प्रियंका के मिशन यूपी की राह पथरीली

लखनऊ। मिशन 2022 का लक्ष्य भेदने के लिए यूपी के सभी राजनीतिक दलों ने तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस सभी अपने ओर से कोई कोरकसर नहीं छोडऩा चाहते हैं। एक ओर जहां भाजपा अपने कोर वोटबैंक के साथ ही ओबीसी और अतिपिछड़ों पर नजर जमाए हुए है तो वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी अपने बेस वोटबैंक यादव और मुस्लिमों के साथ ही ब्राह्मणों को भी अपने पाले में करने की तैयारी में जुटी है। वहीं दूसरी ओर यूपी की राजनीति में तकरीबन हाशिए पर पहुंच चुकी बसपा भी जातीय लामबंदी के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश कर रही है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि यूपी में एक अरसे से वेंटीलेटर पर चल रही कांग्रेस को पुनर्जीवत करने की कवायद में अब राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी भी लगी हैं। तकरीबन तीन दशक से यूपी की सत्ता से दूर हो चुकी कांग्रेस इस बार फिर चुनाव में ताल ठोंकने की तैयारी कर रही है। गांधी परिवार पिछले एक अरसे से यूपी को अपनी चुनावी प्रयोगशाला में तब्दील कर चुका है लेकिन उसे अभी तक उसे इसमें कोई सफलता नहीं मिली है। गठबंधन से लेकर एकला चलो तक कांग्रेस के सारे फार्मूले फेल हो चुके हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार प्रियंका की यह कवायद क्या गुल खिलाती है।
फिलहाल ताजा हालातों पर नजर डालें तो अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार खराब रहा है। 2017 के चुनाव में कांग्रेस के सिर्फ सात विधायक चुने गए थे। इस चुनाव के लिए प्रियंका गांधी ने यूपी में मोर्चा संभाल लिया है। प्रियंका गांधी ने हाल ही में यूपी का दौरा किया था।
कांग्रेस की छवि को मजबूत करने के लिए प्रियंका गांधी हर संभव प्रयास कर रही हैं। इसमें सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर सुर्खियां बटोरना भी शामिल है। हाल ही में प्रियंका लखनऊ के दौरे पर आईं थीं। उन्होंने हजरतगंज में गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण भी किया था। प्रियंका के कार्यक्रमों में ज्यादातार पुराने ही चेहरे नजर आए हैं वहीं कुछ नए नवेले कांग्रेसी भी इसमें हिस्सा लेते नजर आए। चित्रकूट से लेकर बांदा तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह देखते ही बनता था लेकिन ये तदाद इतनी भी ज्यादा नहीं थी कि प्रदेश की दूसरी पार्टियों को विचलित कर सके।
यह बात सभी लोग जानते हैं कि यूपी गांधी परिवार का पैतृक कार्यस्थल रहा है। अगर प्रियंका लीड भूमिका में आईं तो ऐसा लग रहा था कि 2022 के चुनाव में राज्य में पार्टी के प्रदर्शन में सुधार होगा लेकिन अभी जमीनी स्थिति यह है कि नेता बंद कमरों में सोच रहे हैं कि अगर गठबंधन नहीं होगा तो फिर सभी सीटों पर लडऩे के लिए प्रत्याशी कहां से आएंगे? सबसे बड़ी बात यह है कि अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन नहीं सुधरता है तो फिर इसका खामियाजा प्रियंका गांधी को ही उठाना पड़ेगा। वहीं दूसरी इन दिनों प्रियंका निजी कारणों से विदेश गई हैं। लेकिन जाने से पहले उन्होंने उन नेताओं को बुलाया है जिनकी उम्मीदवारी तय है और उन्हें चुनाव की तैयारी करने को कहा है। इनमें पूर्व विधायक और पार्टी के बड़े नेता शामिल हैं।
इस बीच यह चर्चा जोरों पर है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश संगठन में कुछ नई नियुक्तियां कर सकती है। पार्टी को प्रदेश में एक कार्यकारी अध्यक्ष मिल सकता है। कांग्रेस भी ब्राह्मणों को लुभाने के लिए वर्किंग अध्यक्ष के रूप में ब्राह्मण चेहरे को आगे कर सकती है। बताते चलें कि पहले से ही समाजवादी पार्टी और बसपा में ब्राह्मणों को लुभाने की होड़ है। ब्राह्मण कांग्रेस पार्टी का परंपरागत वोट बैंक रहा है, लेकिन वर्षों से वे पार्टी से दूरी बनाए हुए हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस पद के लिए ललितेश त्रिपाठी, प्रमोद तिवारी जैसे कई नामों की चर्चा हो रही है। इसमें पूर्व सांसद राजेश मिश्रा का नाम सबसे आगे चल रहा है। राजेश मिश्रा बनारस से हैं। उन्होंने पार्टी संगठन में विभिन्न पदों पर काम किया हैं। इस बात की भी संभावना है कि अभियान समिति के अध्यक्ष पद पर प्रमोद तिवारी को जिम्मेदारी दी जाए। हालांकि प्रमोद तिवारी की दिलचस्पी दिल्ली में ज्यादा और राज्य की राजनीति में कम है। उनकी बेटी आराधना मिश्रा विधायक दल की नेता हैं और प्रियंका की करीबी मानी जाती हैं।
हाल ही में अपने लखनऊ टूर के दौरान प्रियंका को बेहद खराब फीडबैक मिला। कार्यकर्ताओं ने प्रियंका से पार्टी में चल रही कुछ नेताओं की मनमानी की शिकायत की थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कई लोगों ने प्रदेश अध्यक्ष को लेकर अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी। कार्यकर्ताओं ने कहा कि पार्टी के भीतर गुटबाजी है, जिसके कारण पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है। इतना ही नहीं कुछ नेताओं ने प्रियंका से कहा कि उनके वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारी उन्हें हकीकत से भटका रहे हैं। नेताओं को जमीनी हकीकत का पता नहीं है, जिसकी वजह से 2022 में पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहेगा। प्रियंका के 3 दिवसीय दौरे में नेताओं ने यह भी कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस की सीटें और घटने की संभावना है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश की कमान संभालने के बाद जिला और ब्लॉक स्तर पर बदलाव किए गए। कई पुराने नेताओं की छुट्टी कर दी गई और बाहरी लोगों को ज्यादा तवज्जो दी गई। प्रियंका को प्रदेश अध्यक्ष लेकर संगठन में बदलाव को लेकर कई शिकायतें मिली हैं। हालांकि इस बदलाव के लिए खुद प्रियंका जिम्मेदार हैं।
प्रियंका इस बात से काफी खफा थीं कि मीडिया में संदेश गया है कि वह डेढ़ साल बाद प्रदेश में लौटी हैं। हालांकि, इस बीच वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल भी गई हैं। लेकिन यह सच है कि वह करीब 15 महीने बाद राज्य की राजधानी में आईं थीं । जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। यही वजह है कि कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग गठबंधन की राह को सबसे सुरक्षित मान रहा है। अगर कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन होता है तो कम से कम कांग्रेस की उतनी फजीहत नहीं होगी जितना उसके अकेले चुनाव लडऩे और नकारात्मक परिणाम आने पर होगी वहीं दूसरी ओर इस बात एक पहलू यह भी है कि इससे प्रियंका की छवि पर उतना असर नहीं पड़ेगा और डैमेज कंट्रोल आसान होगा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की अग्निपरीक्षा से पहले ही यूपी में प्रियंका का मिशन खत्म होता दिख रहा है। सवाल यह है कि दो साल जो पार्टी और प्रियंका नहीं कर पाए क्या वह अब चंद महीने में उसको अंजाम दे पाएंगे? क्या प्रियंका यूपी कांग्रेस की नाव को चुनावी वैतरणी पार कराने में सक्षम होंगी? यूपी चुनाव कहीं न कहीं प्रियंका की छवि पर जरूर प्रभाव डालेंगे इस बात से इंका नहीं किया जा सकता है।

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