स्कूल में दर्ज आयु ही प्रथम प्रमाण : हाईकोर्ट

  •  आयु निर्धारण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि स्कूल में दर्ज आयु ही प्रथम प्रमाण मानी जाएगी। इसके न होने पर निकाय के जन्म प्रमाणपत्र मान्य होगा। दोनों ही न हो तो मेडिकल जांच से तय उम्र मान्य होगी। कोर्ट ने कहा पीड़ित नाबालिग है तो किशोर न्याय कानून के तहत उसको संरक्षण दिया जाना जरूरी है। कोर्ट ने प्रयागराज के खुल्दाबाद बाल संरक्षण गृह में पीड़िता को रखने के बाल कल्याण समिति के आदेश को वैध करार दिया है और मेडिकल जांच रिपोर्ट के आधार पर बालिग होने के नाते अवैध निरुद्धि से मुक्त कराने की मांग में दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश जस्टिस बच्चू लाल और जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने वंदना उर्फ वंदना सैनी व विवेक उर्फ विवेक कुमार की याचिका पर दिया है। याची के परिवार वालों ने 23 दिसंबर को अपहरण, षडयंत्र और पॉक्सो एक्ट के तहत फतेहपुर के मलवा थाने में एफआईआर दर्ज कराई। इसमें कहा गया कि लड़की 16 साल दो माह की है। लड़की बरामद की गयी तो उसने बयान में कहा कि वह 17 साल की है। स्कूल प्रमाणपत्र मे जन्म तिथि 2 अप्रैल 2004 दर्ज है। यह सिद्ध है कि वह नाबालिग है। याची का कहना था कि दोनों ने गुजरात के एक मंदिर मे शादी कर ली है। मेडिकल जांच रिपोर्ट के अनुसार याची की आयु 19 साल है। इसलिए उसकी निरुद्धि अवैध है। तलब कर मुक्त कराया जाए। कोर्ट ने किशोर न्याय कानून व सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि घटना के समय वह नाबालिग थी। इसलिए संरक्षण गृह में रखने का आदेश विधि सम्मत व कमेटी को प्राप्त अधिकारी के तहत दिया गया है। जस्टिस बच्चू लाल और जस्टिस शमीम की खंडपीठ ने किशोर न्याय कानून व सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि घटना के समय वह नाबालिग थी। इसलिए संरक्षण गृह में रखने का आदेश विधि सम्मत व कमेटी को संरक्षण दिया जाना जरूरी है।

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