पायलट ने बदला प्रेशर पॉलीटिक्स का तरीका

नई दिल्ली। राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट ने सत्तारूढ़ संगठन में भाग लेने के लिए दबाव की योजना बदल दी है। अब पायलट अपनी जमीनी ताकत का इस्तेमाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए करेंगे।
सचिन पायलट ने रविवार से ही इसकी शुरुआत कर दी है। दौरे के पहले चरण में वह अपने प्रियजनों को खो चुके कांग्रेस विधायकों के घरों में जा रहे हैं। दौरे की पहली प्राथमिकता गुर्जर मीणा बहुल पूर्वी राजस्थान है, लेकिन पायलट यहां खुद को सीमित नहीं करेंगे। उनकी पूरे राजस्थान दौरे की योजना है। पायलट समर्थकों की दूसरी योजना क्षेत्र में जन समस्याओं का दबाव और अधिकारियों का घेराव करना है।
रविवार को पायलट ने कठूमर विधायक बाबूलाल बैरवा और राजगढ़ लक्ष्मणगढ़ विधायक जौहरीलाल मीणा के घर जाकर उनसे मुलाकात की। जौहरी लाल मीणा की पत्नी का देहांत हो चुका था। कहने को तो वह गहलोत गुट के दोनों विधायकों के घर सांत्वना देने गए थे, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक मकसद है। बताया जा रहा है कि दोनों विधायक गहलोत सरकार के कामकाज से नाखुश हैं। पायलट बसपा से कांग्रेस में आए विधायक दीपचंद खैरिया के कार्यालय पहुंचे थे।
पायलट जानते हैं कि पूर्वी राजस्थान के कांग्रेस विधायक भले ही अब गहलोत के साथ हों, लेकिन उन्हें इस गुर्जर-मीणा बहुल क्षेत्र में चुनाव जीतने के लिए गहलोत से ज्यादा पायलट की जरूरत है। पायलट का समर्थन कर रहे एक विधायक का कहना है कि ढाई साल बाद चुनाव है। अब पूर्वी राजस्थान के विधायक अच्छी तरह जानते हैं कि पायलट की नाराजगी उनके चुनाव को कैसे प्रभावित कर सकती है। इसका एक उदाहरण कुछ दिन पहले देखने को मिला जब गहलोत गुट की विधायक इंदिरा मीणा ने मांग की थी कि पार्टी पायलट से किए गए वादों को पूरा करे। इंदिरा मीणा के विधानसभा क्षेत्र में गुर्जर मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।
पायलट को यह भी पता है कि वह विधायकों की संख्या से नहीं अपनी लोकप्रियता और ताकत को जमीन पर दिखाकर गहलोत पर दबाव डाल पाएंगे। इसी हथियार का इस्तेमाल तब किया गया जब पायलट 10 महीने पहले विद्रोह के बाद अपने समर्थकों के साथ लौटे थे। तब किसान आंदोलन में पायलट को अपनी ताकत दिखाने का मौका मिला था। पायलट ने पूर्वी राजस्थान में कई बड़ी रैलियां आयोजित कर खुद की छवि को क्राउड पुलर नेता के रूप में पेश किया। दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत संगरोध में हैं।
बसपा के छह विधायकों और 13 निर्दलीय विधायकों का एक गुट अब तक गहलोत सरकार को समर्थन दे रहा है। अब 23 जून को इस समूह की बैठक है। इसके बाद यह समूह कांग्रेस अलकामन से सत्ता में भागीदारी की मांग कर सकता है। इसका मकसद साफ है- पार्टी हाईकमान पर दबाव बनाना कि हमने पायलट की वजह से खतरे में पड़ी सरकार को बचाया, इसलिए हमें इनाम मिलना चाहिए पायलट को नहीं । जाहिर है कि अगर यह दबाव बनता है तो फिर सचिन पायलट को नुकसान होगा ।
पायलट यह जानते हैं, इसलिए उन्होंने विधायकों को लुभाने का नया तरीका निकाला। अब आने वाले दिनों में पायलट लाव लश्कर के साथ स्मोकी टूर करते नजर आएंगे। पायलट जानते हैं कि मौजूदा हालात में सिर्फ पार्टी हाईकमान को दस महीने पहले किए गए वादे की याद दिलाकर समर्थकों को सरकार-संगठन में जगह नहीं मिल पाएगी। जनाधार वाले लोकप्रिय नेता की छवि का दबाव ज्यादा प्रभावी हो सकता है।

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