डब्ल्यूएचओ का ऑफिस, लाखों का बकाया टैक्स और सरकार की तारीफ के खेल के खुलासे से मचा हड़कंप

  • कोरोना काल में जब प्रदेश में मचा था हाहाकार डब्ल्यूएचओ सरकार की शान में पढ़ रहा था कसीदे
  • विपक्ष बोला, कोरोना प्रबंधन में फेल सरकार अंतरराष्टï्रीय संस्था से कर रही डील, होनी चाहिए जांच
  • 4पीएम की पड़ताल से पता चला है कि आवासीय क्षेत्र में एमपी-एमएलए कोटे से आवंटित किया गया मकान

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क लखनऊ। आम आदमी से टैक्स वसूली में गरम रहने वाली सरकार और नगर निगम डब्ल्यूएचओ पर मेहरबान है। सरकार डब्ल्यूएचओ पर इस कदर मेहरबान है कि उसे न केवल एमपी और एमएलए कोटे से मकान आवंटित किया बल्कि आवासीय क्षेत्र में ऑफिस खोलने की मंजूरी तक दे दी। यही नहीं ऑफिस पर लाखों रुपये टैक्स बकाया है लेकिन आज तक उसकी वसूली नहीं हो सकी। सवाल उठता है कि क्या कोरोना काल में सरकार और डब्ल्यूएचओ के बीच यह डील हो गई है कि कोरोना काल में डब्ल्यूएचओ सरकार के प्रबंधन की प्रशंसा करे और सरकार उसके द्वारा नियमों-कानूनों की धज्जियां उड़ाने और बकाया टैक्स वसूली से आंख मूंदे रहेगी। इस मामले का खुलासा होते ही सरकार में हड़कंप मच गया है। वहीं विपक्ष ने सरकार पर अपने कोरोना कुप्रबंधन पर पर्दा डालने के लिए डब्ल्यूएचओ जैसी अंतरराष्टï्रीय संस्था को मैनेज करने का आरोप लगाते हुए मामले की जांच की मांग की है।

राजधानी लखनऊ के 3/250, विनय खंड, गोमती नगर में डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन का ऑफिस है। यह वही डब्ल्यूएचओ है, जिस पर योगी सरकार की सोशल मीडिया टीम की तरफ काम करने के आरोप लगते रहे हैं। पिछले दिनों डब्ल्यूएचओ ने यूपी सरकार के कोरोना प्रबंधन की जमकर तारीफ की थी जबकि पूरे प्रदेश में हाहाकार मचा हुआ था। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकार के गांवों तक टेस्टिंग और इलाज पहुंचाने के दावे की जांच खुद 4पीएम ने की तो पोल खुल गई थी। पता चला था कि तमाम गांवों तक कोई मेडिकल टीम नहीं पहुंची थी न कोई डॉक्टर दवा देने पहुंचे थे और न टेस्टिंग हो रही थी। ऐसे में डब्ल्यूएचओ की तारीफ ने उसे कठघरे में खड़ा कर दिया है। खुलासा हुआ है कि आखिर क्यों डब्ल्यूएचओ सरकार पर मेहरबान है। 4पीएम की पड़ताल से पता चला है कि डब्ल्यूएचओ का जो दफ्तर लखनऊ में है वह एक रिहायशी इलाके में है। नियमों के मुताबिक यहां कोई भी कमर्शियल दफ्तर नहीं खोला जा सकता। साथ ही जिस घर में यह ऑफिस है उस पर नगर निगम का करीब 12 लाख टैक्स बकाया है और आज तक वसूल नहीं किया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार और डब्ल्यूएचओ में डील थी कि आप हमारी सरकार के कसीदे पढ़िए और हम आपको नगर निगम के टैक्स में छूट देंगे। जब इस मकान के कागज निकाले गए तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। पता चला है कि यह मकान एमपी-एमएलए कोटे में आवंटित है। जाहिर है इसके तार सियासी आकाओं से जुड़े हैं। दरअसल यह मकान जिस जगदीश सिंह के नाम पर आवंटित है, वह पहले विधायक रह चुके हैं। वहीं नगर निगम के एक कागज में अनामिका सिंह नाम की महिला का नाम सामने आया, जिसमें महिला के नाम के साथ न तो पति का नाम दर्ज था और न पिता का। आसपास के लोग बताते हैं कि यह एक बड़े अफसर का है। हालांकि अभी तक यह पुष्ट नहीं है कि यह किस बड़े अफसर का मकान है। साथ ही इस पर निगम के अलावा अन्य विभागों का कितना टैक्स बाकी है। इस खुलासे के बाद विपक्ष ने मामले की जांच की मांग उठाई है।

यूपी में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जिस तरह के भयावह हालात थे, उसे सभी ने देखा। पिछले साल भी ऑक्सफोर्ड ने योगी सरकार के काम को ऐतिहासिक बताया था लेकिन दूसरी लहर ने इनकी पोल खोल दी। दरअसल यह इवेंट की सरकार है और धरातल पर शून्य है। यह केवल कलाबाजियां करने में माहिर है।

-अनुराग भदौरिया, प्रवक्ता, सपा

कोरोना काल में जिस तरह का कु-प्रबंधन हुआ है उससे पूरे प्रदेश व देश को पता है कि योगी सरकार पूरी तरह से फेल है। यह सरकार केवल मीडिया मैनेजमेंट और बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाने में व्यस्त है। कैसे एक ऑफिस रिहायशी इलाके में चल रहा है, जिस पर नगर निगम का लाखों का टैक्स बकाया है। डब्ल्यूएचओ की तारीफ कहीं इसी डील का हिस्सा तो नहीं। इसकी जांच होनी चाहिए।

-जीशान हैदर, प्रवक्ता, कांग्रेस

भाजपा का मूल चरित्र सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं को अपना भोंपू बनाने का प्रयास करने वाली रही हैं। इसके लिए जैसी डील बन पड़े वह करती है । इन संस्थाओं के मैनीपुलेशन के जरिये अपने पापों और निकम्मेपन को छुपाने को अंजाम देने के प्लॉट रचे जाते हैं। अपने बारे में झूठी और अस्पष्ट लाइनें लिखवाकर उसको प्रशंसा बता कर जनता को धोखा दिया जाता है ।

-वैभव माहेश्वरी, प्रवक्ता आप

कानून सभी के लिए बराबर है। इस मामले में भी नियमों के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। पक्षपाती रवैया ठीक नहीं है। डब्ल्यूएचओ को आवासीय इलाके में ऑफिस बनाने के लिए मकान कैसे मिला इसकी जांच होनी चाहिए।

-अनिल दुबे, राष्ट्रीय सचिव, आरएलडी

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