तो यह है भाजपा की स्वच्छ राजनीति, आपराधिक रिकॉर्ड वाले विधायक देने में है नंबर वन

  • यूपी विधान सभा में भाजपा के 114 विधायकों पर है क्रिमिनल केस
  • शीर्ष से लेकर प्रदेश नेतृत्व तक करता है स्वच्छ राजनीति का दावा
  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब आसानी से वापस नहीं होंगे मुकदमे

गोविंद प्रताप सिंह

लखनऊ। स्वच्छ राजनीति का दावा करने वाली भाजपा का दामन भी कम दागदार नहीं है। उत्तर प्रदेश विधान सभा में पहुंचे भाजपा विधायकों के आपराधिक रिकॉर्ड से साफ है कि चुनाव जीतने के लिए किस तरह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी आंखें मूंद लीं। विधान सभा में भाजपा के 114 ऐसे विधायक है, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। दागी विधायक देने के मामले में भाजपा नंबर वन है। अन्य पार्टियों में दागी विधायकों की संख्या भाजपा से काफी कम हैं। इन विधायकों को उम्मीद थी कि उनकी सरकार उनके मुकदमे वापस करा देगी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने इनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है। अब बिना हाईकोर्ट की मंजूरी के बिना उनके मुकदमे वापस नहीं लिए जा सकेंगे। इससे दागी विधायकों के पसीने छूट रहे हैं।उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017 में विधान सभा चुनाव हुए थे। उस समय प्रदेश के 403 विधायकों में 143 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज थे। इसमें भाजपा के 114, सपा के 14, बसपा के पांच और कांग्रेस के एक विधायक शामिल हैं। चुनाव का परिणाम घोषित हुआ तो भाजपा सत्ता में काबिज हुई। इसके बाद सरकार ने अपनी माननीयों के मुकदमों को वापस लेना शुरू कर दिया। एडीआर (एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स) के मार्च 2017 के आंकड़ों के मुताबिक जिन 143 विधायकों पर मुकदमे दर्ज थे, उसमें से 105 विधायक ऐसे थे जिन पर गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज थे। इसमें हत्या, हत्या के प्रयास, महिला से छेड़छाड़, हेराफेरी जैसे मामले थे। वहीं 2019 में चुनकर आए यहां के 80 लोकसभा सांसदों में से 44 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। 2017 के विधान सभा चुनाव में 403 सीटों के लिए 4 हजार 823 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे। उसमें से 17 फीसदी यानी 859 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। इन 859 में से 704 ऐसे थे जिन पर गंभीर आपराधिक मामले थे। गंभीर अपराध यानी ऐसे अपराध, जिनमें पांच साल या उससे अधिक की सजा मिलती हो या गैर-जमानती हो। इस चुनाव में भाजपा, सपा, बसपा, आरएलडी और कांग्रेस ने एक हजार 480 उम्मीदवार उतारे थे। उसमें से 492 उम्मीदवार ऐसे थे जिन पर आपराधिक मामले दर्ज थे। इस हिसाब से विधानसभा चुनाव में इन पांचों पार्टियों ने जितने उम्मीदवार उतारे थे उसमें से 33 फीसदी से ज्यादा पर आपराधिक मामले दर्ज थे। इन विधान सभा चुनावों में 859 उम्मीदवारों में से 143 तो चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए।

 

यूपी में विधान सभा और लोक सभा की सीटें

जनसंख्या की दृष्टि से यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है। सूबे की आबादी 22 करोड़ से अधिक है। सूबे में सबसे ज्यादा विधान सभा और लोक सभा की सीटें हैं। यहां से 80 सांसद और 403 विधायक चुनकर आते हैं।

विधान सभा में 36 फीसदी विधायक हैं दागी

2017 के विधानसभा चुनाव में जो 403 विधायक चुनकर आए थे, उनमें से 143 यानी 36 फीसदी पर आपराधिक मामले दर्ज थे। इस चुनाव में भाजपा ने सबसे ज्यादा 312 सीटें जीती थीं। इसमें उसके सबसे ज्यादा 114 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। इसके अलावा बसपा, सपा और कांग्रेस ने 72 सीटें जीती थीं, जिनमें से तीनों पार्टियों के 20 विधायक क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले थे। हालांकि, 2012 की तुलना में ये आंकड़ा कम था क्योंकि 2012 में 189 विधायक क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले थे।

यूपी से भाजपा के 61 सांसदों में 35 आपराधिक पृष्ठïभूमि वाले

2019 के लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर 979 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे थे। इनमें से 958 उम्मीदवारों के ही एफिडेविट का विश्लेषण किया गया था। इसके मुताबिक 958 उम्मीदवारों में से 220 ऐसे थे, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज थे। इस विश्लेषण में भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा के 216 उम्मीदवारों के एफिडेविट को जांचा गया था, जिनमें से इन चारों पार्टियों के 117 उम्मीदवार क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले थे। यानी इन चार पार्टियों ने जितने उम्मीदवार उतारे थे उनमें 54 फीसदी से ज्यादा पर आपराधिक मामले थे। वहीं जब लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 सीटों पर चुनकर आए सांसदों में से 79 सांसदों के एफिडेविट का एनालिसिस किया गया था तो यह बात भी सामने आई थी कि इन 79 सांसदों में से 44 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज थे यानी जितने सांसद जीतकर आए थे, उनमें से 56 फीसदी क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले थे। साल 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने ही सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं। इस चुनाव में भाजपा ने 61 सीटें जीतीं जिनमें से 35 सीटों पर आपराधिक पृष्ठïभूमि वाले उम्मीदवार जीतकर आए थे।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण के एक मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। फैसले में कोर्ट ने कहा था कि कोई भी राज्य सरकार या पब्लिक प्रोसिक्यूटर संबंधित हाईकोर्ट की मंजूरी के बिना आपराधिक दंड संहिता के तहत आरोपी सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे मामले वापस नहीं ले सकता है। साथ ही सांसद और विधायकों से जुड़े आपराधिक मामलों की सुनवाई कर रहे जजों को बिना सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उनके मौजूदा पद से न तो हटाया जाएगा और न ही ट्रांसफर किया जा सकेगा। 

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