जानिए कब है गुरु नानक जयंती और क्या है मनाने का कारण
सिख धर्म एक गौरवशाली इतिहास है. सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक है. हर साल की भांति इस साल भी गुरुनानक जयंती मनाई जाएगी. यह जयंती सिखों का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. सिख धर्म के अनुयायियों के द्वारा कार्तिक महीने की पूर्णिमा को गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है. इसके साथ ही गुरु नानक जयंती को प्रकाश पर्व, गुरु पर्व, गुरु पूरब आदि नामों से भी जाना जाता हैं. इस साल यह पर्व 19 नवंबर को मनाया जाएगा. मान्यता के अनुसार गुरु पर्व के दिन सिख धर्म के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव का अवतरण हुआ था. गुरु के अवतरण दिवस पर भजन, शबद, कीर्तिन आदि करने की परंपरा हैं. इस मौके गुरुद्वारों में खास उत्साह का माहौल रहती है.
आपको बताते चलें कि कार्तिक महीने की अमावस्या की तिथि को दिवाली मनाई जाती है और उसके पंद्रह दिनों बाद अर्थात कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु नानक की जयंती मनाई जाती है. इस दिन गुरु के अनुयायी बड़े पैमाने धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं. गुरू नानक जयंती के अवसर पर प्रभातफेरियां का आयोजन किया जाता है. इन कार्यक्रमों में सिख समुदाय के लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, इसके साथ ही गुरू के अनुयायी उनके आदर्शों पर चलने वाले गुरुद्वारे में जाकर खुद ही आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं.
मान्यता के अनुसार सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव का जन्म 1469 ई. को हुआ था. इनका जन्म भोई की तलवंडी जिसे राय भोई दी तलवंडी भी कहते हैं, उस स्थान पर हुआ था. हालांकि मौजूदा वक्त में ये जगह अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मौजूद ननकाना साहिब में है.
फिलहाल अब इस जगह का नाम नानक देव के नाम से ही रखा गया था. यहां पर दुनिया भर में चर्चित गुरुद्वारा ननकाना साहिब भी है जहां पर विश्व भर से लोग इस गुरु द्वारे में आते हैं. आपको बताते चलें कि शेर-ए पंजाब के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध सिख साम्राज्य के महान राजा महाराजा रणजीत सिंह ने इस गुरूद्वारे ‘ननकाना साहिब’ का निर्माण करवाया था.
एक मान्यता के अनुसार है कि गुरु नानक सिख समुदाय के पहले गुरु भी हैं औैर इस धर्म के संस्थापक भी है. गुरू नानक नानक देव, बाबा नानक और नानकशाह आदि नामों से भी दुनिया जानती है. इतना ही नहीं, नानक जी को लद्दाख और तिब्बत क्षेत्र में नानक लामा के नाम से भी जाना जाता है. गुरु नानक देव ने सिर्फ हिन्दुस्तान में ही नहीं अफगानिस्तान, ईरान और अरब देशों में भी जाकर उपदेश दिया था. एक मान्यता के अनुसार उनकी शादी 16 साल की आयु में सुलक्खनी नाम की युवती से हुई और उनके दो पुत्र श्रीचंद और लखमीदास हुए. 1539 ई. में करतारपुर में उन्होने अपनी देह का त्याग किया.
ऐसा कहा जाता है कि अपनी मृत्यु से पहले ही गुरु जी ने अपना उत्तराधिकार अपने शिष्य भाई लहना के नाम कर दिया था जो कालांतर में गुरु अंगद देव नाम से प्रसिद़ध हुए. मान्यता के अनुसार गुरु अंगद देव सिख धर्म के दूसरे गुरु माने गए है.आपको बताते चलें कि गुरु नानक देव ने अपना जीवन मानव मात्र की सेवा में समर्पित कर दिया था.
(इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं. हम इनकी पुष्टि नहीं करते है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)