दलित वोटों पर जयंत की नजर, पश्चिमी यूपी में नया सोशल इंजीनियरिंग का दांव

  • दलित-मुस्लिम और जाटों को पाले में लाने में जुटी रालोद
  • बसपा को झटका देने की तैयारी, कांशीराम के बहाने साध रहे समीकरण

लखनऊ। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की सियासी जंग जीतने के लिए राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी की नजर अब दलित वोटों पर भी गड़ गई है। लखनऊ में जयंत चौधरी ने पार्टी का लोक संकल्प घोषणा पत्र जारी कर जाट और मुस्लिम ही नहीं बल्कि दलितों को भी साधने का बड़ा दांव चला है। उन्होंने बसपा के संस्थापक कांशीराम के नाम पर दलितों के लिए योजना शुरू करने का वादा किया है। चुनावी घोषणापत्र में किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह के नाम पर कृषक सम्मान योजना का जिक्र है तो दलितों के लिए कांशीराम शहरी श्रम कल्याण योजना में आर्थिक सहायता देने का वादा किया गया है। ऐसे ही जयप्रकाश नारायण सर्वोदय योजना में पिछड़ों को छात्रवृत्ति देने की बात कही गई है जबकि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी और पहली ड्रोन यूनिवर्सिटी बनाने का वादा भी आरएलडी ने किया है। जयंत चौधरी ने घोषणा पत्र के जरिए पश्चिम यूपी में सोशल इंजीनियरिंग का दांव चला है। यही नहीं बसपा से नाराज नेताओं को जयंत ने अपने साथ जोड़ने के साथ-साथ मायावती के दलित वोटबैंक को भी जोड़ने का दांव चल दिया है। ऐसे में बसपा की बुनियाद रखने वाले और दलितों के मसीहा माने जाने वाली कांशीराम के नाम को भी भुनाने का दांव चला है। कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर भी जयंत चौधरी ने ट्वीट कर कांशीराम को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी बातों का जिक्र किया था। लिखा था कि हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक व्यवस्था के पीड़ितों को एकजुट नहीं करेंगे और देश में असमानता की भावना को खत्म नहीं करेंगे।

पश्चिम यूपी का क्या है जातीय गणित

पश्चिम उत्तर प्रदेश में सियासी तौर पर मुस्लिम-जाट-दलित समीकरण ही सबसे महत्वपूर्ण है। मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद और बरेली मंडल के 14 जिलों की 71 सीटों पर इस समीकरण का दबदबा माना जाता है। इसी रणनीति के तहत आरएलडी लगातार कवायद में जुटी है। पश्चिम यूपी में जाट 20 फीसदी के करीब हैं तो मुस्लिम 30 से 40 फीसदी के बीच हैं और दलित समुदाय भी 25 फीसदी के ऊपर है। जयंत चौधरी मुस्लिम-जाट-दलित को मजबूत कॉम्बिनेशन बनाना चाहते हैं।

ऐसे बिगड़ा था समीकरण

पश्चिमी यूपी की सियासत में जाट, मुस्लिम और दलित काफी अहम भूमिका अदा करते हैं. आरएलडी का कोर वोटबैंक जहां जाट माना जाता है तो एक समय मुस्लिम भी उसका हिस्सा हुआ करता था। मुजफ्फरनगर दंगे से जाट और मुस्लिम के बीच दूरियां पैदा हुईं तो आरएलडी का पूरी समीकरण ही ध्वस्त हो गया। हालांकि, किसान आंदोलन के जरिए जाट और मुस्लिम फिर से करीब आए हैं। इतना ही नहीं, सपा के साथ गठबंधन कर मुस्लिम वोटों को जयंत चौधरी ने और भी मजबूत किया है।

बसपा का जनाधार

यूपी में भाजपा और बसपा की सत्ता आने में पश्चिम यूपी की काफी अहम भूमिका रही है। बसपा का बड़ा जनाधार इसी पश्चिम यूपी के इलाके में है। 2007 में पश्चिमी यूपी में मुस्लिम-दलित-गुर्जर के सहारे मायावती इस पूरे इलाके में क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही थी। ऐसे ही मुजफ्फरनगर दंगे के चलते जाट-मुस्लिम के बीच आई दूरी का सियासी फायदा बीजेपी को मिला था। उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी लगभग 22 फीसदी है. दलितों का यह समाज दो हिस्सों में बंटा है। पहला जाटव, जिनकी आबादी करीब 14 फीसदी है जबकि गैर-जाटव वोटों की आबादी करीब 8 फीसदी है। जाटव समाज को बसपा का मूल वोटर माना जाता है तो गैर-जाटव वोटर पार्टी से खिसककर दूसरे दलों में गए हैं। 

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