10 सालों की तानाशाही पर एक ही झटके में लग गई रोक, खेल गए राहुल!

राहुल गांधी के लिए राजीव गांधी को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि भारत राष्ट्र को उसकी करुणा की सहज संस्कृति को पुनर्स्थापित करना होगा.... इसके अलावा राहुल की जिम्मेदारी समाज में सामंजस्य स्थापित करना... बौद्धिक स्वतंत्रता और तकनीकी कौशल का उपयोग करना.... देखिए रिपोर्ट...

4 पीएम न्यूज नेटवर्कः नरेंद्र मोदी को हमेशा से चुनौती देने वाले राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के बाद से और… निखर कर मजबूती के साथ मैदान में है… बता दें कि दो हजार चौदह से लगातार सत्ता में रहने वाली बीजेपी और मोदी की राहुल गांधी ने नींद उड़ा कर रख दी है… हमेशा मोदी को चुनौती देने वाले राहुल गांधी का इस बार सदन में कद और बढ़ गया है… और उनके ऊपर जनता बड़ी जिम्मेदारी है…. सदन में राहुल गांधी को जनका के हक के लिए आवाज उठानी है… वहीं हमेशा ही राहुल गांधी समय-समय पर जनता के मुद्दे को उठाते रहें है… और सरकार को आईना दिखाने का काम किया… आपको बता दें कि दो हजार चार में जब राहुल लोकसभा में पहुंचे…. तो उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्री के रूप में काम करने के कई प्रस्ताव ..और अवसर मिले… लेकिन दो हजार चौदह में जब तक की यूपीए सरकार सत्ता से बाहर नहीं हो गई… वहीं राहुल इससे लगातार इनकार करते रहे… वहीं पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने तीन बार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि… उन्होंने राहुल को अपने मंत्रिपरिषद में शामिल होने की सलाह दी थी…. हालांकि, राहुल ने यह मानते हुए इससे दूरी बनाए रखी कि उनके पास मंत्री पद के लिए जरूरी अनुभव या योग्यता की कमी है… शायद राहुल को अपने पिता की विरासत याद थी…

बता दें कि राजीव गांधी उन्नीस सौ चौरासी में प्रधानमंत्री बने थे… तब उनकी उम्र सिर्फ़ चालीस साल थी… पीएम पद पर उनकी ताजपोशी दुखद और कठिन परिस्थितियों में हुई थी… राजीव का आधुनिक दृष्टिकोण, तकनीक पर उनका जोर और देश की अर्थव्यवस्था, समाज और… मानसिकता में रिफॉर्म लाने की उनकी मंशा शायद पूरी नहीं हो सकी…. वे षड्यंत्रों, दुस्साहसों और सत्ता के खेल के जाल में फंस गए… जिसकी कीमत आखिरकार मई उन्नीस सौ इक्यानबे में उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी…. वहीं चौव्वन साल की उम्र में राहुल अब कहीं ज्यादा तैयार और संतुलित नजर आते हैं…. दो हजार ग्यारह से दो हजार चौदह के बीच गांधी परिवार के इस वारिस को कई झटके लगे… और उन्हें राजनीतिक विरोधियों द्वारा बदनामी और उपहास का सामना करना पड़ा…. लेकिन वे इससे अप्रभावित रहे…. वे अपनी राजनीतिक रणनीति का आकलन करते हैं… और उससे सीखकर और उसमें सुधार करते रहे…. जब तक कि भारत जोड़ो यात्रा ने उन्हें एक उद्देश्य और दिशा नहीं दे दी…

राहुल गांधी के लिए राजीव गांधी को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि भारत राष्ट्र को उसकी करुणा की सहज संस्कृति को पुनर्स्थापित करना होगा…. इसके अलावा राहुल की जिम्मेदारी समाज में सामंजस्य स्थापित करना… बौद्धिक स्वतंत्रता और तकनीकी कौशल का उपयोग करना…. युवाओं को जिम्मेदारी सौंपना और आखिरकार आर्थिक समृद्धि और समानता के सिद्धांत पर चलते हुए भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना होगा….  वहीं इन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए…. विपक्ष के नेता के रूप में राहुल एक आम सहमति वाले व्यक्ति बनना चाहते हैं…. राहुल को कांग्रेस को मजबूत करने के बजाय इंडिया गठबंधन के सहयोगियों को साथ लेकर चलने की चिंता होगी… विपक्ष के नेता के रूप में पहले दिन राहुल लगभग हर घंटे अखिलेश यादव, कल्याण बनर्जी, सुप्रिया सुले… और टीआर बालू से सलाह लेते रहे…. और उन्होंने सुनिश्चित किया कि अध्यक्ष के चुनाव की रणनीति में ममता बनर्जी की सहमति और समर्थन मिलती रहे….  वहीं गठबंधन के लिए ममता का समर्थन बहुत ज़रूरी है…. आपको बता दें कि दो हजार चौबीस चुनाव के नतीजे के बाद राहुल गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे… और सोनिया गांधी से सलाह-मशविरा करके वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम से अनुरोध किया कि वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री से मिलें…. ममता और चिदंबरम के रिश्ते राजीव गांधी के दौर से हैं…. जब वे युवा कांग्रेस में थे…. और कहा जाता है कि चिदंबरम ने ममता से यह पक्का आश्वासन भी लिया कि वे गठबंधन का अभिन्न अंग बनी रहेंगी….

आपको बता दें कि एक शैडो प्रधानमंत्री के रूप में यह देखना बाकी है कि क्या राहुल गांधी नरेंद्र मोदी सरकार को कंट्रोल में रखने के लिए शैडो कैबिनेट को औपचारिक रूप देंगे…. वहीं यूनाइटेड किंगडम में प्रचलित शैडो कैबिनेट की अवधारणा भारत में उतनी स्पष्ट नहीं है…. लेकिन अगर राहुल इंडिया गठबंधन के भीतर प्रतिभा की तलाश करते हैं…. तो वे अखिलेश यादव, अभिषेक बनर्जी, टीआर बालू और सुप्रिया सुले जैसे लोगों को इसमें शामिल कर सकते हैं…. वह अपनी पार्टी के अंदर भी शशि थरूर, मनीष तिवारी, तारिक अनवर, के सुरेश, गौरव गोगोई, कुमारी शैलजा, शशिकांत सेंथिल जैसे नेताओं को भी इस शैडो कैबिनेट में उपयुक्त पद… और प्रतिष्ठा दे सकते हैं… आपको बता दें कि शैडो कैबिनेट का ये सिस्टम मीडिया और मतदाताओं को ध्यान खींच सकता है… हालांकि इसके लिए ये जरूरी है कि इंडिया गठबंधन दो हजार उन्तीस तक अपनी भागीदारी बनाए रखे… अब जबकि राहुल गांधी औपचारिक रूप से कांग्रेस के राजनीतिक नेतृत्व का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं… और उन्हें पार्टी नेतृत्व को अधिक महत्व देने की आवश्यकता है…. वहीं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे की शैली और कार्यप्रणाली ऐसी है कि… वे नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल को रखेंगे… हालांकि पार्टी की कार्य प्रणाली को और भी चुस्त-दुरुस्त और एक्टिव करने की जरूरत है….

वहीं इस प्रस्तावित योजना में राहुल गांधी के लिए एक राजनीतिक सचिव उनका उद्देश्य पूरा कर सकता है…. राहुल केसी वेणुगोपाल को चुनने के बजाय शशिकांत सेंथिल या प्रणीति शिंदे जैसे कुछ युवा चेहरों पर विचार कर सकते हैं…. आपको बता दें कि खड़गे अक्टूबर दो हजार तेइस से कांग्रेस अध्यक्ष हैं… और अपने कर्तव्य को समर्पित और सराहनीय तरीके से निभा रहे हैं…. लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी से संबंधित मुद्दे भी रहे हैं…. एक बड़ी समस्या दिल्ली में एक ऐसे शख्स की कमी है… जो मुद्दों को सुना करें… यह काम अहमद पटेल बहुत ही कुशलता से किया करते थे…. अगर प्रियंका केसी वेणुगोपाल की जगह कांग्रेस महासचिव बन जाती हैं… तो कांग्रेस पार्टी को नई जान मिल सकती है…. राहुल गांधी, कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक को झारखंड, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और महाराष्ट्र के दो हजार चौबीस के विधानसभा चुनावों में परीक्षण का सामना करना पड़ेगा…. वहीं अगर NDA तीन में से चार चुनावों में हार जाता है… तो इंडिया गठबंधन की कहानी कहीं ज़्यादा आशाजनक हो सकती है…. जिससे नरेंद्र मोदी 3.0 सरकार की उम्र पर सवालिया निशान लग सकता है… इसलिए सभी की निगाहें राहुल और उनके रोडमैप पर हैं….

आपको बता दे कि संसद में लोकसभा अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक नए अंदाज में दिखे…. और उन्होंने एक बार फिर सफेद कुर्ता-पजामा पहन लिया…. दाढ़ी सलीके से सेट कराई… एक रात पहले उन्हें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष चुना गया था…. वहीं अपने बीस साल लंबे राजनीतिक करियर में पहली बार राहुल गांधी कोई संवैधानिक पद संभालेंगे…. चूंकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने तीसरे कार्यकाल में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है… और वो गठबंधन की सरकार चला रहे हैं… तो राहुल गांधी के पास खुद को स्थापित और साबित करने का बड़ा अवसर है… वहीं कई बार री-लॉन्च किए जा चुके राहुल गांधी क्या नई जिम्मेदारी को बखूबी निभा पाएंगे…. जिन उम्मीदों के साथ जनता ने उनकी पार्टी को निन्नानबे सीटें दी हैं… उन पर खरा उतार पाएंगे… आपको बता दें कि इन सवालों के जवाब अगले कुछ महीनों में मिल जाएंगे…. वर्ष दो हजार तेरह में राहुल गांधी को जयपुर में कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में उपाध्यक्ष चुना गया था…. तब उन्होंने मार्मिक भाषण दिया था… और सत्ता को जहर तक बताया था…. कांग्रेस ने उन्हें भविष्य के नेता के रूप में प्रोजेक्ट किया… हालांकि, कांग्रेस वर्ष दो हजार चौदह में लोकसभा चुनाव में अपना सबसे न्यूनतम प्रदर्शन कर चौव्वालीस सीटों पर सिमट गई थी…. तब कांग्रेस ने यह कहकर बचाव किया था कि… मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी… वहीं वर्ष दो हजार उन्नीस के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया…

बता दें कि उन्होंने देशभर में कांग्रेस के प्रचार का नेतृत्व किया…. लेकिन पार्टी एक बार फिर बुरी तरह हारी…. उसे बावन सीटें मिलीं… कुल मिलाकर राहुल गांधी के नेतृत्व को जनता ने नकार दिया… और राहुल गांधी ने भी अध्यक्ष पद को छोड़ दिया…. वर्ष दो हजा उन्नीस के बाद राहुल गांधी कुछ समय के लिए अज्ञातवास में चले गए…. और पार्टी उनसे नेतृत्व का गुहार लगाती रही… पर काफी मान-मनौव्वल के बावजूद वो नहीं माने…. वहीं केंद्र में लगातार दस साल पूरे कर रही नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ एक बार फिर सत्ता विरोधी लहर का लाभ लेने के लिए कांग्रेस ने राहुल गांधी की ओर देखा…. करीब-करीब सभी विपक्षी पार्टियों को जोड़कर एक बड़ा गठबंधन बनाया…. यह बात और है कि इस बार विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व किसी एक चेहरे पर नहीं था… क्योंकि कोई भी राहुल गांधी को आगे रखकर चुनाव नहीं लड़ना चाहता था… फिर कुछ क्षेत्रीय दलों की अपनी प्रतिबद्धताएं हैं…. आपको बता दें कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल और अरविंद केजरीवाल पंजाब में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़े… हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने पूरे चुनाव में यह साफ कर दिया था कि… उनके नेता राहुल गांधी हैं…. राहुल गांधी ने भी देशभर में जमकर प्रचार किया…

आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी पिछले कुछ सालों में राहुल गांधी की जबरदस्त ब्रांडिंग करती आई है… भारत जोड़ो यात्रा हो या भारत जोड़ो न्याय यात्रा…. राहुल गांधी ने देश को दक्षिण से उत्तर और पूर्व से पश्चिम तक सड़क से नापा है…. वो पिछले कुछ महीनो में सरकार के खिलाफ काफी उत्तेजित नजर आए हैं… बड़ी हुई दाढ़ी, सफेद टी-शर्ट और ब्लैक पेंट, यह उनकी पहचान बन गई थी… सफेद टी-शर्ट और ब्लैक पेंट के लिए तो उन्होंने यहां तक कहा कि मैं सादा लिबास में रहना पसंद करता हूं… इसलिए सफेद टी-शर्ट पहन लेता हूं… ये और बात है कि इस सफेद टी-शर्ट की कीमत को लेकर सत्ताधारी भाजपा के नेताओं ने राहुल गांधी पर तंज कसा… लेकिन राहुल गांधी इस बार रुकते नहीं दिखे… भले यह तथ्य सही है कि कांग्रेस ने वर्ष दो हजार चौबीस के लोकसभा चुनाव में अपना तीसरा सबसे खराब प्रदर्शन किया…. लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में निन्नानवे सीटें लाकर कांग्रेस अपनी वापसी का डंका बजा रही है…. पिछले दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष बनने लायक सीटें नहीं ला रही थी… तो इस कामयाबी से एक नए उत्साह का संचार उसमें देखने को मिल रहा है…

वहीं अब राहुल गांधी केवल आरोप-प्रत्यारोप लगाकर राजनीतिक खेल नहीं खेल सकते हैं… और उन्हें पूरे तथ्यों और नियमों के साथ सरकार को घेरना होगा… बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार का एक अल्टरनेटिव जनता के समक्ष पेश करना होगा….. राहुल गांधी के पास अगले पांच सालों में बहुत बड़ा अवसर होगा…. यदि एनडीए गठबंधन सरकार पूरे पांच साल अपना कार्यकाल पूरा लेती है… तो वर्ष दो हजार उनतीस में राहुल गांधी मुकाबले को बेहद दिलचस्प बना सकते हैं… वहीं अब देखना होगी की राहुल अपने सहयोगियों, कांग्रेस और जनका के मुद्दों पर कितना खरे उतरते है.. यह तो आने वाला वक्त तय करेंगा…

 

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