, क्योंकि एक तरफ जहां आईएसआई मसूद पर लगाई गई पाबंदियों को दरकिनार करती रहेगी, वहीं मसूद इसका फायदा उठाकर अपने निजाम को फैला पाएगा। खुफिया सूत्रों की माने तो बरादार का आईईडी ब्लास्ट को बढ़ाने में भी यही दिमाग था और वह इसे तालिबान टैक्टिक नाम देता था। उसका पसंदीदा खेल दुश्मन की राह में फूल बिछाना यानी आईईडी फिट करना था और मसूद भी इस खेल से प्रभावित था।
जानकारों का मानना है कि जैश एक बार फिर बरादर के साथ अपने संबंध मजबूत करेगा, हालांकि बरादार के लिए ऐसा करना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि अमेरिका से किए गए वादों के तहत उसे उन संगठनों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी होगी, जिन पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया है। ऐसे में ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि बरादर अपनी बिरादरी का साथ देते हैं या अपने वादे पूरे करते हैं।

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